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    Bokaro Airport: क्यों अटका है बोकारो एयरपोर्ट का काम? बड़ी वजह का हुआ खुलासा

    Updated: Sat, 31 May 2025 01:02 PM (IST)

    बोकारो हवाई अड्डा प्रशासनिक और तकनीकी बाधाओं में फंसा हुआ है। एयरपोर्ट अथॉरिटी और सेल के बीच करार खत्म होने के बाद नवीनीकरण नहीं हुआ है। सुरक्षा मानकों के लिए जरूरी सर्वेक्षण की वैधता समाप्त हो गई है। राज्य सरकार द्वारा आवश्यक फायर टेंडर और एंबुलेंस जैसे संसाधनों की कमी है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रमाणपत्र रोका गया है जिससे हवाई अड्डे का भविष्य अधर में है।

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    उड़ान भरने से पहले ही अटका बोकारो हवाई अड्डे का काम

    बीके पाण्डेय, बोकारो। बोकारो हवाई अड्डा, जो राज्य के औद्योगिक विकास और आम जनता की यात्रा सुविधा को नया आयाम देने की क्षमता रखता है। एक बार फिर विभिन्न प्रशासनिक व तकनीकी बाधाओं में उलझकर रह गया है।

    एक ओर जहां एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और सेल के बीच करार की समाप्ति के बाद कोई पहल नहीं की गई है, वहीं राज्य सरकार की ओर से आवश्यक बुनियादी संसाधनों की कमी भी हवाई अड्डे के संचालन में गंभीर अड़चन बन रही है।

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    इधर भाजपा के नेता इसे राज्य सरकार की गलती बता रहे हैं तो झामुमो व कांग्रेस के नेता इसे केन्द्र सरकार की समस्या बता रहे हैं, जबकि 2018 में इस एयरपोर्ट के जीर्णेाद्धार कार्य का शिलान्यास किया गया। इसके बाद से एएआई व सेल के साथ राज्य सरकार के अधिकारी इसे चालू नहीं होने दे रहे हैं। इधर जिस नेता के पास जितना अनुभव है उसका उपयोग करते हुए एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं।

    बोकारो एयरपोर्ट का फैक्ट फाइल

    एयरपोर्ट प्रबंधन की अनदेखी से अनुबंध का नवीकरण अधर में

    बोकारो हवाई अड्डे को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को सौंपने के लिए सेल और एएआई के बीच दो बार करार किया गया। पहला करार 2018 से 2021 तक और दूसरा 2021 से 2024 तक चला, लेकिन 2024 की समाप्ति के बाद अब तक सेल प्रबंधन ने इस करार के नवीकरण के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। इससे हवाई अड्डे की संचालन प्रक्रिया ठप हो गई है और आने-जाने की संभावनाएं एक बार फिर धूमिल हो गई हैं।

    तकनीकी मंजूरी में देरी से ओएलईएस सर्वेक्षण की वैधता समाप्त

    हवाई अड्डों के परिचालन के लिए अनिवार्य ओएलएस सर्वेक्षण की वैधता दिसंबर 2024 में समाप्त हो चुकी है। यह सर्वेक्षण हर दो वर्ष में एक बार किया जाना चाहिए, लेकिन इसकी समय पर नवीकरण नहीं होने से हवाई सुरक्षा मानकों पर सवाल उठ रहे हैं। इस तकनीकी प्रमाणपत्र की अनुपस्थिति में डीजीसीए से हरी झंडी मिलना मुश्किल है।

    सुरक्षा टावर का विवाद को बढ़ाया गया

    बीसीएएस द्वारा किए गए सर्वेक्षण में यह जोड़ दिया गया कि सुरक्षा टावर कंक्रीट का होना चाहिए। जानकारों का मानना है कि यह शर्त जानबूझकर शामिल की गई ताकि बोकारो हवाई अड्डे के परिचालन में देरी हो।

    जबकि अन्य जगहों पर बोकारो जैसा ही सुरक्षा टावर बना हुआ है और वहां से उड़ानें संचालित हो रही हैं। रांची का बिरसा मुंडा एयरपोर्ट में इसी प्रकार का टावर लगा हुआ है।

    वन विभाग से अनुमति के बाद भी फिर से उग आए पौधे

    बोकारो स्टील के उद्यान विभाग की ओर से पहले पेड़ों की कटाई की जाती रही, जिससे रनवे और टर्मिनल क्षेत्र में कोई बाधा न हो। लेकिन अब यह प्रक्रिया रोक दी गई है। जिन पेड़ों को वन विभाग की अनुमति से काटा गया था, वहां अब फिर से 5-10 फीट के पौधे उग आए हैं, जिससे उड़ान संचालन में रुकावट आने की संभावना बढ़ गई है।

    राज्य सरकार भी बोकारो एयरपोर्ट में बाधक

    फायर टेंडर और एंबुलेंस की अनुपलब्धता

    छोटे मोटे काम को लेकर राज्य सरकार बदनाम है। जबकि हवाई अड्डे के संचालन में सबसे बड़ा रुकावट केन्द्र सरकार की एजेंसी ही मुख्य भूमिका में है।

    हवाई अड्डे पर सुरक्षा मानकों के तहत एक फायर टेंडर और एंबुलेंस की जरूरत होती है, लेकिन राज्य सरकार की ओर से अब तक कोई भी संसाधन मुहैया नहीं कराया गया है। जबकि एयरपोर्ट की ओर से एक फायर टेंडर दे दिया गया है।

    सतनपुर पहाड़ी पर लाइट की व्यवस्था अधूरी

    सतनपुर पहाड़ी हवाई मार्ग में दृश्यता के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन अब तक वहां लाइट की व्यवस्था नहीं की गई है, जिससे रात के समय हवाई संचालन संभव नहीं है। बोकारो पावर स्पलाई कंपनी के चिमनी के उपर लाइट लगाने का काम अब तक नहीं हुआ।

    हवाई अड्डे के आसपास कई मांस विक्रेताओं की दुकानें बिना लाइसेंस संचालित की जा रही हैं, जिससे न केवल साफ-सफाई पर असर पड़ता है, बल्कि पक्षियों के कारण विमान दुर्घटना का भी खतरा बना रहता है।

    चास के तीन एसडीएम ने नहीं किया कोई काम

    हवाई अड्डे से अतिक्रम हटाने के मुद्दे पर चास अनुमंडल के तीन एसडीएम ने कुछ काम नहीं किया, जबकि तीनों भारतीय प्रसासनिक सेवा के अधिकारी थे।

    इसमें वर्तमान एसडीएम प्रांजला ढांढा, पूर्व एसडीएम ओम प्रकाश गुप्ता व दिलीप प्रताप सिंह शेखावत ने कुछ भी काम नहीं किया। राजनीतिक दबाव में एलोरो होस्टल को हटाने से इनकार कर दिया है, जो हवाई अड्डा परिसर में अनधिकृत रूप से मौजूद है।

    प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव की मनमानी

    प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव राजीव लोचन बथ्क्षी ने प्रमाणपत्र को बिना कारण रोके रखा है। इससे हवाई अड्डे की कानूनी मान्यता पर प्रश्नचिह्न लग गया है। आज व्यवस्थागत लापरवाही और राजनीतिक दखल के कारण ठप पड़ा है।

    एयरपोर्ट अथॉरिटी, सेल और राज्य सरकार , तीनों की उदासीनता ने इस परियोजना को अधर में लटका दिया है। यदि जल्द ही सभी संबंधित पक्ष अपने-अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं करते हैं, तो बोकारो के लोग इस महत्वपूर्ण सुविधा से वंचित ही रह जाएंगे।