आज से तेजस के नाम से चलेगी भुवनेश्वर-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस, 200 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ेगी
Jharkhand News आज से भुवनेश्वर राजधानी एलएचबी तेजस कोच के साथ चलेगी। भुवनेश्वर से दिल्ली के बीच चलने वाली राजधानी एक्सप्रेस के कोच को बदलने का फैसला दक्षिण पूर्व रेलवे प्रबंधन ने लिया है। इससे यात्रा और भी आरामदायक होगी। साथ ही ट्रेन की सुरक्षा भी बढ़ेगी। एक तो इसे बनाने में खर्च कम आता है और यह सालोसाल चलती भी है।
जागरण संवाददाता, बोकारो। Jharkhand News: दक्षिण पूर्व रेलवे प्रबंधन ने भुवनेश्वर से दिल्ली के बीच चलने वाली राजधानी एक्सप्रेस के कोच को बदलने का निर्णय लिया है। भुवनेश्वर-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस तथा नई दिल्ली-भुवनेश्वर के सभी एलएचबी कोच को तेजस एलएचबी कोच में पहले ही बदला जा चुका है। अब यह राजधानी एक्सप्रेस तेजस राजधानी के रूप में चलेगी। यात्रियों की यात्रा पहले से आरामदायक व सुरक्षित रहेगी।
कई आधुनिक सुविधाओं से लैस होंगे कोच
बोकारो होकर रांची-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस तथा भुवनेश्वर राजधानी एक्सप्रेस चलती है। एलएचबी कोच जुड़ने से सीटों की संख्या में भी इजाफा होगा। तेजस कोच में इलेक्ट्रो-न्यूमैटिक असिस्टेड ब्रेक, ऑटोमेटिक एंट्रेंस प्लग टाइप डोर, सीटों में दोबारा डिजाइन की गई ई-लेदर अपहोल्स्ट्री की सुविधा होगी।
इसी के साथ बायो-टाॅयलेट के साथ बेहतर शौचालय-वैक्यूम असिस्टेड फ्लशिंग, यात्री सूचना प्रणाली और डिजिटल डेस्टिनेशन बोर्ड, आग और धुआं पहचान प्रणाली है। सीसीटीवी कैमरों के साथ ही कोच को बाहर एवं अंदर बेहतर ढंग से सजाया गया है।
क्या है एलएचबी कोच
लिंक हाफमेन बुश (एलएचबी) कोच को बनाने की फैक्ट्री कपूरथला, पंजाब में है। यह उन्नत कोच पहली बार वर्ष 2000 में जर्मनी से भारत लाया गया था। इसके बाद इसकी तकनीक पर आधारित कोच का निर्माण भारत में होने लगा।
अब तक ट्रेनों में एलएचबी कोच प्रयोग होता था। एलएचबी कोच की तुलना में तेजस एलएचबी कोच ज्यादा बेहतर व सुरक्षित है।
एलएचबी कोच एंटीटेलीस्कोपिक डिजाइन के तहत तैयार किए गए हैं, जिसका मतलब है कि वे एक-दूसरे से टकराते नहीं हैं और आसानी से नहीं गिरते।
एलएचबी कोच की खूबियां
- इस प्रकार के कोच की आयु 30 वर्ष की होती है।
- यह स्टेनलेस स्टील से बनाई जाती है और इस वजह से हल्की होती है।
- इसमें डिस्क ब्रेक का प्रयोग होता है।
- अधिकतम 200 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से इसका परिचालन किया जा सकता है, इसकी गति 160 किमी प्रति घंटा है।
- इसके रखरखाव में भी कम खर्च आता है।
- इस कोच में बैठने की क्षमता भी ज्यादा होती है। स्लीपर क्लास में 80, थर्ड एसी में 72 बर्थ होता है। यह 1.7 मीटर ज्यादा लंबे होते हैं।
- दुर्घटना होने के बाद इसके डिब्बे एक के ऊपर एक नहीं चढ़ते हैं, क्योंकि इसमें सेंटर बफर काउलिंग सिस्टम लगा होता है, जो सुरक्षा करता है।
- इस प्रकार के कोच को 24 महीनों में एक बार ही अनुरक्षण की आवश्यकता होती है। यह ट्रेन सीसीटीवी कैमरे से लैस है।