हूल विद्रोह के जननायकों को आजसू ने किया याद
आदिवासियों की संघर्षगाथा और उनके बलिदान को आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले नायकों को याद करने का खास दिन है।

हूल विद्रोह के जननायकों को आजसू ने किया याद
संवाद सहयोगी,चंदनकियारी : आदिवासियों की संघर्षगाथा और उनके बलिदान को आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले नायकों को याद करने का खास दिन है। यह बातें पूर्व मंत्री उमाकांत रजक ने गुरुवार को आजसू पार्टी के चंदनकियारी कार्यालय में सिदो-कान्हू, चांद-भैरव एवं फूलो-झानो को स्मरण कर चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह के प्रतीक के तौर पर हूल दिवस मनाया जाता है। संताल की पुण्यभूमि से हूल का शंखनाद अन्याय और दासता से मुक्ति की विजयगाथा है। उन नायकों का पवित्र स्मरण आज भी हम सबों का मार्गदर्शन करता है। ब्रिटिश सत्ता व साहूकारों के अत्याचारों के खिलाफ सिदो-कान्हू ने 1855-56 में एक विद्रोह की शुरुआत की थी, जिसे संताल विद्रोह या हूल आंदोलन के नाम से जाना जाता है। 30 जून 1855 को भोगनाडीह में संथाल आदिवासियों की सभा हुईथी। इसमें 400 गांवों के करीब 50 हजार संथाल एकत्र हुए थे। अंग्रेजों के जुल्म, शोषण और अत्याचार के विरुद्ध अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति वर्गों ने बिगुल फूंका और इस चिंगारी की लपटें पूरे झारखंड सहित अन्य राज्यों में फैल गई।
झारखंड के संसाधनों पर अवैध कब्जे से आदिवासी समुदाय का पलायन
बोकारो : हूल दिवस पर सीपीएम और मासस बोकारो के कार्यकर्ताओं ने गुरुवार को चास आइटीआइ मोड़ के पास सिदो-कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। मासस जिलाध्यक्ष दिलीप तिवारी व सीपीएम के लोकल कमेटी सचिव राज कुमार गोराई ने कहा कि आज सभी पूंजीपतियों की गिद्ध दृष्टि झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्यप्रदेश जैसे प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध राज्यों पर टिकी हैं। अवैध कब्जे के कारण आदिवासी समुदाय को यहां से भगाने का काम किया जा रहा है। विकास के नाम पर आदिवासियों को सामुदायिक संसाधनों से बेदखल करने में लगा हुआ है। मौके पर गया राम शर्मा, कुमार सत्येंद्र, भीम रजक, मो अब्बास, महादेव शर्मा, अमर चक्रवर्ती, आरपी वर्मा, मनोज कुमार, आरकेपी वर्मा आदि उपस्थित थे।
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