..तभी दूर होगी मानसिक संकीर्णता
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बोकारो : स्वामी विवेकानंद के जीवन दर्शन को उनकी जिज्ञासा, तत्वज्ञान, सेवा धर्म आदि से जाना जा सकता है। इसको जानने के बाद भारतीय सनातन परंपरा के प्रति लोगों के मन में जो संकीर्णता है, वह दूर हो जाएगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख हस्तीमल जैन ने यह बात कही। वे विवेकानंद सार्धशती समारोह समिति की ओर से सेक्टर दो कला केन्द्र में आयोजित गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
उन्होंने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए कहा कि स्वामीजी के जीवन का आधार नरसेवा नारायणसेवा, नारी शिक्षा, युवकों की दिशा आदि के माध्यम से समरस एवं समृद्ध भारत का निर्माण हो सकता है। आज समाज के उन्नयन के लिए सही मायने में इसे आधार बनाया जाए तो आतंकवाद, मतांधता और संकीर्णता सभी दूर हो जाएंगे।
कहा कि विवेकानंद के गुरु निरक्षर थे। फिर भी बड़े-बड़े विद्वानों का मार्गदर्शन अपने तत्वज्ञान के बल पर किया। व्यक्ति मोक्ष चाहता है तो उसे तत्वज्ञानी बनना पड़ेगा। भोग-विलास से नहीं बल्कि समाज की वास्तविक परिस्थितियों, कुरीतियों एवं रुढि़वादिता को जानकर ही व्यक्ति तत्वज्ञानी हो सकता है। आज तक विदेशियों ने केवल भारतीय संस्कृति का दुष्प्रचार ही किया जिसे आमजन ने अपने मस्तिष्क में बैठा लिया। जरूरत है सनातन संस्कृति आधारित स्वामीजी के सपनों को साकार करने की। इससे ही भारतीय अस्मिता बचायी जा सकती है।
कार्यक्रम के संयोजक सेल रिफ्रैक्ट्रीज यूनिट के महाप्रबंधक भुवानंद त्रिपाठी ने कहा कि दूसरों का उपकार करना पुण्य और दु:ख देना पाप है। रामभरोसे गिरि, प्रो. पीएल वर्णवाल, सत्यदेव तिवारी, डॉ. नरेन्द्र कुमार राय, डॉ. रामनारायण सिंह, प्रो. ध्रुव सिंह, आर शर्मा, शिवहरि बंका, ऋषिकेश झा, योगेश नारायण चतुर्वेदी ने भी विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन संदीप तिवारी ने किया। मौके पर आरएसएस के प्रांत प्रचारक मिथिलेश नारायण, राकेश लाल, विनोद ओझा, दिलीप कुमार, हिमांशु कुमार वर्मा, अवधेश चौधरी, कमलकांत जैन, जितेन्द्र तिवारी आदि उपस्थित थे।
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