कलियुग में कामधेनु के समान है श्रीराम कथा : रामेश्वर पंडित
संवाद सहयोगी, कटड़ा : श्रीराम कथा कलियुग में कामधेनु के समान है। अगर कोई श्रद्धा से प्रकटर
संवाद सहयोगी, कटड़ा : श्रीराम कथा कलियुग में कामधेनु के समान है। अगर कोई श्रद्धा से प्रकटरहित कथा का श्रवण करे तो उसके लिए कोई चीज दुर्लभ नहीं है। रामकथा सज्जन लोगों के लिए संजीवनी का काम करती है।
नौ दिवसीय श्रीराम नाम कथा के चौथे दिन पंडित रामेश्वर जी ने कहा कि श्रीरामचरित मानस में जितने भी पात्र हैं, उन लोगों का जीवन के प्रति दृष्टिकोण अद्भुत रहा है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के कार्यो का जीवन पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। श्रीरामचरित मानस को पढ़कर देखा था। जब तक समाज में जोड़ने की प्रक्रिया नहीं होगी, तब तक रामराज की कल्पना बेमानी होगी। जब भगवान श्रीराम वन की ओर चले तो निषादगूह, केवट, संतों, दलित शबरी से तथा राक्षसराज विभीषण और बंदर सुग्रीव से मिले। वह सभी को साथ जोड़े और तभी रामराज का निर्माण हो पाया।
आज जब हम रामराज का सपना देख रहे हैं तो यह तभी संभव है जब हम पूरे समाज को जोड़कर चलें। जातिवाद से रामराज का निर्माण नहीं हो सकता। भगवान श्रीराम क्षत्रिय समाज में जन्म लेने के बाद किसी क्षत्रिय से नहीं मिले, लेकिन अन्य जातियों के लोगों से मिले। यही श्रीराम की शुद्ध राजनीति थी। इसलिए जरूरी है कि समाज के सभी वर्गो को साथ लेकर चलने में ही समाज, व्यक्ति और देश का कल्याण हो सकता है। कथा के अंतिम दिन कथा पंडाल श्रद्धालुओं से खचाखच भरा रहा। देर रात तक सैकड़ों लोग पांडाल में डटे रहे और अंतिम क्षण तक कथा श्रवण करते रहे।