जम्मू-कश्मीर: रामबन का सुलाई शहद रोजगार के साथ सेहत में घोल रहा मिठास, PM मोदी भी कर चुके हैं तारीफ
जम्मू-कश्मीर के रामबन का सुलाई शहद सेहत और रोजगार का संगम बन गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसकी तारीफ की है। यह शहद औषधीय गुणों से भरपूर है और स्थान ...और पढ़ें

स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता संग सेहत की मिठास घोल रहा सुलाई शहद।
अमित माही, उधमपुर। चिनाब नदी के तट और पीर पंजाल पर्वत शृंखला में बसे रामबन का सुलाई शहद अब मिठास के साथ सेहत, स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुका है। वन तुलसी (सुलाई) के फूलों पर मंडराती मधुमक्खियां इस खास शहद का उत्पादन कर स्थानीय अर्थव्यवस्था को नया सहारा दे रही हैं।
सेहत का प्राकृतिक खजाना भी लुटा रही हैं। स्थानीय मधुमक्खी पालकों की मेहनत के बूते पहाड़ी इलाकों की प्राकृतिक विरासत सोलाई शहद राष्ट्रीय पहचान मिलने के बाद अब अंतरराष्ट्रीय ब्रांड बनने की राह पर है। इससे स्थानीय किसानों और मधुमक्खी पालकों की आय में वृद्धि हुई ही, स्थानीय किसानों के लिए रोजगार का प्रमुख साधन भी बन गया है।
हाल ही में 'मन की बात' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सुलाई शहद की मिठास को देश के साथ पूरी दुनिया को अवगत कराया। यह शहद अपनी असाधारण शुद्धता, अनूठे स्वाद और औषधीय गुणों के कारण एक खास पहचान बना रहा है। सफेद रंग का यह शहद विशेष तत्वों के कारण विशिष्ट है।
वन तुलसी पौधे का फूल जंगल में ही मिलता है और इसके फूल केवल सितंबर और अक्टूबर के दो माह में ही आते हैं। सरसों या अन्य फूलों से तैयार शहद में कीटनाशक और खाद के अवशेष रह सकते हैं। वहीं, वन तुलसी के पौधे से तैयार शहर पूरी तरह जैविक और शुद्धता की गारंटी है। सुलाई को भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग से नई पहचान मिली है और लोगों का भरोसा भी बढ़ा है।
प्रमुख बिंदु
- रामबन क्षेत्र में 1200 किसान मधुमक्खी पालन से जुड़े, सामान्य से चार गुणा अधिक है सुलाई शहद की कीमत
- इंटरनेट प्लेटफार्म पर भी उपलब्ध है प्राकृतिक गुणों का भंडार सुलाई शहद
- सामान्य शहद 300-400 रुपये प्रति किलो में बिकता है, जबकि सुलाई शहद की कीमत 1200 से 1500 रुपये तक
पारंपरिक चिकित्सा में भी उपयोगी है वन तुलसी
वन तुलसी पारंपरिक चिकित्सा में भी उपयोगी है। इसका उपयोग दांत दर्द, उच्च रक्तचाप, बुखार, गठिया और खाज (स्कैबीज) जैसी शारीरिक समस्याओं में किया जाता है। ताजे पत्तियों का लेप खुजली में तत्काल राहत देता है। जबकि इसके एक-दो बूंद इसका अर्क कान दर्द में लाभकारी माना जाता है। वन तुलसी के फूलों से बना शहद पूरी तरह जैविक होता है और इसमें पौधे के औषधीय गुण भी विद्यमान रहते हैं।
एक जिला, एक उत्पाद के तहत शहद से सुधरी किसानों की आर्थिकी
'एक जिला, एक उत्पाद' के तहत जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दिया गया। 2015 में यहां मात्र 100 मधुमक्खी पालक थे। किसानों को प्रेरित करने के साथ उन्हें प्रशिक्षण और आर्थिक सहयोग मिला तो उन्होंने मेहनत से इस शहद उत्पादन में नए आयाम स्थापित कर दिए।
अब जिले के सैकड़ों किसान मधुमक्खी पालन से जुड़े हैं। पिछले पांच वर्ष में यहां शहद उत्पादन लगभग ढाई गुना बढ़ गया है और इसमें एक चौथाई सुलाई शहद होता है। 2023 में सुलाई को जीआई टैग मिलने के बाद इसे विशेष पहचान मिली और अब यह शहर देशभर के बाजार में पहुंच रहा है।
2021-22 में रामबन जिले में शहद उत्पादन 3994 क्विंटल था। आज यह बढ़कर 9,182 क्विंटल तक पहुंच चुका है। आंकड़े दर्शाते हैं कि मधुमक्खी पालन रामबन जिले में किसानों की आय बढ़ाने, ग्रामीण आजीविका मजबूत करने और प्राकृतिक संसाधनों के सदुपयोग का एक महत्वपूर्ण आधार बन चुका है।
अब उद्योग का रूप ले रहा शहद उत्पादन
रामबन में मधुमक्खी पालन के विकास के साथ यह शहद उत्पादन अब उद्योग का रूप ले रहा है। बनिहाल में एक शहद प्रसंस्करण इकाई स्थापित की गई है। इसके साथ ही मधुमक्खी पालकों के लिए बनिहाल में मधुमक्खी पालन इकाइयों का भी निर्माण किया जा रहा है। शहद के संग्रहण और विपणन को सुगम बनाने के लिए कलेक्शन सेंटर भी स्थापित किया गया। इसके अलावा मधुमक्खियों के परागण कार्य और फूलों के बेहतर प्रसंस्करण के लिए पोलिनेशन सेंटर भी स्थापित किया गया।
रामबन जिले में मधुमक्खी पालन के आंकड़े
कुल मधुमक्खी पालक 550
अप्रत्यक्ष मधुमक्खी पालक 1200
कुल कॉलोनियां (एपिस मेलीफेरा) 45,210
कुल कॉलोनियां (एपिस सिराना) 8,500
कुल शहद उत्पादन 918 टन
सोलाई शहद उत्पादन 145 टन
रामबन जिले में मधुमक्खी पालन की वर्षवार वृद्धि
वर्ष---- कॉलोनियां---- उत्पादन (क्विंटल में)
2021–2022---- 19,023---- 3,994
2022–2023---- 21,000---- 4,150
2023–2024---- 27,500---- 5,510
2024–2025---- 34,280---- 7,128
2025–2026---- 45,210---- 9,182
सोलाई शहद रामबन की पहचान ही नहीं, बल्कि किसानों की आय वृद्धि और आत्मनिर्भरता का मजबूत आधार बन चुका है। गूल और बनिहाल जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में वन तुलसी (प्लेक्ट्रैंथस रूगोसस) प्राकृतिक रूप से जैविक शहद उत्पादन के लिए अनूठा वातावरण देती है।
कृषि विकास कार्यक्रम से यहां मधुमक्खी पालन तेजी से बढ़ा है और सैकड़ों परिवार सशक्त हो रहे हैं। सोलाई शहद का जीआई टैग हमारे किसानों के लिए गर्व का प्रतीक है और आने वाले समय में यह उत्पाद राष्ट्रीय मंच पर और अधिक चमकेगा। डॉ. विनय जंडियाल, मुख्य कृषि अधिकारी, रामबन
जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में सुलाई कहे जाने वाली वन तुलसी के फूलों से मधुमक्खियां एक बेहद खास तरह का शहद बनाती हैं। सफेद रंग का यह शहद अपनी प्राकृतिक गुणवत्ता व औषधीय गुणों के कारण काफी प्रसिद्ध है। यह शहद अब जम्मू-कश्मीर की एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक विरासत के रूप में उभर रहा है- मन की बात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

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