बंदरों ने फसल तबाह की तो फूलों की खेती से बदली किस्मत
रोहित जंडियाल ऊधमपुर कहते हैं कि सही समय पर लिया गया सही फैसला किसी की भी किस्मत ...और पढ़ें

रोहित जंडियाल, ऊधमपुर :
कहते हैं कि सही समय पर लिया गया सही फैसला किसी की भी किस्मत को बदल सकता है। ऐसा ही कुछ रामनगर तहसील के थपलाल गांव के रहने वाले युवा सुशील कुमार पुत्र जुगल किशोर के साथ हुआ। बंदरों ने उसकी गेहूं की फसल तबाह करनी शुरू की तो उसने फूलों की खेती शुरू कर दी। तीन वर्ष में ही वह बागवानी विभाग की सहायता के साथ आत्मनिर्भर बन गया है। वह 12 कनाल भूमि में फूलों की खेती कर साल भर में एक लाख से सवा लाख तक कमा लेता है। लगातार वह अपने फूलों की खेती के कारोबार को बढ़ा रहा है। जिला उपायुक्त ऊधमपुर इंदु कंवल चिब ने भी उसकी प्रशंसा की है।
रामनगर से मात्र कुछ किलोमीटर दूर थपलाल गांव के रहने वाले सुशील शर्मा के पास करीब 40 कनाल भूमि है। वह इसी पर मौसम के अनुसार खेती करके अपना गुजारा कर रहा था, लेकिन कुछ वर्ष से रामनगर में बंदरों की समस्या बढ़ गई। बंदरों ने खेतों में उत्पात मचाना शुरू कर दिया और फसलों को तबाह कर दिया। इससे सुशील को भी नुकसान हुआ। उसने सोचा क्यों न ऐसी कोई फसल लगाई जाए, जिसे बंदर तबाह न कर सकें। उसे गेंदे के फूलों की खेती का सुझाव दिया गया। उसने कृषि व बागवानी विभाग से भी इस पर चर्चा की। साल 2017 में पहली बार सुशील ने गांव में पहले प्रयोग करते हुए चार कनाल भूमि पर गेंदे के फूलों की खेती शुरू की।
सुशील ने इसके लिए बागवानी विभाग से भी सहायता ली। उसने हाइब्रिड केएक्स22 बीज का इस्तेमाल किया। पहली बार ही फसल अच्छी होने के कारण उसे अधिक मुनाफा तो नहीं हुआ, लेकिन बंदरों ने फसल को नुकसान नहीं पहुंचाया। उसके खेतों की ओर बंदरों ने रुख ही नहीं किया। इसने सुशील का हौसला बढ़ाया। इसके बाद अगले साल उसने आठ कनाल और इस बार 12 कनाल भूमि पर गेंदे के फूलों की खेती की। सुशील ने बताया कि उसने यह खेती करते समय रिस्क लिया था, लेकिन अब इससे संतुष्ट है। हालांकि दूरदराज का गांव होने के कारण जम्मू तक फूलों को लाकर बेचने में खर्च भी अधिक होता है, लेकिन उसे इस बात को संतोष है कि अब फसल बर्बाद नहीं हो रही है और रुपये भी आ रहे हैं। बागवानी विभाग एक कनाल भूमि पर ढाई हजार रुपये की देता है सहायता
सुशील ने बताया कि वह जून महीने में फूलों की खेती शुरू कर देता है और दीपावली तक इसे खत्म करता है। फूल तैयार होने में तीन से चार महीने लग जाते हैं। बागवानी विभाग एक कनाल भूमि पर ढाई हजार रुपये की सहायता देता है। इससे बीज का खर्च निकल जाता है। इसके बाद सरसों और गेहूं की खेती करता है। इससे अपने घर का खर्च निकल जाता है। सुशील का कहना है कि वह आत्मनिर्भर बनना चाहता था, इसीलिए सभी विकल्पों की तलाश रहती है। सरकारी योजनाएं बहुत हैं। अगर समय पर इनका इस्तेमाल किया जाए तो सपनों को पूरा करने में मदद मिलती है। सुशील अब इससे भी अधिक जमीन पर फूलों की खेती करना चाहता है। डीसी ने सुशील के प्रयासों को सराहा
वहीं, ऊधमपुर की डिप्टी कमिश्नर इंदु कंवल चिब ने भी सुशील के प्रयासों की सराहना की है। उन्होंने कहा कि थपलाल, रामनगर में कृषि विविधीकरण अपने सर्वोत्तम पर है। वहीं, कृषि विभाग में कार्यरत राजीव शर्मा ने कहा कि सुशील ने गांव में बहुत अच्छा प्रयास किया है। विभाग उसकी पूरी सहायता करने का प्रयास करता है।

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