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    Wular Lake: पर्यटन स्थल ही नहीं, मछुआरों की रोजी-रोटी है वुलर झील, कश्मीर में मछली उत्पादन में 60 फीसदी का योगदान

    वुलर झील उत्तरी कश्मीर के बांदीपुर जिले में स्थित एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है। यह अपनी अद्भुत सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है और घाटी के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वुलर झील मछलियों के उत्पादन का भी एक प्रमुख स्रोत है? घाटी में मछलियों के उत्पादन का 60 प्रतिशत इसी झील से पूरा होता है।

    By raziya noor Edited By: Sushil Kumar Updated: Thu, 13 Feb 2025 05:43 PM (IST)
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    टूरिस्ट प्लेस के अलावा क्यों खास है घाटी की वुलर झील?

    रजिया नूर, श्रीनगर। उत्तरी कश्मीर के बांदीपुर जिले में हरमुख पहाड़ियों की तलहट्टी में 200 वर्ग किलोमीटर में फैली एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील कहलाने वाली वुलर झील अपनी अद्भुत सुंदरता के चलते न केवल घाटी के प्रसिद्ध पर्यटनस्थलों में गिना जाता है, बल्कि झील मछलियों के उत्पादन के लिए भी सबसे बड़े स्थानीय जलस्रोतों की सूची में शामिल है।

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    घाटी में मछलियों के उत्पादन का 60 प्रतिशत इसी झील से पूरा होता है। इस झील की बदौलत हजारों मछुआरों के घर के चूल्हे जलते हैं। हालांकि, बीते कुछ वर्षों से रहने वाली मौसमी परिस्थितियों के चलते बाकी जलस्रोतों की तरह इस झील के जलस्तर में भी कमी आई, लेकिन इसके बावजूद झील में पनपने वाली मछलियों के उत्पादन में कोई कमी नहीं आई।

    वुलर झील से चलती है मछुआरे की रोजी-रोटी

    मत्स्य पालन विभाग के सहायक निदेशक शौकत अहमद भट ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि बीते कुछ वर्षों के साथ-साथ इस वर्ष के दौरान भी झेलम, डल झील व घाटी के अन्य जलस्रोतों की तरह इस झील में भी मौसम की बेरुखी का प्रभाव झेलना पड़ा।

    झील में पानी के स्तर में भी कमी आ गई, लेकिन इसके बावजूद झील में पनपने वाली मछलियों के उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। भट ने कहा कि गत वर्ष यानी 2024 में झील से 60 हजार मछलियों का उत्पादन हुआ।

    प्रति वर्ष झील से बरामद होने वाली मछलियों की औसत के बराबर है और घाटी में खपत की जाने वाली मछलियों का 60 प्रतिशत हिस्सा हमारी इसी झील से पूरा होता है। उन्होंने कहा कि झील में मछलियों के उत्पादन में बढ़ोतरी लाने के लिए विभाग प्रयास कर रहा है।

    झील का पानी दूषित न हो इसके लिए उपाय किए जाते हैं। इसमें मछलियां आसानी से पनप सकें। भट ने कहा कि झील में मछलियां पकड़ने के लिए 12 हजार से अधिक मछुआरे पंजीकृत हैं। मछलियां पकड़कर उन्हें बाजारों में बेचकर अपनी रोटी रोजी कमाते हैं।

    मछुआरों के लिए 2 दर्जन से अधिक ऑटो रिक्शा उपलब्ध

    उन्होंने कहा कि इन मछुआरों को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए कई केंद्रीय योजनाओं के साथ-साथ इनको प्रतिमाह 3 हजार की वित्तीय सहयता भी दी जाती है, जबकि प्रशासन ने इन मछुआरों के लिए 2 दर्जन से अधिक ऑटो रिक्शा भी उपलब्ध किए हैं, ताकि यह मछुआरे आराम से अपना माल बाजारों तक पहुंचा सके।

    भट ने कहा कि विभाग समय-समय पर मछुआरों को झील के वातावरण को हानि पहुंचाए बगैर मछलियां पकड़ने के गुर तथा इनकी मार्केट वैल्यू बढ़ाने संबंधित जानकारी भी उपलब्ध कराती है।

    भट ने कहा कि चूंकि वुलर झील केवल एक झील ही नहीं है, बल्कि अब घाटी के प्रसिद्ध व आकर्षित पर्यटनस्थलों में इसको गिना जाता है और भारी संख्या में पर्यटक इस पर्यटनस्थल की सैर करते हैं।

    ऐसे में पर्यटकों की इस बढ़ती संख्या से झील का कोमल वातारावण दूषित न हो और मछलियों समेत इसमें पनपने वाले जीव-जंतुओं को कोई हानि न पहुंचे, इसका भी विभाग ध्यान रख रहा है।

    झील में इन मछलियों का होता है उत्पादन

    बता दें कि घाटी में मछलियों की खूब खपत होती है और स्थानीय लोग तीज त्योहारों के साथ साथ सर्दियों में मछलियों का खूब सेवन करते हैं जिसके चलते मछलियां हमेशा डिमांड में रहती हैं। मछलियों के व्यापार के साथ घाटी के हजारों लोग जुड़ें हैं।

    श्रीनगर के गाड़ा कोचा, छत्ताबल, हरी सिंग हाई स्ट्रीट व तेलबल इलाकों के साथ-साथ बांदीपुर, सोपोर, कुपवाड़ा, अनंतनाग तथा अन्य जिलों में बड़े फिश मार्केट हैं जहां आप अपनी मन पसंद मछलियों की प्रजातियां खरीद सकते हैं।

    प्रति वर्ष विभन्न जलस्रोतों, जिनमें झेलम, मानसबल झील, वुलर झील व अन्य स्थानीय नदी नाले शामिल हैं के साथ-साथ विभिन्न फिश फार्मों से 6090 टन मछलियां, जिनमें ट्राउट, कामन कार्पस, रूहू, मसकिटोफिश आदि शामिल हैं, का उत्पादन होता है। 

    इससे प्रति वर्ष घाटी को 4012.60 लाख रुपये की आमदनी होती है और वुलर झील इस उत्पादन में एक बड़ा हिस्सा उपलब्ध कराता है। झील में कामन कार्पस, रोजी बॉर्ब, मोसकिटोफिश, निमाचेलस व क्रास्कोचेलस नामक प्रजातियों की मछलियों का उत्पादन होता है।

    गौरतलब है कि वुलर में मछलियों के अलावा सिंघाड़े व नदरू का भी उत्पादन होता है। जबकि इसके अलावा यह झील घाटी के प्रसिद्ध वैट लैंडों में भी शुमार होता है और सर्दियों के मौसम में लाखों की संख्या में प्रवासी पक्षी झील में डेरा जमाए रखते हैं।

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