Wular Lake: रंग लाई वुलर संरक्षण की मुहिम... 30 साल बाद कमल के साथ झील में लहलहाने लगी खुशहाली
श्रीनगर में एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की वुलर झील जो कभी दलदल और कचरे का ढेर बन गई थी सरकारी और सामाजिक प्रयासों से पुनर्जीवित हो रही है। पिछले चार वर्षों में वुलर झील संरक्षण मुहिम के चलते झील में फिर से कमल खिलने लगे हैं और खुशहाली लौट आई है।

नवीन नवाज, श्रीनगर। नाव में बैठ रहे अरशद ने अपने मित्र बिलाल को पुकारते हुए कहा कि आओ-जरा हम भी नजारा देखकर आएं, मैंने कभी यहां कमल को खिला नहीं देखा है। बिलाल भी नाव में सवार हुआ फिर दोनों कुछ ही दूरी पर झील में खिले कमल के फूलों के बीच पहुंच गए।
इनकी उम्र 20-22 वर्ष के बीच है और दोनों एशिया की ताजा व मीठे पानी की सबसे बड़ी झीलों में से एक वुलर के किनारे बसे बनियारी गांव में रहते हैं। इन्होंने अपने जीवन में कभी वुलर में कमल खिला नहीं देखा था। जी हां, दलदल व कचरे का डंपिंग ग्राउंड बनती जा रही वुलर में सरकारी प्रयासों, जागरूकता व लोगों के सहयोग से लगभग तीन दशक बाद फिर कमल खिला है।
जीवंत हो रही वुलर के आसपास बसे विभिन्न गांवों में ग्रामीणों के चेहरे भी इससे खिल उठे हैं, क्योंकि उनकी आजीविका का एक साधन फिर बहाल हो रहा है। वुलर के संरक्षण की मुहिम से तीन वर्ष में कमल के साथ खुशहाली भी लहलहाने लगी है। कश्मीर में कमल के साथ कमल ककड़ी (स्थानीय भाषा में नदरू) की काफी मांग है और प्रमुख कश्मीरी व्यंजन इससे बनते हैं। किसान इसे 250 से 400 रुपये प्रति किलो में बेच रहे हैं।
उत्तरी कश्मीर के जिला बांदीपोरा में पहाड़ों की गोद में स्थित वुलर झील 1911 में 217 वर्ग किलोमीटर में फैली थी और इसमें लगभग 58 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल दलदली था, लेकिन अतिक्रमण, गाद के जमाव और झील के विभिन्न हिस्सों में भराई कर खेत तैयार किए जाने से यह 86 वर्ग किलोमीटर से भी कम रह गई। इसके क्षेत्रफल में 45 प्रतिशत की कमी आई।
वुलर और डल झील के संरक्षण प्राधिकरणों में अपनी सेवाएं दे चुके हायड्रोलिक इंजीनियरिंग एंड एन्वायरमेंट विशेषज्ञ एजाज रसूल ने बताया कि वुलर एक तरह से मर रही थी। झील में आसपास के निर्माण स्थलों से बहकर आया चूना मिलता था। झेलम में पहुंचने वाला सीवरेज भी वुलर में जाता है। सरकार ने वुलर को बचाने के लिए वुलर संरक्षण एवं प्राधिकरण का गठन किया। इसमें स्थानीय पर्यावरणविदों की भूमिका अहम रही।
ऐसे शुरू हुए प्रयास
वुलर संरक्षण एवं प्रबंधन प्राधिकरण के एक अधिकारी ने बताया कि झील को बचाने के लिए हमने स्थानीय लोगों को जोड़ा और उन्हें समझाया कि कैसे एक जीवंत वुलर उनकी जिंदगी को खुशहाल बना सकती है। वुलर में कभी 11 प्रजातियों की मछली होती थी, जो चार प्रजातियों तक सिमट गई थी।
रोजाना स्थानीय मछुआरे 20-25 किलो मछली पकड़ते थे, अब सिर्फ दो-चार किलो तक सीमित हो गए थे। सिंगाड़ा की खेती सीमित हो गई थी, कमल ककड़ी भी अन्य जगहों से मंगवानी पड़ती थी। इसको लेकर उन्हें जागरूक किया गया।
स्कूलों में किताबें उपलब्ध कराने से लेकर हटाई गाद
वुलर संरक्षण एवं प्राधिकरण में जोनल आफिसर मुदस्सर महमूद मलिक ने कहा कि करीब तीन वर्ष पहले हमने वुलर के आसपास जागरूकता शिविर आयोजित किए। स्कूलों की लाइब्रेरी में वुलर के बारे में जानकारी प्रदान करती किताबें उपलब्ध कराई।
हमने वुलर के विभिन्न हिस्सों में उगे पेड़ों को जड़ों समेत हटवाया। गाद हटाने के लिए ड्रेजिंग की, जिससे झील में वर्षों से जमा मिट्टी बाहर निकाली गई। झील में सीवरेज के बहाव को यथासंभव रोका गया है। अतिक्रमण हटाते हुए तटबंदी की। झील के आसपास क्षेत्र को जियो टैग किया गया।
मुदस्सर ने बताया कि तीन वर्ष के दौरान 97 लाख क्यूबिक मिट्टी को झील से निकाला गया है। इससे कई प्राकृतिक चश्मे बहाल हुए हैं। इसी दौरान मछलियों की संख्या भी बढ़ी। हमारे लिए टर्निंग प्वायंट झील में कमल के फूल खिलना था, क्योंकि यहां लोग इसे भूल चुके थे। हमने यहां कुछ हिस्सों में कमल के बीज भी डाले और इस वर्ष यहां खूब कमल खिला है, नदरू पैदा हुआ है।
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