Terror Funding Case: सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीर के अलगाववादी नेता शब्बीर शाह की जमानत अर्जी 7 जनवरी तक टाली
सुप्रीम कोर्ट ने आतंकी फंडिंग मामले में कश्मीर के अलगाववादी नेता शब्बीर शाह की जमानत याचिका पर सुनवाई 7 जनवरी तक के लिए टाल दी है। शब्बीर शाह पर टेरर ...और पढ़ें

एनआइए ने जून 2019 में शब्बीद शाह को गिरफ्तार किया था।
डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। सुप्रीम कोर्ट ने वीरवार को कश्मीरी अलगाववादी नेता शब्बीर अहमद शाह की टेरर फंडिंग केस में जमानत की अर्जी पर सुनवाई 7 जनवरी तक टाल दी।
जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच शाह की स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट के जमानत देने से मना करने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
जून 2019 में गिरफ्तार हुए शाह पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) का आरोप है कि उसने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी नेटवर्क को मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाई। यही नहीं उसने हवाला चैनलों और नियंत्रण रेखा ट्रेड के जरिए फंड हासिल करके तोड़-फोड़ वाली और आतंकी गतिविधियों में मदद की।
एनआइए की तरफ से शाह का नाम 4 अक्टूबर, 2019 को फाइल की गई दूसरी सप्लीमेंट्री चार्जशीट में शामिल किया गया था। जब मामला शुरू हुआ, तो एनआइए के वकील ने मांग की कि कार्रवाई को जनवरी तक टाल दिया जाए। उन्होंने इसके पीछे तर्क दिया कि सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता दूसरी बेंच के सामने एक आधे-अधूरे मामले में व्यस्त हैं इसलिए वह मौजूद नहीं थे।
शाह के वकील ने सुनवाई टालने का किया था विरोध
शाह की तरफ से पेश सीनियर वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने सुनवाई टालने के अनुरोध का विरोध किया और जस्टिस नाथ की बेंच से मामले को अगले हफ्ते सुनवाई के लिए लिस्ट करने की अपील की। एक महीने की सुनवाई टालने की जरूरत पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एनआइए के वकील से पूछा, “जनवरी क्यों? वह जमानत की मांग रहे हैं। मामला कब से पेंडिंग है?”
7 जनवरी को होगी अगली सुनवाई
शाह की अर्जी को 7 जनवरी को सुनवाई के लिए पोस्ट करते हुए जस्टिस नाथ की बेंच ने चेतावनी दी कि आगे कोई सुनवाई नहीं होगी। इससे पहले सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल ग्राउंड पर शाह की तुरंत रिहाई का ऑर्डर देने से मना कर दिया था हालांकि उसने उनकी जमानत अर्जी पर एनआइए का जवाब मांगा था। उस समय, जस्टिस नाथ की बेंच गोंसाल्वेस की इस बात से सहमत नहीं दिखी थी कि शाह की “बहुत बीमार” हालत को अंतरिम राहत की जरूरत है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज की थी जमानत याचिका
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने शाह की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि एक गैर-कानूनी संगठन के चेयरमैन के तौर पर वह रिहा होने के बाद इसी तरह की गतिविधियों में शामिल हो नहीं हो सकते हैं। या फिर सबूतों से छेड़छाड़ या उन गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं जिनसे अभी पूछताछ होनी है।
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस शलिंदर कौर और नवीन चावला की बेंच ने ट्रायल में देरी के आधार पर जमानत पर रिहाई की उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा, “हालांकि अपील करने वाला (शाह) पांच साल से कैद में है, लेकिन आरोप पहले ही तय हो चुके हैं और ट्रायल चल रहा है। प्रॉसिक्यूशन की तरफ से अपने गवाहों से पूछताछ न करने में कोई देरी नहीं हुई है।”
इसके अलावा, जस्टिस कौर की बेंच ने कहा कि शाह के खिलाफ गंभीर आरोपों और इसमें शामिल मुद्दों की संवेदनशीलता और गंभीरता को देखते हुए नजरबंद की उनकी वैकल्पिक याचिका पर विचार करने का कोई सवाल ही नहीं है।

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