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    Republic Day 2024: जम्मू-कश्मीर में बच्चे-बच्चे को याद है 26 जनवरी, पढ़िए समझौते से लेकर भारत में विलय तक की पूरी कहानी

    Updated: Fri, 26 Jan 2024 08:54 AM (IST)

    Republic Day 2024 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के लिए तो खास है ही इसी के साथ इस तारीख का जम्मू-कश्मीर के लिए भी खासा महत्व है। इसी दिन साल 1957 में जम्मू-कश्मीर औपचारिक रूप से देश का हिस्सा बना था। इसी क्रम में जानते हैं जम्मू-कश्मीर के भारत मे विलय होने की पूरी कहानी। भारत को कश्मीर का विलय करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।

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    Republic Day 2024: जम्मू-कश्मीर में बच्चे-बच्चे को याद है 26 जनवरी

    डिजिटल डेस्क, श्रीनगर (Republic Day 2024 and Indian Side Of J&k)। देश के लिए 26 जनवरी का दिन बेहद खास है और हो भी क्यों न हो इसी दिन देश का संविधान लागू हुआ था। लेकिन मौके से अलग यह तारीख जम्मू-कश्मीर के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। इसी दिन साल 1957 में जम्मू-कश्मीर औपचारिक रूप से हमारे देश का हिस्सा बना था। जम्मू-कश्मीर के भारत में शामिल होने की कहानी आसान नहीं थी। इसके पीछे युद्ध, कुटनीति और कई शर्तें थीं, जिनके मानने के बाद ही कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन सका।

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    इसी क्रम में आइए, इसके इतिहास को खंगालते हुए इस तारीख का जम्मू-कश्मीर के लिए क्या महत्व है, इसकी चर्चा करते हैं...

    आजादी के समय थीं 565 रियासतें

    भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय होने की कहानी आजादी के दौरान शुरू होती है। यह वह समय था जब भारत स्वतंत्र हुआ, लेकिन कईं चुनौतियों और समस्याओं के साथ। आजादी के समय देश में 565 रियासतें थीं, जिन्हें रजवाड़े कहा जाता था। सन् 1947 में पाकिस्तान के साथ-साथ ये देसी रियासतें भी स्वतंत्र और अलग रहना चाहती थीं। इनमें से अधिकतर रजवाड़ों को तत्कालीन गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने हिंदुस्तान में शामिल तो किया लेकिन चार रियासतें ऐसी थीं जो अंत तक मानी नहीं। इनमें हैदराबाद, जूनागढ़ , त्रावणकोर और कश्मीर शामिल थे।

    भारत-पाक युद्ध और कश्मीर

    सभी रियासतों को सरदार पटेल और उनके सलाहकार वीपी मेनन के सहयोग से भारत में शामिल कर लिया गया। लेकिन कश्मीर अंत तक अपनी मनमानी पर अड़ा रहा। अंत में सन् 1947 में भारत-पाक युद्ध में मजबूरन कश्मीर को भारत की सहायता की जरूरत आन पड़ी। लेकिन भारत ने कश्मीर की मदद इस शर्त पर की, कि अगर कश्मीर भारत का हिस्सा बनेगा तभी भारत कश्मीर की मदद के लिए अपनी सेना भेजगा। इस बात को तत्कालीन कश्मीर के राजा हरि सिंह ने मान लिया और विलय पत्र पर (Instrument of Accession) हस्ताक्षर कर भारत में शामिल होने का फैसला किया।

    भारत को मिले ये अधिकार

    राजा हरि सिंह ने जिस पत्र (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन) पर साइन किए थे उसके आधार पर भारत के क्षेत्राधिकार में बाहरी मामले, संचार और सुरक्षा को रखा गया। शर्त के बाद सन् 1948 में महाराजा हरि सिंह ने शेख अब्दुल्ला को अंतरिम सरकार को रूप में जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया। जम्मू-कश्मीर की संवेदनशीलता को देखते हुए राज्य और भारत सरकार की शक्तियों में सामंजस्य बरकरार रखने के लिए भारत की संविधान सभा ने अनुच्छेद 306 (A) नाम के प्रावधान का एक ड्राफ्ट तैयार किया। यही बाद में अनुच्छेद 370 कहलाया।

    जब पहली बार संविधान सभा के हुए चुनाव

    जम्मू कश्मीर के सदर-ए-रियासत (तत्कालीन राज्यपाल) युवराज करण सिंह 1957 में जेके विधानमंडल के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए। 

    अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को अलग ध्वज, प्रधानमंत्री और संविधान रखने की इजाजत देता है। कुछ अपवादों को छोड़कर राज्य के पास काफी शक्तियां थीं। यही कारण है कि सन् 1951 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का चुनाव हुआ और सन् 31 अक्टूबर, 1951 को को इस बाबत श्रीनगर में बैठक हुई। जिसके बाद 6 फरवरी 1954 को जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने राज्य के भारत संघ में विलय का रास्ता साफ कर लिया और सन् 26 जनवरी, 1957 का राज्य ने अपना संविधान लागू किया। यह वह दिन था जब राज्य विधानसभा के पहली बार इलेक्शन हुए। संविधान की धारा 3 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर को हमेशा के लिए भारत संघ का अभिन्न अंग माना गया।

    370 आर्टिकल निरस्त, मगर दर्ज है इतिहास

    केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर से संविधान के आर्टिकल 370 को हटाने के लिए एक बिल को संसद से पेश किया था, जिसे मंजूरी मिलने के बाद आर्टिकल 370 निरस्त हो गया। इसके कुछ समय बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर न्यायिक मुहर लगा दी। लेकिन आज भी जब देश की स्वतंत्रता के इतिहास को टटोलकर देखा जाएगा तो कश्मीर से जु़ड़ी अतीत की घटनाएं खुद ब खुद नत्थी होती रहेंगी।