जम्मू-कश्मीर में रेलवे के आगमन ने बदली घाटी की तस्वीर, जानिए अर्थव्यवस्था को कैसे मिली नई रफ्तार
जम्मू-कश्मीर में रेलवे के आने से घाटी की तस्वीर बदल गई है। पर्यटन को बढ़ावा मिला है, जिससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़े हैं। किसानों को अपनी उपज भेजने में आसानी हुई है, जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई है। रेलवे ने जम्मू-कश्मीर को देश के बाकी हिस्सों से जोड़कर विकास के नए द्वार खोले हैं।

जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को रेलवे ने दिया नया बल।
दिनेश महाजन, जागरण, जम्मू। कश्मीर घाटी तक रेल मार्ग का पहुंचना न केवल एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, बल्कि यह जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए भी मील का पत्थर साबित हो रहा है।
दशकों तक सड़क मार्ग पर निर्भर रहने वाली घाटी अब भारतीय रेल नेटवर्क से जुड़ चुकी है, जिससे व्यापार, परिवहन और पर्यटन के नए द्वार खुल गए हैं। पहले जहां सेब, चेरी और अन्य फलों की आपूर्ति ट्रकों और सड़क मार्ग के जरिए होती थी, अब वह तेजी से रेल के जरिए हो रही है। इससे जहां समय की बचत हो रही है, वहीं, परिवहन लागत में भी उल्लेखनीय कमी आई है।
खास बात यह है कि रेल के माध्यम से अब केवल फल ही नहीं, बल्कि कारें, सीमेंट, खाद्य पदार्थ और अन्य आवश्यक वस्तुएं भी घाटी तक पहुंचाई जा रही हैं। इससे स्थानीय कारोबारियों को बड़ी राहत मिली है और आपूर्ति की नियमितता भी बनी हुई है। रेल मार्ग के चालू होने के बाद कश्मीर से बाहर के बाजारों तक सेब, अखरोट और अन्य उत्पाद समय पर पहुंच रहे हैं।
इससे किसानों को न केवल उचित मूल्य मिल रहा है, बल्कि उनकी आमदनी में भी इजाफा हुआ है। पहले खराब मौसम और बंद सड़कों के कारण फलों की खेप देर से पहुंचती थी, जिससे नुकसान होता था। अब रेलवे की सुविधा से यह समस्या काफी हद तक खत्म हो गई है।
निर्माण के दौरान आई कई चुनौतियां
कश्मीर घाटी तक रेल मार्ग पहुंचाना इंजीनियरिंग की दृष्टि से देश की सबसे कठिन परियोजनाओं में से एक रहा। ऊंचे-नीचे पहाड़, बर्फीली हवाएं, नदियों की घाटियां और भूकंपीय क्षेत्र में काम करना किसी चुनौती से कम नहीं था। श्रीनगर को जम्मू से जोड़ने वाला यह रेल मार्ग, जो कटड़ा से बनिहाल तक फैला है, में कई सुरंगें और पुल बनाए गए हैं।
सबसे बड़ी तकनीकी चुनौती चिनाब नदी पर बने विश्व के सबसे ऊंचे रेलवे पुल का निर्माण थी। लगभग 359 मीटर ऊंचा यह पुल पेरिस के एफिल टॉवर से भी ऊंचा है। इस पुल के निर्माण के दौरान तेज हवाएं, गहरी घाटियां और मौसम की प्रतिकूलता ने कई बार काम को रोकने पर मजबूर किया। इसके अलावा बर्फबारी और भूस्खलन के कारण भी कार्य में देरी हुई।
इसी तरह पीर पंजाल के पहाड़ों से आर-पार बनने वाली लंबी सुरंगों के निर्माण में इंजीनियरों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कई स्थानों पर चट्टानों की संरचना कमजोर थी, जिससे सुरक्षा के उपायों को प्राथमिकता दी गई। फिर भी भारतीय इंजीनियरों और कामगारों ने इस परियोजना को पूरा कर यह साबित कर दिया कि जज्बे और तकनीक के मेल से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं।
राष्ट्रीय राजमार्ग पर यातायात के दबाव में आई कमी
अब जब रेल मार्ग घाटी तक पहुंच गया है, तो इसका असर दिन-प्रतिदिन दिखने लगा है। घाटी से हर रोज सैकड़ों टन सेब और अन्य उत्पाद देश के विभिन्न हिस्सों में भेजे जा रहे हैं। वहीं, जम्मू से लेकर श्रीनगर तक आवश्यक वस्तुओं की आवाजाही सुचारू हो गई है।
पहले जहां सड़क मार्ग पर ट्रकों को बनिहाल दर्रे से गुजरना पड़ता था, जो बर्फबारी या बारिश में अक्सर बंद हो जाता था, अब रेल मार्ग एक स्थायी विकल्प बन गया है। इससे ट्रकों पर निर्भरता धीरे-धीरे कम हो रही है और राष्ट्रीय राजमार्ग पर दबाव में भी कमी आई है।
राजमार्ग की स्थिति खराब होने या भारी बर्फबारी के समय भी ट्रेन सेवा से सामानों की आपूर्ति अब संभव हो सकेगी। सेना की रसद और जरूरी सामग्री भी रेल के माध्यम से घाटी तक पहुंचाई जा सकेगी, जिससे रणनीतिक दृष्टि से भी यह परियोजना अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाती है।
अर्थव्यवस्था में आई नई ऊर्जा, रोजगार के सादन बड़े
रेल मार्ग के कारण परिवहन की लागत घटने से व्यापारिक वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता आई है। पहले घाटी में जरूरी वस्तुएं पहुंचने में देरी होती थी, जिससे मूल्य बढ़ जाते थे। अब समय पर आपूर्ति होने से यह अंतर कम हुआ है। रेलवे कनेक्टिविटी से स्थानीय युवाओं के लिए भी नए रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं।
स्टेशन क्षेत्रों में छोटे कारोबार, कैटरिंग, लोडिंग-अनलोडिंग और लाजिस्टिक सेवाओं में रोजगार के नए रास्ते खुले हैं। पर्यटन क्षेत्र को भी बड़ा लाभ हुआ है, क्योंकि यात्रियों के लिए रेल अब एक सस्ता और सुविधाजनक साधन बन गया है। रेल मार्ग पूरी तरह से परिचालन में आने के बाद घाटी में औद्योगिक गतिविधियों को गति मिलेगी।
कृषि और बागवानी उत्पादों का देशभर में निर्यात सुगमता से होगा और इससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा आएगी। भविष्य में रेल नेटवर्क को और विस्तारित करने की योजना भी है, ताकि घाटी के दूरदराज इलाकों तक भी यह सुविधा पहुंचे। इससे न केवल विकास की रफ्तार बढ़ेगी बल्कि जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक एकता को भी और मजबूती मिलेगी।

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