कश्मीर की असली खतरों की खिलाड़ी राबिया... ट्रक चलाने का शौक, कुछ ऐसा रहा चूल्हे से स्टेयरिंग तक का सफर
रजिया यासीन ने कश्मीर में महिला सशक्तिकरण की एक अनूठी मिसाल पेश की है। वह कश्मीर की पहली महिला ट्रक ड्राइवर हैं और पूरे देश में माल ढोने का काम करती हैं। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और जज्बे ने साबित किया है कि कुछ भी नामुमकिन नहीं है। राबिया को हैवी व्हीकल चलाने का काफी शौक है। पढ़िए उनकी प्रेरणादायक कहानी।
रजिया नूर, श्रीनगर। उम्मीदों का कभी गला नहीं घोंटना चाहिए, उन्हें बयां करना होता है। लोग क्या सोचेंगे, समाज क्या कहेगा... इस सोच से परे देखेंगे तो जीवन में आगे बढ़ने की तमाम अड़चनें दूर हो जाएंगी। आसमान खुला है और रास्ते इंतजार करते नजर आएंगे।
आतंक का गढ़ रहे पुलवामा जिले की महिला राबिया यासीन ने इसे चरितार्थ किया है। उन्होंने ट्रक का स्टेयरिंग पकड़ा तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह एक बच्ची की मां है और वह कश्मीर की पहली महिला ट्रक ड्राइवर है।
वर्तमान में वह सिर्फ जम्मू-कश्मीर ही नहीं, बल्कि देश के किसी भी हिस्से में ट्रक को माल ढोने के लिए ले जाती हैं। राबिया आज एक प्रोफेशनल ट्रक चालक बन गई है। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति महिला सशक्तीकरण की बेमिसाल उदाहरण है। प्रेरणास्रोत है।
हौसला हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं...
उन्होंने साबित किया कि जज्बा और हौसला हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है। 36 वर्षीय राबिया मूलत: रामबन जिले की रहने वाली हैं। छह साल पहले उनकी शादी पुलवामा के वखरवनी में इम्तियाज अहमद मीर से हुई है। पति इम्तियाज भी ट्रक चालक हैं।
दोनों अलग-अलग ट्रक चलाते हैं। राबिया वर्तमान में ट्रक लेकर तमिलनाडु गई हुई हैं। दैनिक जागरण से मोबाइल फोन पर उन्होंने लंबी बातचीत की। उन्होंने खुशी जताई कि वह कश्मीर की पहली महिला ट्रक चालक बनी हैं उन्होंने बताया कि यह ट्रक उनका नहीं है। बस, वह इस ट्रक की ड्राइवर हैं।
गरीबी नहीं, शौक है भारी वाहनों की ड्राइविंग
राबिया बताती हैं कि कई लोग कहते हैं कि गरीबी और मजबूरी ने उन्हें ट्रक चलाने के लिए मजबूर किया होगा, किंतु सच्चाई यह नहीं है। यह पेशा मैंने मजबूरी में नहीं, बल्कि शौक में अपनाया है।
मुझे भारी गाड़ियां चलाने का शौक था। खुशकिस्मती से मेरी शादी ट्रक ड्राइवर से हो गई। पति को अपने शौक के बारे में बताया तो वह खुश हुए और ट्रक चलाना सिखाने के लिए राजी हो गए। तीन से चार माह में उन्होंने ट्रक चलाना सीख लिया।
उन्होंने बताया कि आज मेरे पास भारी वाहन चलाने का लाइसेंस है और न केवल कश्मीर, बल्कि जवाहर सुरंग पार कर देश के विभिन्न कोनों में माल लेकर जाती हूं।
लोग क्या कहेंगे... राबिया ने नहीं की परवाह
राबिया बताती हैं कि ट्रक चालक बनने पर समाज के लोगों ने नाक-भौंह सिकोड़ी। लोगों ने ताने मारे। ट्रक लेकर गांव से निकलती थी तो लोग अजीब नजरों से देखते थे, लेकिन मैंने इसकी परवाह नहीं की। ससुराल वालों का पूरा साथ मिला। इससे हिम्मत और बढ़ गई।
राबिया का कहना है कि इस्लाम धर्म में महिलाओं को घर या बाहर जाकर काम करने की मनाही नहीं है, लेकिन काम करते समय पर्दे और सीमाओं में रहने की सख्त हिदायत है। कहा- मैं इसका पालन करती हूं। आज लोग मुझे ट्रक चलाते देख पहले तो लोग चौंकते हैं, किंतु बाद में उनके चेहरों पर मुस्कान आ जाती है।
उन्होंने बताया कि उनकी एक साल की एक बेटी है। कभी-कभी वो बेटी को भी ट्रक में साथ ले जाती हैं। वह भी सफर में बड़ी खुश रहती है।
मुझे अपनी बहू पर गर्व है। उसने अपना शौक जाहिर किया था। उसके पति को कोई आपत्ति नहीं थी। अगर मेरी अपनी बेटी भी होती तो भी उसके शौक को जरूर पूरा करती। जब घर पर होती है तो काम में मेरा हाथ बटाती है। मेरी बहू जब तक चाहे ट्रक चलाने का काम करे।
शहनाज बेगम, राबिया की सास
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