Kashmir News: तो क्या सक्सेसफुल हुआ प्रोजेक्ट हंगुल? कश्मीर में बढ़ने लगी इस हिरण की आबादी
कश्मीर घाटी में हंगुल हिरणों की आबादी में वृद्धि दर्ज की गई है। 55 वर्ष पहले इनकी संख्या 150 से भी कम हो गई थी लेकिन नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार अब यह बढ़कर 323 हो गई है। वन्यजीव विभाग द्वारा किए जा रहे संरक्षण प्रयासों के कारण इनकी गतिविधियों को कंगन-बांडीपोर-गुरेज की तरफ भी दर्ज किया गया है।

राज्य ब्यूरो, जागरण, श्रीनगर। लुप्तप्राय: हो चले हंगुल को बचाने के प्रयास अब रंग लाने लगे हैं। 55 वर्ष पहले हंगुल की आबादी 150 से नीचे जा चुकी थी, लेकिन ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक, कश्मीर घाटी में इसकी आबादी अब 323 तक पहुंच गई है। हंगुल लाल प्रजाति का हिरण है जो बारहसिंगा जैसा होता है।
यह कभी कश्मीर से लेकर हिमाचल के चंबा तक पाया जाता था और अब यह कश्मीर घाटी में और वह भी दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान व उसके साथ सटे क्षेत्रों में सीमित हो गया है।रेड डाटा बुक ऑफ इंटरनेशनल यूनियन फार कंजरवेशन आफ नेचर एंड नेचुरल रिर्सोसेज (आइयूसीएन) ने वर्ष 1947 के बाद से ही हंगुल हिरण को लुप्तप्राय घोषित किया था।
20वीं सदी की शुरुआत में कश्मीर में करीब पांच हजार हंगुल थे। वनों के कटाव और जंगल में इंसान के बढ़ते दखल व शिकार के कारण इस राजकीय पशु की संख्या में लगातार गिरावट आती गई। 1970 में इसकी संख्या केवल 150 तक जा पहुंची और अधिकांश श्रीनगर में स्थित दाचीगाम उद्यान तक ही सीमित रहे गए थे। इसके बाद इसके संरक्षण के प्रयास शुरू हुए।
हंगुल को बचाने के लिए जम्मू कश्मीर सरकार ने वन्य जीव कोष के साथ मिलकर वर्ष 1970 में प्रोजेक्ट हंगुल शुरु किया था। इस परियोजना के तहत हंगुल के आवास काे बचाने के साथ साथ उसके शिकार पर रोक लगाने का काम किया गया। हंगुल के व्यवहार की निगरानी शुरु की गई और उसकी जनगणना की प्रक्रिया शुरु करनेके साथ ही लोगों में इसके संरक्षण के प्रति जागरुकता पैदा करने का अभियान चलाया गया।
इस अभियान का असर होने लगा और 2015 में 186 हंगुल गिने गए थे, जबकि 2017 में इनकी तादाद 197 हो गई। 2019 की गणना में इनकी संख्या 237 पाई गई। वर्ष 2021 की गई गणना के अनुसार इनकी संख्या 263 तक पहुंच गई। मागर्च मार्च 2025 के नवीनतम सर्वेक्षण में हंगुल की आबादी 323 तक पहुँच गई है,।
वन्य जीव विभाग वरिष्ठ वाइल्ड लाइफ वार्डन रशीद नक्काश ने कहा कि हंगुल के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों का असर हो रहाहै। बीते तीन चार वर्ष के दौरान हमने पाया कि हंगुल की गतिविधियों कंगन -बांडीपोर-गुरेज की तरफ भी दर्ज की हैं।
इसका मतलब है कि हंगुल उन सभी इलाकों में नजर आ रहा है जो कभी उसका आवास हुआ करते थे। हंगुल किश्तवाड़ में भी है,लेकिन विगत कुछ वर्षाें के दौरान हमें वहां उसका कोई निशान नहीं मिला है। हंगुल के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जमा करने के लिए कुछ हंगुल के गले में जीपीएस कालर भी लगाए गए हैं।
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वन , पारिस्थितिकी और पर्यावरण मंत्री जावेद अहमद राणा ने कहा कि हंगुल हमारी शान है। हमें इसे बचाना है। इसलिए हमने शिकारगाह त्राल में इसके लिए एक ब्रीडिंग सेंटर शुरु किया है। इसके प्राकृतिक आवास को बहाल करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि हमें खुशी है कि इसकी आबादी बढ़ रही है,लेकिन हम चाहते हैं कि यह सैंकड़ों में नहीं हजारों में हो और कुदरत ने इसके लिए जो घर बनाए हैं, यह उनके आजादी से घूमे।
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