विदेशों जैसा खेला ढांचा मिले तो कमाल कर देंगे खिलाड़ी
शीतकालीन खेलों को लेकर कश्मीर के युवाओं में खासा रुझान है। वे इसमें अपना भविष्य सुनहरा बनाना तो चाहते हैं लेकिन अभी भी हमारे पास संसाधन और पर्याप्त ढांचा नहीं। अगर विदेशों की तरह ढांचा विकसित करें तो आप खुद देखेंगे कि हमारे खिलाड़ी क्या कमाल दिखाएंगे।
रजिया नूर, श्रीनगर : शीतकालीन खेलों को लेकर कश्मीर के युवाओं में खासा रुझान है। वे इसमें अपना भविष्य सुनहरा बनाना तो चाहते हैं, लेकिन अभी भी हमारे पास संसाधन और पर्याप्त ढांचा नहीं। अगर विदेशों की तरह ढांचा विकसित करें तो आप खुद देखेंगे कि हमारे खिलाड़ी क्या कमाल दिखाएंगे। यह कहना है कश्मीर के बारामुला के प्रसिद्ध स्नो स्केयर आरिफ खान का। आरिफ ने हाल ही में बीजिग ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व किया था। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में आरिफ ने कहा कि बीजिग ओलंपिक में हिस्सा लेने के दौरान अंदाजा हुआ कि हम कितने पिछड़े हैं। शीतकालीन खेलों के लिए हम केवल गुलमर्ग पर निर्भर हैं। सोनमर्ग, यूसमर्ग, दूधपथरी व पहलगाम में अपार संभावनाएं हैं। गुलमर्ग में न बराबर ढांचा है। प्रदेश सरकार कोशिश कर रही है, लेकिन हमें युद्ध स्तर पर कोशिश करने की जरूरत है। आरिफ ने कहा कि शीतकालीन खेलों को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक लाने के लिए आíटफिशिल स्नो मेकिग सिस्टम व आíटफिशल स्लोप्स की जरूरत होती है। बीजिग में आठिíफश्यल स्नो मेकिग सिस्टम भी है और आíटफशल स्लोपस भी। गुलमर्ग में इसकी सुविधा नहीं है। बर्फ जमा होने के बाद हम उन्हीं नेचरल स्लोप्स पर फ्री स्टाइल स्कीइंग कर हुनर आजमाते हैं। बीजिग सहित अन्य देशों में खिलाड़ियों को न तो बर्फ का इंतजार करना पड़ता है और न नेचरल स्पोप्स पर निर्भर रहना पड़ता है। गुलमर्ग में केवल नेचरल स्लोप्स ही हैं जिन पर हमारे खिलाड़ी अभ्यास करते हैं। अंततराष्ट्रीय स्तर तक न पहुंचने का यह बड़ा कारण है। किसी साल बर्फ न होना या कम मात्रा में होना खिलाड़ियों की प्रतिभा को प्रभावित करता है। घाटी के युवाओं में प्रतिभा की कमी नहीं :
आरिफ ने कहा कि सोनमर्ग, यूसमर्ग, दूधपथरी व पहलगाम में भी शीतकालीन खेलों को बढ़ावा दिया जाए। वहां भी आíटफिशल स्नो मेकिग सिस्टम व स्लोप की सुविधा उपलब्ध रखनी चाहिए। यदि खिलाड़ियों को दोनों सुविधाएं मिलें तो वे बेशक अपने टैलेंट को निखार अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों से टक्कर ले सकते हैं। घाटी के युवाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। उन्हें बेहतर सुविधाएं व बेहतर मंच मिले तो वे भी खेल हो या कोई भी क्षेत्र में अपना लोहा मनवा सकते हैं। हौसले बुलंद हैं :
बीजिंग में असफलता के बाद भी मेरे हौसले बिलकुल बने हुए हैं। आरिफ ने कहा कि मेरी नजरें अब वर्ष 2026 में होने वाली ओलंपिक खेलों पर हैं। इस बार देश को निराश नहीं करूंगा क्योंकि देश ने मुझ पर भरोसा कर मुझे ओलंपिक्स में नेतृत्व करने का अवसर दिया।
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