पाक राइफल से लोगों का खून, युवाओं के हाथों में पत्थर और गाजा पट्टी का नाम; क्या थे आतंकी यासीन मलिक के नापाक इरादे?
नवीन नवाज के अनुसार यासीन मलिक जिसने कश्मीर में हिंसा फैलाई आज तिहाड़ जेल में है। कभी पाकिस्तान से हथियार लाकर उसने कश्मीर को लहूलुहान किया फिर गांधीवादी बनने का दिखावा किया। उसने युवाओं को पत्थर थमाए और अपने इलाके को गाजा पट्टी का नाम दिया। टेरर फंडिंग में शामिल मलिक के खिलाफ कई मामले दर्ज हैं और अब वह जेल में सजा का इंतजार कर रहा है।

नवीन नवाज, श्रीनगर। पहले पाकिस्तान से क्लाशनिकोव राइफल लाकर , आजादी के नाम पर कश्मीर की गलियों को आम लोगों के खून से लाल किया और फिर खुद को अहिंसा का पुजारी, गांधीवादी साबित करने के लिए बंदूक छोड़ दी, लेकिन आजादी और अलगाववाद के एजेंडे को हमेशा गले से लगाए रखा।
अपने इस एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए कश्मीर के नौजवानों के हाथ में पत्थर थमाए। जिन गलियों वह खेलता था, उसी गली को, उसी इलाके को उसने कश्मीर की गाजा पट्टी का नाम भी दिलाया। यह कोई और नहीं, तिहाड़ जेल की कोठरी में बैठ कानून के मंदिर में अपने कुकर्मां की सजा का इंतजार कर रहा यासीन मलिक है।
वह यासीन मलिक जिसके नाम से कभी कश्मीर कांपता थ, जिसके एक इशारे पर कश्मीर बंद हो जाता था, जिसकी गिरफ्तारी या बीमारी की खबर पर लाल चौक और उसके साथ सटे इलाकों में पथराव शुरु हो जाता, दुकानें बंद हो जाती थीं।
मौजूदा समय में टेरर फंडिंग, हत्या,राष्ट्रद्रोह समेत विभिन्न मामलों में अदालती कार्रवाई का सामना कर रहे मलिक के खिलाफ वर्ष 1996 तक टाडा के तहत लगभग 32 मामले किए गए थे।
आजादी, जिहाद और इस्लाम के नाम पर झेलम के पानी को इंसानी खून से लाल करने वाला जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के चेयरमैन मोहम्मद यासीन मलिक अपनी किशोरावस्था से ही कश्मीर में पाकिस्तानी एजेंडे आजादी के नारे का समर्थक रहा है।
उसका पहला तर्क था कि जम्मू कश्मीर मुस्लिम बहुल है, इसलिए इसका विलय पाकिस्तान में होना चाहिए, लेकिन यह तभी होगा जब कश्मीर को हिंदुस्तान से आजादी मिलेगी। कश्मीर के पुराने अलगाववादियों में जिनमें अल-फतह और जमाते इस्लामी के कुछ नेता था, के दिशा निर्देश में उसने अपने साथियों संग तुल्ला गुट बनाया था।
यह गुट 1982-83 के दौरान सुर्खियों में आया था। इसमें हिलाल, हमीद शेख, इश्फाक मजीद वानी, शकील बख्शी, जावेद मीर मुख्य चेहरा हुआ करते थे। यह गुट जमाते इस्लामी के एजेंडे के तहत विरोधियों केा निशाना बनाते, जमात विरोधी दलों के जलसों में हंगामा, उन पथराव करना और गली मोहल्लाें मं पाकिस्तान समर्थक जुलूसों के लिए अपने हमउम्र लड़कों को जमा करना इसका काम होता था।
इस गुट को सुरक्षा एजेंसियों ने 1983 में उस समय गंभीरता लिया, जब इसने भारत-वेस्टइंडीज क्रिकेट मैच में रुकावट डालने के लिए पिच को खोदा था। इस घटना के कुछ माह बाद तुला पार्टी को मलिक व उसके साथियों ने इस्लामिक स्टूडेंट्स लीग में बदल दिया।
वर्ष 1985 में श्रीनगर में हालीवुड फिल्म द लायन आफ डेजर्ट के बाद नेशनल कान्फ्रेंस के कार्यालयों पर हुए हमलों, शेख अब्दुल्ला के पोस्टर फाडे जाने, तोड़ फोड़ और दंगा करने वालों की अगुआई मलिक, मीर, हमीद शेख, फिरदौस अहमद शाह ने की।
कश्मीर में इस्लाम के नाम पर वोटरों को एकजुट करते हुए अलगाववादी एजेंडे को राज्य विधानसभा में ले जाने के लिए जमाते इस्लामी की अगुआई में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के गठन हुआ तो यासीन मलिक औार उसके साथी फ्रंट के फुट सोल्जर बन गए।
वर्ष 1987 के विधानसभा चुनाव में मलिक व उसके अन्य साथियों ने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार मे अहम भूमिका निभाई। वह स्वयं जमाते इस्लामी के उम्मीदार यूसुफ शाह उर्फ सलाहुद्दीन का र्पोंलिंग एजेंट था।
यह सल्लाहुदीन कोई और नहीं हिजबुल मुजाहिदीन व यूनाइटेड जिहादी कौंसिल का चेयरमैन है और विगत 34 वर्ष से पाकिस्तान मे है। सलाहुद्दीन समेत मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के सभी उम्मीदवारों की हार के बाद ही कश्मीर में आतंकी हिंसा का सही तरीके से पदार्पण हुआ।
हालांकि कश्मीर में पाकिस्तान समर्थक आतंकी गुट आजादी के बाद से ही सक्रिय होने लगे थे, लेकिन वह कभी कश्मीर में अपनी पैठ नहीं बना पाए थे,लेकिन 1987 के चुनाव के बाद पाकिस्तान में हथियारों की ट्रेनिंग लेकर लौटने यासीन मलिक और उसके साथियों ने पूरा परिदृश्य पलट दिया।
उसके साथ हमीद शेख, अश्फाक मजीद वानी, जावेद मीर, मुश्ताक जरगर, अब्दुल्ला बांगरु ही सबसे पहले गए थे। हमीद शेख, अशफाक मजीद वानी,जावेद मीर और यासीन मलिक को एचएजेवाई कहा जाता है।
कश्मीर में आतंकी हिंसा को हवा देने वाले 1989 के रुबिया सईद अपहरण कांड का सूत्रधार भी यासीन मलिक ही था। उसने ही 1990 में श्रीनगर में वायुसेना के चार अधिकारियों की अपने साथियों संग मिलकर हत्या की थी।
इसके कुछ दिन बाद उसका साथी अश्फाक मजीद वानी सुरक्षाबलों के सथ मुठभेड़ में मारा गया और उसे अगस्त 1990 में कश्मीरके एक नामी व्यापारी जहूर वटाली के घर से जख्मी हालत में पकड़ा गया था।जहूर वटाली भी टेरर फंडिंग के आरोप में इस समय तिहाड़ जेल में बंद हैं।
वर्ष 1994 में जेल से रिहा होने के बाद उसने सीजफायर का एलान किया औा इसके साथ ही जेकेएलएफ भी दो गुटों में बंट गई। एक जेकेएलएफ मलिक हो गई और दूसरी जेकेएलएफ अमानुल्ला।
अलबत्ता, जेकेएलएफ अमानुल्ला कुछ ही समय बाद खत्म हो गई, क्येांकि उसके लिए कश्मीर में नया कैडर नहीं मिल रहा थाप् यह वही अमानुल्लाह खान हैं,जिनकी बेटी से पीपुल्स कान्फ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन ने शादी की है।
यासीन मलिक के नेतृत्व में जेकेएलएफ ने
हुर्रियत कान्फ्रेंस का दामन थामा और अलगाववादी राजनीति का सफर शुरु किया। वर्ष 2003 में हुर्रियत के दो फाड़ होने पर उसने दोनों गुटों से दूरी बना ली। इससे पूर्व वर्ष 2002 में वह हवाला के मामले में भी पकड़ा गया।
वर्ष 2008, 2010 और 2016 में उसने गिलानी और मीरवाइज मौलवी उमर फारुक के साथ मिलकर जायंट रजिस्टेंस लीडरशिप के बैनर तले सभी अलगाववादी दलों को जमा किया। उसने वर्ष 2007 में कश्मीर में सफर ए आजादी के नाम से एक अभियान चलाया।
वर्ष 1994 के बाद भी वह कई बार पकड़ा गया और हर बार रिहा हो गया। पाक के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह समेत देश के कई अन्य वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर चुके मलिक को 2001 में अमेरिका भी भेजा था।
वह अप्रैल 2005 में शुरू हुई कारवां ए अमन बस सेवा से पाक जाने वाले कश्मीरी अलगाववादी नेताओं में शामिल था। उसने 2013 में लश्कर सरगना हाफिज सईद के साथ धरने में भाग लिया था।
यासीन मलिक ने 22 फरवरी 2009 को रावलपिंडी में पाकिस्तानी कलाकार मुशाल हुसैन मलिक से शादी की। मार्च 2012 में उन्हें एक बेटी हुई, जिसका नाम रज़िया सुल्ताना रखा गया है।
मुशाल और उनकी बेटी अभी इस्लामाबाद में रहती हैं। मुशाल मलिक कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तानी एजेंडे को विभिन्न मंचों पर आगे ढ़ाने में सक्रिय है।
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