Operation Mahadev: हाशिम मूसा को बचा रहे थे स्थानीय मददगार, तैयार किया था मुखबिरों का जाल; सटे गांव से पहुंचता था राशन
श्रीनगर में ऑपरेशन महादेव के दौरान बैसरन पहलगाम का मुख्य आतंकी सुलेमानी अपने दो साथियों सहित मारा गया। यह पाकिस्तान की कश्मीर में आतंकवाद को पुनर्जीवित करने की साजिश के लिए एक बड़ा झटका है। सुलेमानी की सक्रियता आतंकियों के स्थानीय नेटवर्क के विस्तार और उनकी बदली रणनीति का खुलासा करती है।

जागरण संवाददाता, श्रीनगर। ऑपरेशन महादेव में बैसरन पहलगाम का मुख्य गुनाहगार सुलेमानी अपने दो अन्य साथियों संग मारा गया। उसकी मौत कश्मीर में मरनासन्न आतंकवाद को फिर से ऑक्सीजन देने की पाकिस्तानी साजिश के लिए एक बड़ा झटका है। मारे गए सभी आतंकियों की पहचान सुलेमान, अफगान और जिबरान के नाम से हुई है।
राजौरी से लेकर कश्मीर के हारवन तक सक्रिय रहने, विभिन्न वारदातों को अंजाम देने से आतंकियों के स्थानीय नेटवर्क के विस्तार और उसकी मजबूती के साथ साथ आतंकियों की बदली रणनीति का भी खुलासा होता है।
सुलेमानी ने जिस इलाके में अपना ठिकाना बनाया था, वहां किसी आम आदमी का पहुंचना आसान नहीं है। उसके ठिकाने से मिले राशन व अन्य साजो सामान से पता चलता है सामान निकटवर्ती गांवों से उस तक पहुंचा है।
इस पूरे इलाके लगभग सभी आवासीय बस्तियों में सुरक्षाबलों के शिविर हैं या फिर इस पूरे क्षेत्र में आने जाने के लगभग हर रास्ते पर सुरक्षाबलों की मौजूदगी व निगरानी है। इसके बावजूद वह सभी की नजर से बचा हुआ था।
आतंकियों की तलाश के लिए ड्रोन का लिया सहारा
उन्होंने बताया कि जिस इलाके में आतंकी ठहरते हैं, उसके आसपास की बस्तियों में उन्होंने अपने मुखबिरों का एक जाल तैयार कर रखा होता है। यह मुखबिर भी आपस में एक दूसरे को नहीं जानते।
यह अपने इलाके में होने वाली सुरक्षाबलो की किसी भी गतिविधि की या फिर जिस इलाके आतंकी के ठिकाना हो, अगर वहां आम नागरिकों की गतिविधिंया बढ रही हों तो तुरंत उन तक पहुंचाते हैं। इसके अलावा कुछेक इलाकों में आतंकियों के ठिकानों तक साजो सामान पहुंचाने के लिए ड्रोन भी कथित तोर पर इस्तेमाल किया गया है।
संबधित सूत्रों ने बताया कि बीते कुछ वर्षाें के दौरान आतंकियों ने अपनी रणनीति में व्यापक बदलाव लाया है। वह अब पहले की तरह अपने किसी एक ओवरग्रउंड वर्कर पर निर्भर नहीं रहते और न उनके साथ फोन पर नियमित संवाद करते हैं।
वह किसी बस्ती में या बस्ती के साथ सटे किसी बाग,खेत या जंगल में नहीं रह रहे हैं बल्कि जंगल के भीतरी हिस्सो में ठिकाने बनाकर रह रहे हैं।
वह अपने ठिकाने को यथासंभव अपने ओवरग्राउंड वर्कर की नजर से भी दूर रख रहे हैं और जब कभी उनहें कोई सामान मगवाना होता है तो वह उन्हें एक जगह बता देते हैं,जहां सामान पहुंचाया जाता है और वहां से वह किसी दूसरे ओवरग्रांउड वर्कर को सामान उठाने के लिए बोलते हैं।
आम लोगों के साथ कम से कम संपर्क हो,इसके लिए यह अपने साथ सुई धागा तक लेकर चते हैं और चिह्नित स्थानों पर तभी रुकते हैं जब इनके सीमा पार हैंडलर, इन्हें किसी ओवरग्राउंड वर्कर विशेष के बारे में सूचित करे।
कौन होते हैं ओडब्ल्यूजी?
आतंकियों के स्थानीय मददगार जिन्हें ओवरग्राउंड वर्कर कहते हैं, वह भी कश्मीर में सक्रिय आतंकियों तक तभी मदद पहुंचाते हैं,जब सीमा पार बैठे उनके हैंडलर उनकी पुष्टि करें और निर्देश दें। उसके बाद वह निदेशानुसार आवश्यक साजो सामान के साथ उनके साथ एक निश्चित स्थान पर संपर्क करते हैं।
फोन पर न्यूनतम संपर्क किया जाता है और अगर किया भी जाना है तो वह एनक्रिपेटिड ऐप के जरिए किया जाता है ताकि कोई दूसरा संदेश न सुन सके।
उन्होंने बताया किइसके अलावा सुलेमानी या अन्य आतंकी जिन इलाकों में अपना ठिकाना बनाए हुए हैं, वहां इन दिनों खानाबदोश गुज्जर-बक्करवाल समुदाय के डेरे भी लगे हुए हैं और उनके बीच यह आसानी से रह लेते हैं, कई बार दबाव के जरिए तो कई बार पैसे के दम पर।
इसके अलावा इनकी वेशभूषा और बोली खानाबदोश गुज्जर-बक्करवाल समुदाय जैसी रहती है। इसके अलावा इन इलाकों में जब कोई राशन लेकर जा रहा होता है तो यही मान लिया जाता है कि वह अब वहां चार दह माह रुकेगा,इसलिए जमा कर रहा है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।