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    महबूबा ने जम्मू-कश्मीर के अंडरट्रायल कैदियों के अधिकारों के लिए हाई कोर्ट में दायर की याचिका, जानिए क्या है मांग

    By Digital Desk Edited By: Rahul Sharma
    Updated: Sat, 25 Oct 2025 05:20 PM (IST)

    जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है। यह याचिका जम्मू-कश्मीर के उन विचाराधीन कैदियों के अधिकारों से संबंधित है जो लंबे समय से जेल में बंद हैं। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया है कि इन कैदियों के अधिकारों की रक्षा की जाए और उन्हें कानूनी सहायता मिले। 

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    याचिका का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विचाराधीन कैदियों को बिना किसी देरी के न्याय मिले।

    डिजिटल डेस्क, जागरण, श्रीनगर। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में एक अर्जी दी है, जिसमें केंद्र शासित प्रदेश के उन सभी अंडरट्रायल कैदियों को तुरंत ट्रांसफर करने के निर्देश देने की मांग की गई है, जो अभी जम्मू-कश्मीर के बाहर की जेलों में बंद हैं। 

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    याचिका में मांग की गई है कि ऐसे कैदियों को लोकल जेलों में वापस लाया जाए जब तक कि अधिकारी केस-स्पेसिफिक, लिखित कारण न बताएं, जिससे उन्हें जम्मू-कश्मीर के बाहर रखने की सख्त जरूरत दिखे और ऐसे मामलों का हर तीन महीने में ज्यूडिशियल रिव्यू किया जाए। 

    "याचिकाकर्ता एक पॉलिटिकल एक्टिविस्ट और पूर्व मुख्यमंत्री हैं इसलिए अंडरट्रायल कैदियों के कई परिवार वाले उनसे आग्रह कर रहे हैं कि वे इस याचिका में सरकार के सामने यह मुद्दा उठाएं। 

    सरकार से भी की थी अपील, कोई एक्शन नहीं लिया

    महबूबा मुफ्ती ने अपनी याचिका में यह तर्क दिया कि उन्होंने सरकार से जम्मू-कश्मीर के बाहर की जेलों में बंद अंडरट्रायल कैदियों की वापसी की अपील की थी, लेकिन सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया। इसलिए उन्होंने पब्लिक इंटरेस्ट में यह याचिका कोर्ट में पेश की है और इस तरह से यह याचिका मान्य होनी चाहिए।" 

    उन्होंने भारत के संविधान के आर्टिकल 226 के तहत कोर्ट से तुरंत इस मामले में दखल देते हुए केंद्र सरकार, जम्मू-कश्मीर गृह विभाग और डीजीपी समेत रेस्पोंडेंट्स को यह निर्देश देने की मांग की कि वे उन सभी अंडरट्रायल कैदियों को तुरंत प्रदेश की जेलों में ट्रांसफर करें जो अभी केंद्र शासित प्रदेश के बाहर की जेलों में बंद हैं। 

    मुफ्ती ने कोर्ट को जानकारी देते हुए कहा कि 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में जांच या ट्रायल का सामना कर रहे कई निवासियों को प्रदेश के बाहर की जेलों में बंद कर दिया गया था। 

    गरीब परिवारों पर बढ़ रहा आर्थिक बोझ

    उन्होंने याचिका में यह भी कहा, "जम्मू-कश्मीर में एफआईआर दर्ज की जाती हैं और ट्रायल भी यही होते हैं। फिर क्यों उन्हें सैकड़ों किलोमीटर दूर कैद होती है। इस वजह से कोर्ट तक पहुंच, परिवार से मुलाकात और वकील की मीटिंग नहीं हो पाती है और गरीब परिवारों पर आने-जाने का बहुत ज्यादा खर्च आता है।" 

    उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विचाराधीन कैदियों को केंद्र शासित प्रदेश के बाहर की जेलों में रखने की जारी प्रैक्टिस को भी चुनौती दी। उन्होंने कहा कि यह प्रैक्टिस विचाराधीन कैदियों को दोषियों से भी बदतर हालत में डाल देती है। बेगुनाही के अनुमान का उल्लंघन करती है और मुख्य आर्टिकल 21 को नाकाम करती है। जो परिवार से संपर्क, वकील तक असरदार पहुंच और एक सही, तेज़ ट्रायल की गारंटी देता है। 

    परिवार व वकीलों तक पहुंच आसान हो

    "मॉडल प्रिज़न मैनुअल समेत इंटरनेशनल और नेशनल स्टैंडर्ड, इंसानी बर्ताव, रेगुलर परिवार और वकील को जरूरी बनाते हैं। "जम्मू-कश्मीर के अंडरट्रायल कैदियों का दूर-दराज के राज्यों में लगातार ट्रांसफर और रहना, सिस्टमैटिक तरीके से इन गारंटी को नकारता है।" 

    मुफ्ती ने यह भी कहा कि कई ट्रायल में बहुत सारे सबूत और गवाहों की बड़ी लिस्ट होती है, जिसके लिए वकील और क्लाइंट के बीच लगातार प्राइवेट, डॉक्यूमेंट-बेस्ड कंसल्टेशन की ज़रूरत होती है, यह सब तब नामुमकिन होता है जब अंडरट्रायल को दूर-दराज के राज्य की जेल में रखा जाता है। महबूबा ने परिवार और वकील तक पहुंच बनाने के लिए भी कदम उठाने की मांग की। 

    उन्होंने अपनी याचिका में कहा, "एक एक्सेस प्रोटोकॉल बनाना और लागू करना चाहिए जिसमें हर हफ़्ते कम से कम परिवार के मुलाकात हो, सही नियमों के तहत बिना रोक-टोक के खास अधिकार वाले वकील-क्लाइंट मुलाकात और खर्च या एस्कॉर्ट के बहाने कोई इनकार न हो।" उन्होंने कानूनी अधिकारियों को कम्प्लायंस की निगरानी करने और तिमाही रिपोर्ट फाइल करने के निर्देश देने की भी मांग की। 

    सेवानिवृत्त हाई कोर्ट जज वाली दो सदस्यीय कमेटी बने

    उन्होंने वापस भेजे गए अंडरट्रायल कैदियों को पहले फिजिकल पेश करने और सबूत रिकॉर्ड करने के लिए बाहरी टाइमलाइन तय करने और कस्टडी लॉजिस्टिक्स की वजह से होने वाले स्थगन को रोकने की भी मांग की। 

    मुफ्ती ने एक रिटायर्ड हाई कोर्ट जज वाली दो सदस्यों वाली ओवरसाइट और शिकायत निवारण कमेटी की भी वकालत की। यही नहीं उन्होंने स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (SLSA) के सदस्य को अंडरट्रायल कैदियों की जगहों, परिवार-कॉन्टैक्ट लॉग, वकील-इंटरव्यू रजिस्टर और प्रोडक्शन ऑर्डर का ऑडिट करने, नियम न मानने पर डिसिप्लिनरी एक्शन लेने की सलाह देने और कोर्ट को हर दो महीने में स्टेटस रिपोर्ट देने के लिए कहा। 

    याचिका में यह भी मांग की गई है कि कैदी के देश वापस आने तक, राज्य के बाहर की जेल में अंडरट्रायल कैदी से मिलने के लिए परिवार के एक सदस्य को हर महीने आने-जाने और रहने की सही जगह का खर्च दिया जाए जिसे जेल के रिकॉर्ड और टिकट से वेरिफाई किया जाए।