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    'मेहमान बनके नहीं मालिक बन कर रहने की ललक', घर वापसी के मुद्दे पर भावुक हुए तुलमुला पहुंचे कश्मीरी हिंदू

    Updated: Mon, 02 Jun 2025 05:46 PM (IST)

    गांदरबल के तुलमुला में माता क्षीर भवानी मेले में कश्मीरी हिंदुओं ने भावुक होकर घर वापसी की कामना की। श्रद्धालुओं ने असि आयिह माता गर वापस गीत गाकर अपने घरों से बिछड़ने का दर्द व्यक्त किया। कई लोगों ने अपने जर्जर हो चुके घरों और जमीनों की हालत पर दुख जताया। उन्होंने सरकार से पुनर्वास की अपील की ताकि वे अपने घरों में सम्मान से रह सकें।

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    क्षीर भवानी मेले में शामिल होने आए कश्मीरी हिंदू

    रजिया नूर, श्रीनगर। मध्य कश्मीर गांदरबल के तुलमुला इलाके में सिथत माता क्षीर भवानी के तीर्थस्थल पर श्रद्धालुओं द्वारा माता रागन्या देवी की आरती और माता क्षीर भवानी की जय के जयघोष के बीच जब माता के दरबार में आए कुछ कश्मीरी हिंदुओं ने आसि आयिह माता गर वापस,असि आमित चानेन चरनन मंज (माता हम घर वापस आए हैं, हम तेरे चरणों में आए हैं) गाया तो वहां माहौल भावुक हो गया और अधिकांश श्रद्धालुओं की आंखें नम हुई।

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    अवसर था माता क्षीर भवानी के वार्षिक मेले का जिसके लिए तुलमुला इलाके में सिथत माता के दरबार में पहुंचे श्रद्धालु मंदिर परिसर में बैठे माता के गुणगान कर रहे थे कि इसी बीच फिजा में गूंजने वाली उक्त पंक्तियों ने माहौल को एकदम सोगवार कर दिया और अपने घरों को छौड़ने पर मजबूरन पलान कर चुके अधिकांश स्थानीय हिंदू जो मेले में हिस्सा लेने के लिए तुलमुला आए हुए हैं,भावुक हो गए।

    परिसर के एक कोने में बैठी सरला गंजू नामक एक कश्मीरी हिंदु श्रद्धालु ने रुंधी हुई आवाज में कहा, अपने घर में भला कौन मेहमान बन कर आता है। कोई नही ना। लेकिन दुर्भाग्य से हम लोग अपने ही घर मेहमानों की तरह आते हैं वह भी लाल में एक बा माता के इस मेले में। आज भी आए हैं। दो दिन रहेंगे और फिर परसों वापस चले जाएंगे भारी मन के साथ। हमारी अब यही रूटीन बन गई है।

    सरला ने कहा कि दुख तो हमें इस बात का है कि हम अपने ही घर में पराए हो गए हैं। हालांकि हमारे कश्मीरी भाइयों ने हमारा दिल खोल कर स्वागत किया हम जब भी यहां आए तो लेकिन फिर भी हमारे दिलों में वह कसक है कि हम भी अपने घरों में आकर फिर से बसें। लेकिन अभी तक हम तरस ही रहे हैं।

    सरला के साथ ही बैठी मोहनी धर नामक एक और स्थानीय हिंदु ने कहा कि मैं पुलवामा के हाल गांव से हूं। हम भी पलायन कर गए थे 1990 में। हाल में हमारा घर, म्हारी जमीनी ऐसे ही पड़ी हुई है। पिछले साल इसी क्षीर भवानी मेले के दौरान मैं अपने पति के साथ अपने उस पैतृक घर को देखनी गई थी। घर बिलकुल जर्जर हालत में हैं। हमारी जमीनों जो हमारे घर के साथ ही सटी है,पर झाडियां उग आई हैं।

    मोहनी ने कहा कि हम दोनों अपने उस घर के अंदर गए। दीवारों पर जगह जगह जाले लटके हुए थे। चूहों के बिल भी दिखे। मैंने कुछ जाले भी साफ किए थे अपने हाथों से । मेरे पति ने कहा था कि कितने जाले उतारोगी यहां यह जगह जगह लगे हैं।

    मैंने उसे कहा था भगवान की कृपा से एक दिन जरूर हम अपने इस घर में वापस रहने के लिए आएंगे। उस दिन मैं घर में लगे मकड़ियों के सारे जाले उतारूंगी, सारे घर की साफसफाई करूंगी और अपने रसोई की उसी खिड़की पर चोकी लगाकर बैठूंगी जहां पर मैं अकसर बैठा करती थी।

    भावुक मोहनी ने माता रागन्या की आकृति की तरफ इशारा करते हुए कहा,आज मैं माता से यही विनती करने आई हूं कि माता हमें फिर से यहां अपने घरों में आबाद करने की व्यवस्था करें ताकि हम भी अपने घर में अपने माहौल में अपने मुसलिम बहन भाइयों के साथ अपने जीवन के यह बचे खुचे दिन गुजार सके।

    मंदिर के एक सतंभ से टेक लगाए बैठे गोपीनाथ कौल नामक एक और स्थानीय हिंदु ने कहा कि 35 वर्षों से हम अपने घर आने के लिए तरस रहे हैं। मैं बड़गाम जिले के पालपोरा गांव का रहने वाला हूं। मेरा जन्म भी वहीं हुआ था और पला बढ़ा भी वहीं पर।

    उन्होंने कहा कि मुझे याद है कि हम माता क्षीर भवानी के मेले के लिए सुबह अपने घर से निकलते थे, खाना पीना साथ लेकर। दिनभर मेले में गुजारते और शाम को वापस अपने घर लौट आते थे। आज भी हम माता के दरबार में आए हैं लेकिन मेहमान बनकर। आज हमें मेले में भाग लेने के बाद शाम को घर वापस नहीं जाना बल्कि सीधे जम्मू का रुख करना है। बिलकुल टूरिस्टों की तरह।

    उन्होंने कहा कि फिर अगले साल इसी तरह मेहमानों की तरह माता के दर्शन के लिए आएंगे। बस अब हमें अपने मातृभूमि और यहां स्थित अपने तीर्थस्थलों के दर्शन करने के लिए साल भर तक इंतजार करना पड़ता है और फिर उन्हें एक नजर देखने के बाद फौरन ही वापसी की राह लेनी पड़ती है।

    गोपीनाथ ने कहा कि यह हमारे लिए दर्दनाक है कि अपनी ही मातृभूमि पर अपने घर होते हुए भी हमें आश्रमों मे रहना पड़ता है। हम चाहते हैं कि हम वापस उसी तरह अपने घर लौट आए,उसी तरह रहें जिस तरह हम 1990 से पहले रह रहे थे।

    वहीं मेले में भाग लेने आए दीपाली नामक एक श्रद्धालु ने कहा,पलान के समय में मात्र 12-14 साल की ही थी। मुझे याद है कि उससे पर्व मेरी दादी मुझे मेले के दौरान लाती थी। यहां से मैं ढेर सारे मिट्टी के दिए खरीद लेती और फिर दीवाली में उन दियों से अपने घर को सजाती। पलायन के बाद हम से यह सब कुछ छूट गया।

    मेरी पढ़ाई लिखाई सब दिल्ली में हुई,शादी भी। लेकिन यहां आकर मुझे फिर से मेरा वह बचपन याद आ गया। दीपाली ने कहा,हम इस मिट्टी में जनमें हैं। इस मिट्टी की खुशबू,इसकी कशिश हमें अपनी तरफ खैंचती हैं। हम भी अपनी इन जड़ों से जुड़कर रहना चाहते हैं लेकिन मजबूरियों के चलते हम चाह कर भी ऐसा नही कर पाते।

    दीपाली ने कहा कि हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार से आग्रह करते हैं कि वह हमारी घर वापसी के लिए राहें संतल करें ताकि हम यहां मेहमानों की तरह नही बलिक मालिकों की तरह पूरे अधिकार से रहें।

    बता देते हैं कि माता क्षीर भवानी का वार्षिक मेला कल यानी मंगलवार को धार्मिक श्रद्धा से मनाया जा रहा है और इस अवसर पर सब से विशाल समारोह गांदरबल जिले के इसी तुलमुला गांव जहां माता रागन्या देवी का तीर्थस्थल है,पर आयोजित किया जाएगा।

    मेले में हिस्सा लेने के लिए इस तीर्थस्थल पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु जिनमें अधिकांश की संख्या घाटी से पलायन कर चुके स्थानीय हिंदुओं पर आधारित हैं,पहुंच चुके हैं जबकि तीर्थयात्रियों की आमद का सिलसिला आज सोमवार को भी जारी रहा।

    प्रशासन ने श्रद्धालुओं को तीर्थ स्थल पर पहुचाने, ठहरने,खाने पीने,चिकत्सा तथा अन्य सुविधाओं के व्यापक प्रबंध कर दिए हैं। श्रद्धालुओं कों मंदिर के आश्रम तथा मंदिर से आधे किलोमीटर की दूरी पर सिथत सेंट्रल यूनिवर्स्टी में ठहराने का प्रबंध किया गया है। मंदिर परिसर में एक दर्जन के करीब लंगर भी स्थापित किए गए हैं। मेला सुचारू ढंग से आयोजित करने के लिए समूचे गांदरबल जिले विशेषकर तुलमुला में सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए हैं।

    यहां पर यह बताना असंगत नी होगा कि घाटी में आतंकवाद फूट पड़ने तथा कश्मीरी हिंदुओं का पलायन करने के बाद कई वर्षों तक इस मेले का आयोजन नही हो सका और घाटी के अन्य मंदिरों की तरह माता क्षीर भवानी के इस मंदिर में भी सन्नटा पसरा रहा अलबत्ता हालातों में सुधारों के बाद इस मंगप में भी धर्मिक गतिविधियां बहाल हो गई और परंपरागत ढंग से इस मेले का आयोजन किया जाने लगा।