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    कश्मीरी भी नहीं चाहते पाकिस्तान जाए झेलम का पानी, लोग बोले- 'सिंधु जल संधि पूरी तरह हो समाप्त'

    Updated: Wed, 23 Jul 2025 02:01 PM (IST)

    कश्मीर में सिंधु जल संधि पर रोक का समर्थन करते हुए किसानों ने कहा कि पहले अपनी जरूरतें पूरी होनी चाहिए। झेलम नदी का पानी कश्मीर के लिए जरूरी है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की कमी हो रही है। किसानों का कहना है कि खेतों और बागों को सींचने के बाद ही पाकिस्तान को पानी दिया जाना चाहिए।

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    सिंदू जल संधि के तहत तीन नदियों का पानी पाकिस्तान को दिया जाना था (फाइल फोटो)

    नवीन नवाज, श्रीनगर। कश्मीर घाटी, जहां चंद वर्ष पहले तक पाकिस्तान का समर्थन करती भीड़ एक सामान्य बात थी, आज उसी कश्मीर में कोई भी पाकिस्तान के समर्थन में नारा लगाना तो दूर, उसे अपनी नदियों का पानी भी देने को राजी नहीं है।

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    राजनीति से कोसों दूर रहने वाला शोपियां का किसान फैयाज अहमद हो, कश्मीर वैली फ्रूट ग्रोअर्ज एसोसिएशन के चेयरमैन बशीर अहमद बशीर, पेशे से अध्यापक फारूक अहमद शाह या फिर पाकिस्तान के नाम पर कश्मीर में बंदूक उठाने वाला पूर्व आतंकी सैफुल्ला, कोई नहीं चाहता कि झेलम नदी का पानी बिना कश्मीर की प्यास बुझाए पाकिस्तान के खेतों को सींचे।

    सभी सिंधु जलसंधि पर रोक का समर्थन करते हुए कह रहे हैं कि यह उचित समय पर लिया गया सही फैसला है। यह जलसंधि स्थगित नहीं, पूरी तरह समाप्त कर देनी चाहिए।

    साल 1960 में हुई थी जलसंधि

    वर्ष 1960 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु जलसंधि के तहत छह सिंधु नदियों (Sindhu Water Treaty) का कुल पानी पाकिस्तान और भारत के बीच 80:20 के अनुपात में साझा किया जाता रहा है। इस समझौते के तहत पश्चिमी नदियों के रूप में जानी जाने वाली सिंधु, झेलम और चिनाब नदी पाकिस्तान को और पूर्वी नदियों के रूप में रावी, व्यास और सतलुज भारत को आवंटित की गईं थी।

    समझौते के मुताबिक, भारत सिंध, झेलम और चिनाब का पानी रोक कर उसे अपने लिए उपयोग नहीं कर सकता और इन नदियों पर जलविद्युत परियोजनाओं को भी रन ऑफ वॉटर स्कीम के तहत ही बनाया जा सकता है।

    लेकिन पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ यह संधि स्थगित कर दी थी। झेलम नदी कश्मीर के बीचों-बीच बहती है और कश्मीर में किसाना अपनी सिंचाई की जरूरतों के लिए झेलम व उसकी सहायक नदियों पर ही निर्भर हैं।

    कश्मीर में विगत कुछ वर्षों के दौरान जलवायु परिवर्तन का प्रभाव स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है। इस वर्ष झेलम नदी कई जगह सूखी नजर आने लगी थी और उसमें जलप्रवाह भी अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया था। गत जून में कश्मीर में दिन का तापमान 37.4 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। खेतों में दरारें आ गईं, कई जगह धान की फसल मुरझाने लगी थी।

    पहले अपनी जरूरत पूरी करें कश्मीर

    वैली फ्रूट ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बशीर अहमद बशीर ने कहा कि हमारे यहां खेत सूख रहे हैं, चश्में बंद हो गए हैं। बागों में पानी नहीं है और यह तब जब झेलम जैसी नदी पूरे कश्मीर से गुजरती है। हमें इसके पानी का इस्तेमाल अपने खेतों और बागों को सींचने के लिए करना चाहिए। हमें पाकिस्तान को यह पानी तभी देना चाहिए, जब हमारी जरूरत पूरी हो चुकी हो। मुझे लगता है कि सिंधु जलसंधि को रोकना सही है।

    सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं

    चक दारा क्षेत्र के किसान उमर डग्गा ने कहा, हम शालीमार किस्म का चावल पैदा करते हैं, लेकिन गत माह बारिश नहीं हुई। पांपोर के बिलाल हबीब ने कहा कि हम केसर उगाते हैं और इस बार सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिला है। प्रधानमंत्री मोदी को समझौते को खत्म करना चाहिए।

    किसान तहरीक के सदस्य गुलाम नबी मलिक ने कहा कि आप बेशक पाक को को पानी दें, लेकिन हमारे किसानों को मिलना चाहिए।

    और सिंचाई के लिए बर्फ पिघलने पर निर्भर है। अनियमित मौसम, बर्फ जल्दी पिघलने और ग्लेशियरों के सिकुड़ने से पानी की उपलब्धता कम हो गई है, झेलम जैसी नदियों में 30 प्रतिशत तक कम प्रवाह देखा गया है।

    जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की कमी ने फसल उत्पादन को काफी प्रभावित किया है। एक बागवानी अधिकारी ने बताया कि कश्मीर में सेब के बागों में 50 प्रतिशत की कमी आई है।

    कश्मीर को होगा लाभ

    कश्मीर विशेषज्ञ सलीम रेशी ने कहा कि कई वर्षों से घाटी के किसान सूखे के कारण नुकसान झेल रहे हैं, अगर झेलम का उपयोग उनके लिए किया जाए तो अच्छी फसल होगी। हम उम्मीद कर सकते हैं कि नई बिजली परियोजनाएं और बिजली उत्पादन बढ़ेगा। संधि निलंबित रहने से ही कश्मीर को लाभ मिलेगा।

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