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    कश्मीरी हिंदुओं के बिना अधूरा है कश्मीर, शिवरात्रि पर बर्फ से बनाया जाता है शिवलिंग; सभी लोग मिलकर मनाते हैं त्योहार

    Updated: Thu, 18 Dec 2025 02:03 PM (IST)

    कश्मीरी हिंदू कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर को अधूरा मानते हैं, क्योंकि यहां पग-पग पर उनके निशान हैं। 1990 में आतंकवाद के कारण विस्थापित हुए कश्मीरी ...और पढ़ें

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    कश्मीरी हिंदू कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर को अधूरा मानते हैं (File Photo)

    जागरण संवाददाता, जम्मू। कश्मीर कश्मीरी हिंदुओं के बिना अधूरा है, क्योंकि यहां पग-पग पर कश्मीरी हिंदुओं के निशान हैं। कहीं मंदिरों की धरोहर तो कहीं कश्मीरी संतों के आश्रम, यहां कश्मीरी हिंदुओं की परंपरा को जोड़ते आए हैं।

     

    इसी वातावरण में वह सदियों से रहकर त्योहार रीति-रिवाज से मनाते आया है। यहीं उनके बड़े-बुजुर्गों का जीवन बीता, लेकिन 1990 में आतंकवाद के दौर में वह घाटी से विस्थापित हो गए।

    आज वे घरों से दूर रहकर अपने रीति-रिवाज को सहेजने के लिए प्रयासरत हैं। मगर जो बात कश्मीर में रहकर हो सकती है वह जम्मू या देश के अन्य राज्यों में रहकर संभव नहीं।

    इसलिए किसी न किसी रूप में उनकी संस्कृति में बिखराव आया है। विश्व प्रवासी दिवस पर कश्मीरी हिंदुओं की टीस है कि काश उनकी घर वापसी हो जाए ताकि हर कश्मीरी अपने त्योहार उसी प्रकार मना सके, जैसे कि 35 वर्ष पूर्व कश्मीर में मनाते रहे हैं।

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    हर कश्मीरी हिंदू को वह सब त्योहार खूब याद आते हैं जो कश्मीर की आबोहवा में रहकर मनाते रहे हैं, मगर अब जम्मू व दूसरे स्थलों पर मनाने पड़ते हैं।

    इससे कश्मीर में इनकी संस्कृति की परत फीकी पड़कर बिखर रही है। मगर कश्मीरी पंडित इसे संजोने के प्रयास में है। इस उम्मीद में कि एक दिन घर वापसी होगी ही और फिर से अपने त्योहार परंपरा से मनाएगा।

    कहां से लाएं पहाड़ों की बर्फ

    कश्मीरी हिंदुओं का कहना है कि शिव रात्रि उनका बड़ा त्योहार है जब पूरा परिवार एक साथ भगवान शिव की कई दिन तक पूजा-अर्चना करता है। मगर यह त्योहार मनाने का मजा तो कश्मीर में ही है, क्योंकि कुछ घरों में तो शिवरात्रि का त्योहार पहाड़ों पर गिरी ताजी बर्फ से भी होता है।

    इस बर्फ को घरों में लाकर शिवलिंग बनाया जाता है, फिर पूजा की जाती है। यह अपने आप में अनोखी परंपरा है लेकिन जम्मू में रहकर ऐसा संभव नहीं है।

    कहां से यह बर्फ ढूंढ कर लाएं। रूपनगर में रह रहे मोहन धर ने बताया कि कश्मीरी संस्कृति में बिखराव सा आ रहा है। यह तभी रुकेगा जब कश्मीरी हिंदू कश्मीर में होगा।