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    कश्मीर में कड़ाके की ठडं के बीच प्रदूषित हवा लील रही लोगों का स्वास्थ्य, जानिए बढ़ते पॉल्यूशन क्या हो रहा नुकसान

    By Raziya Noor Edited By: Rahul Sharma
    Updated: Wed, 10 Dec 2025 03:35 PM (IST)

    कश्मीर में कड़ाके की ठंड के बीच, प्रदूषण का स्तर बढ़ने से लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। श्रीनगर और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता ख ...और पढ़ें

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    डॉ. जाविद अहमद ने कहा, बिगड़ती एयर क्वालिटी का सीधा असर लोगों की सेहत पर पड़ रहा है।

    रजिया नूर, श्रीनगर। कश्मीर घाटी के लोगों को सर्दियों के मौसम में केवल कड़ाके की ठडं का ही मुकाबला नही करना पड़ता है बलकि सर्दियों के दौरान अब उन्हें बढ़ते प्रदूषण की चुनौती से भी जूझना पड़ रहा है। जमाव बिंदु से नीचे बने रहने वाले तापमान के बीच प्रदूषित हवा अब स्थानीय लोगों के स्वास्थय को धीरी धीरे लील रही है।

    पर्यावरण विशेषज्ञों तथा चिकित्सकों के अनुसार लंबे समय तक सूखा मौसम, ट्रैफिक से निकलने वाले धुएं में बढ़ोतरी, बायोमास जलाने और इंडस्ट्रियल पॉल्यूटेंट्स से पैदा होने वाले प्रदूषण का स्तर इसे काबू करने के लिए कोई उचित नीति न होने के चलते लगातार बढ़ रहा है।

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    उन्होंने चेताया कि यदि यह सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो घाटी का हर दूसरा तीसरा व्यक्ति सांस की बीमारियों से ग्रस्त होगा और यहां की हवा में सांस लेना भी कठिन हो जाएगा। हालिया दिनों में एयर क्वालिटी मॉनिटर्स ने हाल के दिनों में बार-बार पीएम 2,5 और पीएम 10 का स्तर सुरक्षित लिमिट से ऊपर रिकॉर्ड किया है। 

    कश्मीर में प्रदूषण का स्तर ज़्यादा

    हालिया दिनों में घाटी में प्रदूषण का स्तर ज़्यादा रहा, पीएम10 136 से 243 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर और पीएम 2.5 86 से 167 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के बीच रहा, दोनों ही वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन की सेफ़ लिमिट से काफ़ी ऊपर हैं। इस हवाले से डाक्टरों का कहना है कि हवा में प्रदूषण का बढ़ता ग्राफ इंसानी स्वासथ्य के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। घाटी के एक प्रसिद्ध डाक्टर डा. जाविद अहमद भट ने कहा, बिगड़ती एयर क्वालिटी का सीधा असर पब्लिक हेल्थ पर पड़ रहा है।

    उन्होंने कहा, अस्पतालों के आउटपेशेंट डिपार्टमेंट(ओपीडी) में खांसी, सांस फूलना, सीने में जकड़न, आंखों में जलन और गले में जलन की शिकायत करने वाले मरीज़ों की संख्या लगातार बढ़ रही है। उन्होंने कहा,हम आम दिनों में औसतन उक्त लक्षणों से ग्रस्त 150-200 मरीजों का इलाज करते हैं। लेकिन इन दिनों ऐसे मरीजों की संख्या औसतन 300-400 तक पहुंच गई है।

    अस्थमा के मरीज़ों की संख्या काफ़ी बढ़ी

    उन्होंने कहा, यह संख्या इससे भी अधिक हो सकती है। क्योंकि यह संख्या केवल मुख्य या जिला अस्पतालों में पाई जाती है। प्राथमिक चिकितसा केंद्रों में भी मरीज इन्हीं लक्षणों के साथ अपना इलाज करवाने आते हैं। उन्होंने कहा, 'पिछले कुछ हफ़्तों में सांस की दिक्कतों, खासकर क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (सीओपीडी) और अस्थमा के मरीज़ों की संख्या काफ़ी बढ़ गई है।

    घाटी के प्रसिद्ध छाती रोग विशेषज्ञ डॉ. नवीद नजीर शाह ने कहा कि खराब एयर क्वालिटी मौजूदा हालात को और खराब कर रही है और सांस की तकलीफ़ के नए मामले शुरू कर देती है। उन्होंने कहा कि बच्चे, बुज़ुर्ग और पहले से फेफड़ों या दिल की बीमारी वाले लोगों में सर्दियों के दौरान बीमारी जोर पकड़त थी क्योंकि भीषण ठंड उनके लिए एक ट्रिगर फैक्टर बन जाती थी।

    अन्य बीमारियों का भी कारण बन रहा एयर प्रदूषण

    अलबत्ता अब प्लयूटेड एयर(प्रदूषित एयर) इन बीमारियों के लिए एक नया ट्रिगरिंग फैक्टर बन गया है। डॉ. शाह ने चेतावनी दी कि इसका असर सिर्फ़ सांस की बीमारियों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह अन्य बीमारियों जिनमें आंख की बीमारियां, त्वचा रोग, सुनने की क्षमता व अन्य बीमारियों का कारण भी बन गया है।

    प्रसिद्ध ह्रदयरोग विशेषज्ञ डा तारिक रशीद ने कहा कि प्रदूषित हवा में लंबे समय तक रहने से हार्ट अटैक, हाई ब्लड प्रेशर, कार्डियक एरिथमिया और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने कहा, बारीक पार्टिकल्स ब्लडस्ट्रीम में चले जाते हैं और सूजन पैदा कर सकते हैं, जिससे दिल पर ज़्यादा दबाव पड़ता है।'

    स्टडीज़ में खराब एयर क्वालिटी को थकान, सिरदर्द, कम इम्यूनिटी, एंग्जायटी और नींद के साइकिल में गड़बड़ी से भी जोड़ा गया है।

    बारिश में कमी, ट्रैफिक जाम सहित कई प्रदूषण के कारण

    इधर पर्यावरण विशेषज्ञ भी घाटी में बिगड़ती एयर क्वालिटी के लिए कई वजहों को ज़िम्मेदार मानते हैं, जिनमें बारिश की कमी, जो धूल और पॉल्यूटेंट्स को जमने में मदद करती है, ट्रैफिक जाम के कारण गाड़ियों से होने वाला एमिशन बढ़ना, प्लास्टिक और बायोमास समेत कचरे को जलाना, हीटिंग के लिए कोयले की बुखारी और लकड़ी का इस्तेमाल और निर्माणाधीन स्थलों से निकलने वाली धूल शामिल हैं।

    पर्यावरण विशेषज्ञ मंजूर वांगनू ने कहा कि घाटी को ज़्यादा सख्त मॉनिटरिंग और लॉन्ग-टर्म प्लानिंग की ज़रूरत है। उन्होंने कहा, सस्टेनेबल शहरी मैनेजमेंट और कम एमिशन के बिना, हमें हर सर्दी में खराब होती एयर क्वालिटी का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा,आज से 30-40 वर्ष पहले यहां सर्दियों में ऐसी सिथिति का सामना नही करना पड़ता था। हवा साफ थी।

    प्रशासन के पास इस पर काबू पाने के लिए कोई नीति नहीं

    हां ठंड की वजह से लोगों को मौसमी बीमारियां जरूर सताती थी। लेकिन आज हमें दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वह इस लिए कि यहां प्रदूषण चाहे वह हवा में हो, पानी में हो या नोइज प्लयूशन हो, प्रशासन के पास इसे काबू करने के लिए कोई नीति नहीं है और ना ही आम लोगों को इसके बारे में कोई जागरूक्ता है।

    वांगनू ने कहा,टूरिजम हमारे कशमीर की बैकबून है। यहां हजारों नही लाखों की संख्या में टूरिस्ट आते हैं यहां की ताजा हवा और खुशगवार वातावरण का लुत्फ उठाने। अगर यहां की आबोहवां में इसी तरह जहर घुलता रहा तो यहां आने से पहले टूरिस्ट हजार बार सोंचेंगे।

    डॉक्टरों ने लोगों को बचाव की दी सलाह

    इधर डाक्टरों ने लोगों से अपील की है कि वे बाहर कम निकलें और स्वास्थ्य समस्याओं से बचने के लिए बचाव के तरीके अपनाएं, जैसे कि बाहर कम निकलें, सुबह और शाम को जब प्रदूषण का स्तर सबसे ज़्यादा हो तो बाहर की गतिविधियों से बचें।

    उन्होंने धुंध वाले दिनों में खिड़कियां बंद रखने, बाहर जाते समय नुकसानदायक पार्टिकल्स को फिल्टर करने के लिए एन 95 या केएन 95 मास्क पहनने, शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद के लिए खूब पानी पीने, घर के अंदर एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करने की सलाह दी, जो अस्थमा, दिल की बीमारी या फेफड़ों की पुरानी समस्याओं वाले मरीजों के लिए खास तौर पर ज़रूरी है।

    कचरा या बायोमास जलाने से बचें

    डॉक्टरों ने कहा, कचरा या बायोमास जलाने से बचें, क्योंकि यह नुकसानदायक पाल्यूटेंट्स में सबसे बड़ा योगदान देने वालों में से एक है; दोपहर के समय जब प्रदूषण का स्तर कम होता है, तो कमरों को हवादार रखें।

    बता देते हैं कि कभी साफ़ हवा के लिए जाना जाने वाली घाटी एयर प्लयूशन के बढ़ते ग्राफ के चलते अब सांस लेने के लिए एक खतरनाक चीज़ बन गया है। अलग-अलग मॉनिटरिंग जगहों का एयर क्वालिटी इंडेक्स ( एकक्यूआई) पूरे हफ़्ते 150 को पार कर गया है। हालिया किए गए शोध से पता चला है कि यहां माइक्रोस्कोपिक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) का लेवल लगभग 150 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रहा है।

    यह लेवल वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन की हेल्दी हवा की गाइडलाइंस से कहीं ज़्यादा है। इसके अलावा, एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग लैब्स ने सैटेलाइट इमेजिंग के साथ-साथ ज़मीन पर मौजूद पल्यूशन मॉनिटरिंग स्टेशनों से 200 यूजी-एम³ से ज़्यादा पीएम10 रीडिंग रिकॉर्ड की हैं।