अब्दुल्ला परिवार की चौथी पीढ़ी करेगी सियासी आगाज, किस सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में CM उमर का बेटा?
जम्मू-कश्मीर के बड़गाम विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव होने की संभावना है। उमर अब्दुल्ला के बेटे जमीर अब्दुल्ला इस चुनाव से राजनीति में पदार्पण कर सकते हैं। चुनाव आयोग ने पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिए हैं जिससे राजनीतिक माहौल गरमा गया है। बड़गाम सीट पर टिकट के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस में खींचतान चल रही है। उमर अब्दुल्ला अपने बेटे जमीर को उतारकर सभी दावेदारों को शांत कर सकते हैं।

जागरण संवाददाता, श्रीनगर। बड़गाम विधानसभा क्षेत्र में प्रस्तावित उपचुनाव से अब्दुल्ला परिवार की चौथी पीढ़ी चुनावी राजनीति में पदार्पण कर सकती है। सब अनुकूल रहा तो पार्टी चुनाव की घोषणा के साथ ही मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बेटे जमीर अब्दुल्ला के नाम पर मुहर लगा सकती है।
चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव के साथ जम्मू-कश्मीर की रिक्त बड़गाम व नगरोटा सीट के लिए भी पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिए हैं। इसके साथ ही प्रदेश में राजनीतिक माहौल गर्मा गया है।
उमर अब्दुल्ला दो सीटों बड़गाम व गांदरबल से विधानसभा चुनाव में उतरे थे और दोनों पर ही उन्हें जीत मिली थी। बाद में उन्होंने बड़गाम सीट खाली कर दी थी। जम्मू की नगरोटा सीट भाजपा विधायक देवेंद्र सिंह राणा के निधन के कारण रिक्त हुई थी।
चुनाव की आहट के साथ ही बड़गाम सीट पर टिकट के लिए नेकां में खींचतान भी शुरू हो गई है। एक तरफ बागी तेवर अपनाए श्रीनगर के सांसद आगा सैयद रुहुल्ला इस सीट पर प्रत्याशी चयन में अपना दखल चाहते हैं और वहीं मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला किसी विश्वस्त को चुनाव लड़ाना चाहते हैं।
रुहुल्ला का इस क्षेत्र में वर्चस्व रहा है और 2002 से 2014 तक लगातार तीन चुनाव जीते थे। ऐसे में चर्चा है कि उमर बेटे जमीर को उतार सभी दावेदारों को शांत कर सकते हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस से जुड़े सूत्र बताते हैं कि पेशे से वकील जमीर अब्दुल्ला देर-सवेर राजनीति में उतरेंगे ही।
लोकसभा चुनाव में भी जमीर ने अपने छोटे भाई जहीर के साथ मिलकर अपने पिता उमर अब्दुल्ला के चुनाव प्रचार में सक्रिय भूमिका निभाई थी। इसके बाद विधानसभा चुनाव के समय भी वह बड़गाम और गांदरबल में लगातार चुनाव प्रचार में सक्रिय रहे। जमीर अब्दुल्ला अक्सर लोगों के बीच दिखाई देते हैं और उनकी समस्याएं सुनते भी नजर आ जाते हैं।
और भी हैं दावेदार
उमर अपने राजनीतिक सलाहकार नासिर असलम वानी को यहां से चुनाव लड़ाने के मूड में हैं। साथ ही शिया नेता आगा सैयद महमूद का भी नाम लिया जा रहा है, लेकिन सांसद आगा सैयद रुहुल्ला अपने इस गढ़ में अपनी पसंद का ही उम्मीदवार उतारने पर अड़े हैं।
बड़गाम में शिया वोटरों का प्रभाव रहा है। ऐसे में आगा की नाराजगी नेकां के लिए घाटे का सौदा बन सकती है।
शिया वोटरों को लुभाने के लिए ही पिछले चुनाव में पीडीपी ने यहां उमर के खिलाफ शिया धर्मगुरु और अलगाववादी आगा सैयद हसन बड़गामी के बेटे आगा मुंतजिर को उतारा था और उन्हें 17525 वोट मिले थे। उमर अब्दुल्ला भले ही चुनाव जीत गए पर उन्हें यहां लगातार डटे रहना पड़ा और आगा सैयद रुहुल्ला भी उनके साथ खड़े रहे।
साल1977 के बाद इस सीट से नहीं हारी नेशनल कॉन्फ्रेंस नेकां की सियासत पर नजर रखने वाले रशीद राही बताते हैं कि वर्ष 1977 के बाद नेकां कभी बड़गाम सीट नहीं हारी, क्योंकि उसे आगा खानदान का समर्थन रहा है।
उमर के बड़गाम सीट छोड़ने के बाद इस सीट पर उम्मीदवार के चयन के मुद्दे पर ही आगा सैयद रुहुल्ला मुख्यमंत्री से नाराज हैं। वह अपने क्षेत्र में नासिर असलम वानी को नहीं चाहते। न ही वह किसी दूसरे शिया नेता का दखल चाहते हैं।
पीडीपी के संभावित उम्मीदवार आगा मुंतजिर और आगा सैयद रुहुल्ला एक ही खानदान से हैं, लेकिन दोनों परिवारों की खींचतान जगजाहिर है। नासिर असलम पर बाहरी का तमगा लग सकता है। वह मूलत: कुपवाड़ा के हैं और पिछला चुनाव पीडीपी के मीर फैयाज से हार गए थे।
पीडीपी उम्मीदवार सैयद अल्ताफ बुखारी हार गए थे चुनाव
साल 2008 में उन्होंने अमीराकदल सीट पर चुनाव जीता था, लेकिन 2014 में वह पीडीपी उम्मीदवार सैयद अल्ताफ बुखारी से हार गए थे। ऐसे में नेकां का एक वर्ग बीच का रास्ता निकालने का प्रयास करते हुए जमीर का नाम आगे बढ़ा रहा है क्योंकि उनके नाम का विरोध सांसद भी नहीं कर पाएंगे।
चुनाव की घोषणा के बाद तय होगा प्रत्याशी इस बीच सांसद आगा सैयद रुहुल्ला ने बड़गाम से पार्टी प्रत्याशी के बारे में पूछे जाने पर कहा कि अभी चुनाव की तिथि का एलान नहीं हुआ है।
फिलहाल किसी नाम की कोई चर्चा नहीं है, जब चुनाव का एलान होगा, उसके बाद तय होगा और जो तय होगा वह बडगाम के मतदाताओं की पंसद का होगा।
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