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    अब महिलाओं के हवाले होगा आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद? ऑपरेशन सिंदूर से बौखलाए मसूद अजहर ने किया ये एलान

    Updated: Fri, 10 Oct 2025 03:25 PM (IST)

    ऑपरेशन सिंदूर में मिली हार के बाद जैश-ए-मोहम्मद ने जमात-उल-मोमिनात नामक महिला आतंकी संगठन बनाया है। मौलाना मसूद अजहर ने अल-कलाम में इसका एलान किया। सादिया अजहर इसकी प्रमुख है। संगठन में महिलाओं को इस्लाम के नाम पर बरगलाकर भर्ती किया जा रहा है। सुरक्षा बल सतर्क हैं क्योंकि जैश का नेटवर्क ऑपरेशन सिंदूर में तबाह हो गया है। महिलाएं आतंकियों की मददगार के रूप में सक्रिय रही हैं।

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    ऑपरेशन सिंदूर से बौखलाया जैश, बनाया जमात-उल-मोमिनात संगठन। फाइल फोटो

    नवीन नवाज, श्रीनगर। ऑपरेशन सिंदूर में बुरी तरह मात खाने वाला और दुनियाभर से भीख मांगकर देश चलाने वाला पाकिस्तान आतंकवाद को शह देने में अभी भी बाज नहीं आ रहा है। पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई की छत्रछाया में पलने वाले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने अपनी आतंकी गतिविधियां बढ़ाने के लिए एक बार फिर महिला आतंकियों की भर्ती शुरू कर दी है।

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    इस बार महिला आतंकियों के संगठन का नाम जमात-उल-मोमिनात रखा गया है। इसकी सरगना सादिया अजहर को बनाया गया है। सादिया, जैश के सरगना अजहर मसूद की छोटी बहन और सात मई को ऑपरनेशन सिंदूर में भारत की जैश मुख्यालय पर की गई कार्रवाई में मारे गए आतंकी कमांडर यूसुफ अजहर उर्फ उस्ताद की पत्नी है। वहीं, पाकिस्तान के इस षड्यंत्र को विफल बनाने के लिए भारतीय सुरक्षाबल पहले से सतर्क हैं।

    जमात-उल-मोमिनात के गठन का एलान मौलाना मसूद अजहर ने अपने ऑनलाइल प्रोपेगंडा मुखपत्र अल-कलाम में किया है। इसमें महिलाओं को संगठन में भर्ती होने के लिए इस्लाम का वास्ता दिया गया है। इस संगठन में भर्ती के लिए जैश कमांडरों की पत्नियों और उनकी बहनों-बेटियों के अलावा गरीब परिवारों की महिलाओं को इस्लाम के नाम पर और उन्हें बरगलाकर शामिल कराया जा रहा है।

    इससे पहले जैश के महिला आतंकियों के संगठन का नाम बन्नत-ए-आयशा था। भारतीय सुरक्षा बल की सख्ती, सजगता व सतर्कता से बन्नत-ए-आयशा की गतिविधियां एक लंबे समय से बंद पड़ी हुई हैं। जैश अब फिर महिलाओं को जिहाद की आग में झौंक रहा है।

    इन शहरों में चल रही भर्ती

    सूत्रों के अनुसार, जमात-उल-मोमिनात के लिए भर्ती आठ अक्टूबर से पाकिस्तान के बहावलपुर में स्थित जैश के एक प्रमुख कैंप मरकज-उस्मान-ओ-अली में शुरू की गई है। जैश ने महिला आतंकियों की भर्ती के लिए बहावलपुर, मुल्तान, सियालाकोट, कराची, मुजफ्फराबाद, कोटली, हरिपुर मनशेरा में भी एक दुष्प्रचार अभियान चलाया हुआ है।

    यासमीना सहित पहले भी सक्रिय रही हैं महिला आतंकी

    कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों में शामिल एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार, जैश पहले भी महिला जिहादियों को ट्रेंड करता रहा है। उसके महिला विंग का नाम बन्नत-ए-आयशा था, जिसकी गतिविधियां एक लंबे समय से बंद हो चुकी हैं। उन्होंने कहा कि कश्मीर में वर्ष 2006 में अवंतीपोरा में यासमीना नामक एक युवती जैश की आत्मघाती आतंकी थी।

    वह अवंतीपोरा में हाईवे पर आत्मघाती हमले को अंजाम देते हुए मारी गई थी। उसने जैश के एक पाकिस्तानी आतंकी अदनान से शादी की थी। यासमीना की मौत पर जैश के प्रवक्ता ने भी दावा किया था कि वह बन्नत-ए-आयशा की सदस्या थी। वह कश्मीर में जैश की पहली महिला आत्मघाती आतंकी थी। इसके अलावा लश्कर में भी महिला आतंकी सक्रिय रही हैं। सुरक्षा बल के कड़े प्रहारों के बाद इसमें कमी आती गई।

    महिलाओं की भर्ती से संकेत साफ है, ऑपरेशन सिंदूर में तबाह हो चुका है जैश का नेटवर्क

    कश्मीर मामलों के जानकार सैयद अमजद शाह ने कहा कि अगर जैश महिला आतंकियों की भर्ती कर रहा है तो यह संकेत है कि जैश का नेटवर्क ऑपरेशन सिंदूर में तबाह हो गया है। यही कारण है कि वह अब महिलाओं के सहारे आतंकी हिंसा को आगे बढ़ाना चाहता है।

    हमें यह भी देखना चाहिए कि क्या इस संगठन की महिला आतंकी जम्मू-कश्मीर में आएंगी या जैश जम्मू-कश्मीर में इस्लाम का वास्ता देकर महिला आतंकी तैयार करेगा। इसलिए जमात-उल-मोमिनात दिखावे के लिए एक शिक्षा केंद्र या महिला कल्याण केंद्र के रूप में प्रसारित किया जा सकता है और असलियत में वह आतंकवाद का केंद्र होगा। इसलिए पहले से सतर्क रहने की जरूरत है।

    अधिकतर आतंकियों की मददगार के रूप में भी सक्रिय रही महिलाएं

    कश्मीर मामलों के जानकार रशीद राही ने कहा कि घाटी में जैश ने महिला आतंकियों का अब तक ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया है। एक-दो मामलों को छोड़ दिया जाए तो हमें यहां कोई महिला आतंकी सुरक्षाबलों पर हमला करने या ग्रेनेड फेंकते में शामिल नहीं थी। हां, आतंकियों के लिए हथियार व सुरक्षित ठिकानों का बंदोबस्त करने, आतंकियों को सुरक्षाबलों की घेराबंदी से सुरक्षित निकालने और उनके लिए मुखबिरी तक सीमित रही हैं।