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    अलगाववादी एजेंडे को किनारे रख आगे बढ़ने को तैयार हुर्रियत! केंद्र से बातचीत की इच्छा जताई

    Updated: Sat, 26 Oct 2024 12:50 PM (IST)

    कश्मीर की राजनीति में इन दिनों बदलाव देखने को मिल रहा है। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का उदारवादी गुट अब अपने एजेंडे से किनारा करने को तैयार है। मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने विवाद सुलझाने के लिए केंद्र से बातचीत की इच्छा भी जताई। 22 अक्टूबर को पांच वर्ष में पहली बार हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के उदारवादी गुट की कार्यकारी समिति के वरिष्ठ नेताओं के बीच पहली बैठक हुई थी।

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    श्रीनगर की जामिया मस्जिद में शुक्रवार को मीरवाइज मौलवी उमर फारूक (जागरण फोटो)

    नवीन नवाज, श्रीनगर। कश्मीर में बदलते राजनीतिक परिदृश्य में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का उदारवादी धड़ा अब अलगाववादी एजेंडे से किनारा करने को तैयार दिखता है। हुर्रियत के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने शुक्रवार को श्रीनगर की ऐतिहासिक जामिया मस्जिद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की परोक्ष रूप से सराहना कर इसके संकेत भी दे दिए। साथ ही तमाम विवाद सुलझाने के लिए केंद्र से बातचीत की इच्छा भी जताई।

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    पाकिस्तान का नाम लिए बगैर बातचीत की वकालत की

    यह पहला अवसर है जब हुर्रियत ने बिना पाकिस्तान का नाम लिए सीधे केंद्र से कश्मीर पर द्विपक्षीय बातचीत की वकालत की है। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स सम्मेलन में सभी विवादों के समाधान के लिए प्रधानमंत्री ने बातचीत पर जोर दिया है।

    हुरिर्यत भी कश्मीर में हिंसा रोकने को केंद्र सरकार से बातचीत को हमेशा तैयार है। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस पहले भी कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए बातचीत की वकालत करती रही है, लेकिन वह तब त्रिपक्षीय वार्ता पर जोर देती थी।

    दैनिक जागरण ने पहले ही दिया था संकेत

    22 अक्टूबर को पांच वर्ष में पहली बार हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के उदारवादी गुट की कार्यकारी समिति के वरिष्ठ नेताओं के बीच पहली बैठक हुई थी। बैठक के बाद ही दैनिक जागरण ने संकेत दिया था कि अलगाववादी संगठन अब कश्मीर मुद्दे पर अपने पुराने स्टैंड में बदलाव लाने जा रहा है। जामिया मस्जिद में जुमे की नमाज से पहले मीरवाइज ने हुर्रियत नेताओं की 22 अक्टूबर वाली बैठक के बारे में विस्तार से ब्यौरा दिया।

    बैठक में इन लोगों को किया गया याद

    उस बैठक में प्रो. अब्दुल गनी बट, बिलाल गनी और मसरूर अब्बास अंसारी ने भाग लिया था। मीरवाइज उमर फारूक ने संबोधन में पांच वर्ष में दिवंगत हुए हुर्रियत नेताओं को याद किया और जेल में बंद यासीन मलिक, शब्बीर शाह, आसिया अंद्राबी, शाहिदुल इस्लाम, नईम खान, मसर्रत आलम जैसे अलगाववादियों का जिक्र किया।

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    यह बोले मीरवाइज

    स्थानीय और वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव का उल्लेख करते हुए मीरवाइज ने कहा कि 1993 में जब हुर्रियत बनी थी, तब कश्मीर में हिंसा चरम पर थी। हुर्रियत ने पहले ही दिन से कश्मीर में शांति और बातचीत पर जोर दिया। आज 31 वर्ष बाद भी हम बातचीत के समर्थक हैं।

    उन्होंने कहा कि ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा युद्ध के बजाय संवाद-सहयोग से विवादों के समाधान की बात करना काबिले तारीफ है। उनके इस बयान को हम कश्मीर मसले के शांतिपूर्ण हल की दिशा में बातचीत के रूप में देखते हैं।

    मीरवाइज ने कहा कि नरेन्द्र मोदी से पहले अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. मनमोहन सिंह के दौर में भी हम कश्मीर मुद्दे पर बातचीत कर चुके हैं। गांदरबल और गुलमर्ग आतंकी हमले की निंदा करते हुए उन्होंने कहा कि आज भी कश्मीर में हिंसा और खूनखराबा रोकने के लिए हुर्रियत केंद्र सरकार से बातचीत के लिए तैयार है।

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