कश्मीर के गुरेज सेक्टर में शांति और स्थिरता का संकेत लेकर फिर लौटा हिमालयन आइबेक्स, क्या है इसकी वापसी का कारण?
कश्मीर के गुरेज सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर शांति होने के बाद हिमालयन आइबेक्स फिर से दिखाई दिए हैं। स्थानीय लोग और वन्य जीव विभाग इसे पारिस्थितिकी तंत ...और पढ़ें

गुरेज में इसे समाप्त माना जा रहा था। फाइल फोटो।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। कश्मीर घाटी का गुरेज सेक्टर पाक गोलाबारी की कारण महेशा ही अशांत रहा है। जहां के स्थानीय लोग व जंगलों में रहने वाले जानवर नियंत्रण रेखा के नजदीक जाने से भी परहेज करते थे। परंतु अब ऐसा नहीं है।
नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी थम जाने के बाद जहां यहां के सीमांत इलाकों में रहने वाले लोगों में डर का माहौल दूर कर दिया है वहीं गुरेज की शान कहे जाने वाला हिमालयन आइबेक्स शांति और स्थिरता का संदेश लेकर एक बार फिर लौट आए हैं। हिमालयन आइबेक्स जिसे मारखाेर, जंगली बकरा भी कहा जाता है, एलओसी पर बिना डर व खौफ के विचरण करते हुए नजर आते हैं।
स्थानीय लोगों और वन्य जीव विभाग ने उसकी वापसी को सुखद बताते हुए कहा कि यह सिर्फ स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार का संकेत है। मारखोर अपने खास घुमावदार सींगों और खड़ी और पथरीली पहाड़ी ज़मीन पर चलने की ज़बरदस्त काबलियत के लिए जाना जाता है, और इसे उच्चपर्वतीय स्थिर और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र का एक अहम संकेत माना जाता है।
यह जम्मू कश्मीर में उड़ी में भी पाया जाता है और गुलाम जम्मू कश्मीर में भी। गुरेज में कभी मारखाेर बड़़ी संख्या में मिलता था, लेकिन विगत कुछ वर्षाें के दौरान यह लगभग लुप्त हो गया था। गुरेज में इसे समाप्त माना जा रहा था।
तीन सप्ताह में चार बार देखा गया
वन्य जीव विभाग के अनुसार, गुरेज में एलओसी के साथ सटे चक नाला में मारखाेर को बीते एक सप्ताह में तीन से चार बार देखा गया है और यह एक नहीं हे, यह दो से तीन हैं। इनकी संख्या ज्यादा भी हो सकती है। उन्होंने बताया कि गुरेज के वनीय क्षेत्रों में आम लोगों की आवाजाही और उनका अनावश्यक हस्तक्षेप भी अब पहले से कम हुआ है।
प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में सुधार का संकेत
हिमालयन आइबेक्स का गुरेज में लौटना स्थानीय प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार का संकेत है। माना जाता है कि इस इलाके का ऊबड़-खाबड़ इलाका, पहाड़ी पेड़-पौधे और इंसानों की कम गतिविधियां इस प्रजाति को जिंदा रहने और प्रजनन के लिए एक अनुकूल वातावरण प्रदान करती हैं। चक नाला से कुछ ही दूरी पर चकवाली के रहने वाले अनवर खान ने कहा कि मारखोर का फिर से लौटना, हमारे गुरेज की समृद्ध जैव विविधिता और प्राकृतिक विरासत की पहचान है।
गुरेज के ईको टूरिज्म को मिलेगा बढ़ावा
लोग अब वन्य जीवों के संरक्षण के प्रति पहले से कहीं ज्यादा जागरूक हैं। मारखाेर व अन्य वन्य जीवों का गुरेज में फिर से नजर आना गुरेज के ईको टूरिज्म को बढ़ावा देगा। लेकिन एक बात है, ईको टूरिज्म को भी रेग्युलेट करने की जरुरत है। वन एवं वन्य जीव विभाग के अधिकारियों ने कहा कि इस मारखोर का गुरेज में लौटना, हमें स्थानीय प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के हमारे प्रयासों को और गति देने के लिए प्रोत्साहित करता है। में इस पूरे इलाके में वन्य जीवों की लंबे समय तक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इलाके में वन्य जीवों के संरक्षण की योजना की नए सिरे से समीक्षा की जरुरत है।

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