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    जम्मू-कश्मीर पर मंडरा रहा विनाशकारी भूकंप का खतरा, विशेषज्ञ बोले- वर्ष 2005 से भी तीव्र भूकंप आने की आशंका

    Updated: Mon, 01 Sep 2025 08:12 PM (IST)

    अफगानिस्तान में भूकंप के बाद कश्मीर में लगातार झटके महसूस किए जा रहे हैं जिससे खतरा बढ़ गया है। कश्मीर के सभी जिले भूकंप के लिहाज से संवेदनशील हैं खासकर डोडा किश्तवाड़ और रियासी। विशेषज्ञ टेक्टोनिक गतिविधियों से चिंतित हैं और लोगों को मानसिक रूप से तैयार रहने की सलाह दे रहे हैं।

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    जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता है क्योंकि जम्मू-कश्मीर उच्च भूकंपीय क्षेत्र में स्थित है।फाइल फोटो।

    रजिया नूर, जागरण, श्रीनगर। अफगानिस्तान में विनाशकारी भूकंप के बाद कश्मीर में लगातार महसूस किए जा रहे झटके खतरे की घंटी बजा रहे हैं। भूकंप के लिहाज से कश्मीर के सभी जिले सबसे अधिक संवेदनशील हैं। जिन इलाकों में पहले भूकंप आ चुके हैं, वहां भूकंप की आशंका ज्यादा है। प्रदेश में सीजमिक जोन 4 और 5 भूकंप के लिए ज्यादा संवेदनशील हैं।

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    अधिकांश भूकंप सीजमिक जोन 4 आते हैं। घाटी की तरह डोडा, किश्तवाड़, भद्रवाह, और रियासी जैसा इलाका भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं। यह क्षेत्र भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव के कारण फॉल्ट लाइनों पर स्थित है। जम्मू-कश्मीर में 2.0 से 4.0 तीव्रता के छोटे भूकंप अक्सर आते रहते हैं। ये आमतौर पर नुकसान नहीं पहुंचाते।

    विशेषज्ञ लगातार रख रहे स्थिति पर नजर

    जम्मू-कश्मीर में स्थिति पर नजर रख रहे विशेषज्ञ, भूकंप के प्रति संवेदनशील पीर पंजाल और जंकार पर्वत श्रृंखला जैसे क्षेत्रों में बढ़ती टेक्टोनिक गतिविधियों को लेकर चिंतित हैं। आठ अक्टूबर, 2005 को जम्मू और कश्मीर में 7.6 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आया था जिसमें 1350 लोगों की जान चली गई। इमारतों को भारी नुकसान पहुंचा। पिछले एक वर्ष से जम्मू-कश्मीर में लगातार भूकंप आ रहे हैं, जिनमें कम तीव्रता वाले भूकंप शामिल हैं।

    पूरा प्रदेश उच्च भूकंपीय जोन में शामिल

    विशेषज्ञ एनए निसार ने बताया कि हमें यह समझना होगा कि पूरा जम्मू-कश्मीर उच्च भूकंपीय क्षेत्रों में आता है और भूकंप के प्रति संवेदनशील है। भूकंपीय क्षेत्रों में हल्के भूकंप आना एक सामान्य घटना है, लेकिन चिंता करनी चाहिए क्योंकि हाल ही में आए झटकों की तीव्रता बहुत अधिक थी। उन्होंने कहा समस्या यह है कि ये कंपन जम्मू-कश्मीर में बड़े भूकंप ला सकते हैं, खासकर पहाड़ी इलाकों में। चिनाब घाटी और कश्मीर में भूकंप के उच्च क्षेत्र हैं।

    जागरूकता कार्यक्रम जारी रखने की जरूरत

    स्कूलों, इलाकों और गांवों में लगातार जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने की जरूरत है, ताकि लोग भूकंप के दौरान सावधानी बरतें। बीते कल ही भूंकप का झटका आया था। डोडा जम्मू-कश्मीर में सर्वाधिक पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में से एक बनकर उभरा है। यह भूकंप के प्रति संवेदनशील क्षेत्र है तथा यहां अक्सर कम तीव्रता वाले भूकंप आते रहते हैं। भूकंप सचमुच हमारे नीचे है।

    प्रदेश के लोग मानसिक रूप से भूकंप के लिए रहें तैयार

    जम्मू-कश्मीर के लोगों को भूकंप के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए। मुदासिर अहमद नामक एक और र्पयावरण विशेषज्ञ ने कहा,बीते कुछ समय से प्रदेश में चले आ रहे मौसम के लक्षण जिसमें बादलों का फटना,गलेश्यरों का टूटना,बाढ़ आना आदि शामिल है,कोई अच्छा संंकेत नही है। अहमद ने कहा, इस मौसमी तबदीली का मतलब जमीन के अंदर चलचल हो रही है।

    सीजमिक जोन 5 में है जम्मू-कश्मीर

    हमारा प्रदेश पहले ही सीजमिक जोन 5 में है। ऐसे में यहां कभी भी 2005 में आए विनाशकारी भूंकप से भी बड़ा भूकंप आने से इंकार नही किया जा सकता है। कश्मीर के उत्तर में स्थित लद्दाख के जांस्कर पर्वतों में चट्टानों की क्रमिक गति से पता चलता है कि इस क्षेत्र में अधिकतम संभावित भूकंप के बारे में पहले किए गए अनुमान बहुत कम थे। "इस क्षेत्र में, भारतीय प्लेट धीरे-धीरे तिब्बती पठार के नीचे धंस रही है।

    एक दरार पड़ने की भी है संभावना

    तिब्बती पठार की सापेक्षिक गति सबसे धीमी कहां थी, इस पर किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि कहां संपीड़न बढ़ रहा है, और अंततः एक दरार पड़ने की संभावना है। प्रोफेसर बिल्हाम, जो पिछले 20 वर्षों से हिमालयी क्षेत्र में भूकंपों का अध्ययन कर रहे हैं, ने 2007 में कश्मीर का दौरा किया था। भारत सरकार भूकंपीय गतिविधियों की निगरानी करने तथा संभावित प्रभावों को कम करने के लिए हिमालयी क्षेत्र में उच्च भूकंपीय जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करने के लिए काम कर रही है।

    भूकंप क्यों आते हैं?

    आपको बता दें कि पृथ्वी के अंदर कुल 7 टेक्टोनिक प्लेट्स मौजूद रहती हैं। जानकारी के मुताबिक, ये सभी 7 टेक्टोनिक प्लेट्स अपनी-अपनी जगह पर लगातार घूमती रहती हैं। हालांकि, कई बार घूमने के दौरान ये टेक्टोनिक प्लेटें फॉल्ट लाइन पर टकरा जाती हैं। इनके टकराने से जो घर्षण पैदा होता उससे ऊर्जा उत्पन्न होती है जो कि बाहर निकलने का रास्ता खोजती हैं। यही कारण है कि धरती पर भूकंप के झटके महसूस होते रहते हैं। सब से चिंताजनक बात यह है कि घाटी में आने वाले अधिकांश भूकंपों 95 प्रतिशत भूकंपों के केंद्र अफगानिस्तान व पाकिस्तान है।

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