वंदे भारत: डंडों से पिटाई और आतंकियों की धमकी, 30 सालों से प्रोजेक्ट में काम करने वाले निसार मीर की जुबानी; पढ़ें पूरा Interview
श्रीनगर से दिल्ली तक वंदे भारत रेल सेवा शुरू होने जा रही है। इस प्रोजेक्ट में एक अधिकारी निसार अहमद मीर को आतंकियों से धमकियां मिलीं और उन्हें अपना घर ...और पढ़ें

रजिया नूर, श्रीनगर। घाटी कल यानी 6 जून को दिल्ली से कश्मीर तक वंदेभारत रेल सेवा के माध्यम से जुड़ जाएगी। घाटी के लोगों तक यह सुविधा पहुंचाने के लिए केंद्र को तीन दशक लग गए। तीन दशक बाद यह सपना साकार करने में इस प्रोजेक्ट के साथ जुड़े हजारों कर्मचारियों ने दिन रात एक कर दिए।
वहीं घाटी के एक स्थानीय अधिकारी को इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए आतंकियों की धमकियों के चलते न केवल अपना घर छोड़ना पड़ा, बल्कि उस पर डंडे और लाठियां भी बरसई गईं। निसार अहमद मीर नामक अधिकारी ने इस प्रोजेक्ट के शुरू होने से इसके मुकम्मल होने तक लगातार बतौर सीनियर सेक्शन ऑफिसर काम किया।
काफी चुनौतियों का सामना
जागरण के साथ एक विशेष साक्षात्कार के दौरान निसार अहमद ने इस प्रोजेक्ट के साथ काम करने के अनुभव बांटे। उन्होंने कहा कि मैं खुश हूं कि यह प्रोजेक्ट अपनी मंजिल तक पहुंच गया और खुशनसीब हूं कि मुझे इस ऐतिहासिक प्रोजेक्ट के साथ पहले से अंत तक काम करने का मौका मिला।
हालांकि, इस प्रोजेक्ट के साथ जुड़े रहने के लिए मुझे काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। मीर ने कहा वर्ष 1996 में मैंने रेलवे की परीक्षा पास की और और मुझे इस प्रोजेक्ट में बतौर सेक्शन ऑफिसर तैनात किया गया।
मेरे जिम्मे घाटी में रेलवे के लिए जमीन हासिल करने थी। 1996 में मैंने दिल्ली उधमपूर, 1998 में उधमपुर कटड़ा और फिर 2001 में कटड़ा श्रीनगर रेल लिंक के लिए अपनी ड्यूटी अंजाम दी।
'जमीनें हासिल करना जैसे लोहे का चना चबाना'
हालांकि उधमपुर व कटड़ा में लैंड एक्यूजेशिन(रेलवे के लिए जमीन हासिल करना) में कोई खास दिक्कत पेश नहीं आई। लेकिन कश्मीर में रेलवे के लिए जमीन मालिकों से जमीन प्राप्त करना बहुत ही कठिन था। मीर ने कहा कि यहां उन दिनों हालात खराब थी।
मिलिटेंसी पीक पर थी। लोग जमीन की एक इंच देने से पहले खरीदने वाले से हजार सवाल पूछते थे और यह तो सेंट्रल गवर्नमेंट को जमीन सौंपने का मामला था। लोग आसानी से कैसे दे देते वह भी अपनी जमीनें। हमें अनंतनाग, पुलवामा, बड़गाम, बारामूला, श्रीनगर व शौपियां में रेलवे के लिए जमीनें हासिल करनी थी।
'घायल होने के बाद कई दिनों तक बिस्तर पर पड़ा रहा'
हमने जब यह प्रोसेस शुरू की तो पता चला कि यह कितना मुश्किल काम है। लोगों को जमीनें देने के लिए राजी करना लोहे के चने चबाने के बराबर था। मैंने कोशिश की। मैं जब भी जमीन मालिकों के पास जाता तो वह नाक भंवे चढ़ाते और मुझे अजीब नजरों से देखा करते थे।
कई जगहों पर मुझे मार भी पड़ी। मुझे याद है कि बड़गाम के रेशीपोरा इलाके में रेलवे ट्रैक के लिए जमीन हासिल करने की कोशिश के दौरान गांव वालों ने मुझ पर और मेरी टीम, जिसमें पटवारी भी शामिल हैं, पर डंडों से हमला किया। यह सर्दी का मौसम था।
एक हमलावर ने मेरे सिर पर दहकती गांड़ी दे मारी थी जिससे मैं घायल हो गया था। कई दिन बिस्तर पर पड़ा रहा। इस वाकए के कुछ दिन बाद हम साउथ कश्मीर(दक्षिणी कश्मीर) में रेलवे के लिए जमीनी हासिल करने की प्रोसेस शुरू की कि इसी बीच मुझे धमकियां मिलने लगीं।
'आतंकियों की धमकी से डर गया परिवार'
मैं प्रोजेक्ट के सिलसिले में घर से बाहर ही रहता था। मैं खुद साउथ कश्मीर के कुलगाम इलाके से हूं। मिलीटेंट मेरे घर आकर मेरी फैमिली को डराते धमकाते थे। उन्होंने उनके जरिए मुझ तक यह पैगाम पहुंचाया कि अगर मैंने यह नौकरी नहीं छोड़ी या यह काम नहीं छोड़ा तो वह मुझे जान से मार देंगे। मीर ने कहा कि इन धमकियों के चलते मेरे घरवालों का डर जाना स्वभाविक था।
मैंने नौकरी तो नहीं छोड़ी अलबत्ता अपनी फैमली की खातिर अपना घर छोड़ दिया और अपने परिवार को लेकर श्रीनगर शिफ्ट हो गया और अपने काम में लगा रहा। मीर ने कहा कि इस प्रोजेक्ट के तहत हमें कश्मीर में 16953 कनाल व साढ़े 13 मरला जमीन हासिल करनी थी और यह लक्ष हासिल करने के लिए हमें 30 वर्षों तक कड़ी मशक्कत करनी पड़ी साथ ही बेशुमार चुनौतियां भी झेलनी पड़ी।
अब बदली लोगों की सोच
मीर ने कहा कि हालांकि श्रीनगर शिफ्ट होने के बाद भी मुझे धमकियां मिलती रहीं लेकिन मुझे यह शुभ मिशन पूरा करना था और मैंने इन धमकियों की यह सोच कर परवाह करनी छोड़ दी कि वक्त ऐसा ही नहीं रहेगा। बदल जाएगा, लोगों की सोच बदल जाएगी और वह एक दिन समझ जाएंगे कि इस रेल सेवा से हमारे कश्मीर को फायदा मिलेगा।
मीर ने कहा कि मैं खुश हूं कि लोग आज समझ चुके हैं कि यह रेल सेवा उनके लिए कितनी अहम है। मीर ने कहा मुझे हंसी आती है कि कुछ बरस पहले तक लोग अपनी जमीन का एक इंच भी इस रेल के लिए नहीं देना चाहते थे। लेकिन आज उनकी मांग है कि रेल सेवा घाटी के हर गांव तक पहुंचे।
वर्ष 2032 में मीर सेवानिवृत्त हो रहे हैं। लेकिन उनका कहना है कि वह सेवानिवृत्त होने से पहले वह वंदे भारत रेल सेवा को कुपवाड़ा व लद्दाख तक पहुंचाने की योजना में अपना योगदान देने के लिए तैयार है।

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