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    अनुच्छेद 370 हटने के 6 साल: कानून व्यवस्था में बेहद सुधार, लोगों के चेहरे पर अब डर नहीं; घटी आतंकी हिंसा में मौतों की संख्या

    Updated: Tue, 05 Aug 2025 06:00 AM (IST)

    श्रीनगर में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद कानून व्यवस्था और सुरक्षा में सुधार हुआ है। आतंकी हिंसा में मरने वालों की संख्या में कमी आई है। 2023 में सबसे कम मौतें हुईं लेकिन पहलगाम हमले के कारण नागरिकों की मौतें बढ़ी हैं। सुरक्षा बलों ने कई आतंकियों को मार गिराया है जिससे सुरक्षा परिदृश्य में बदलाव आया है।

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    निरस्तीकरण के बाद कानून व्यवस्था में बेहद सुधार। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। आतंकी हिंसा, पत्थरबाजी और सिलसिलेवार हिंसक प्रदर्शनों के लिए कुख्यात रहे जम्मू-कश्मीर में पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद से कानून व्यवस्था और सुरक्षा परिदृश्य लगातार सुधरता जा रहा है।

    हालांकि, पहलगाम जैसी आतंकी हमला भी हुआ है, लेकिन यह बीते छह वर्ष में एक अपवाद कहा जाएगा, क्योंकि अब स्थानीय लोगों के चेहरे पर पहले की तरह भय और असुरक्षा की भावना नजर नहीं आती है।

    उपलब्ध आकंड़ों के मुताबिक, बीते एक दशक के दौरान विगत वर्ष 2023 में आतंकी हिंसा में मरने वालों की संख्या सबसे कम है। इनमें 33 प्रतिशत कमी आ चुकी है। अगर पहलगाम हमले में 26 नागरिकों की मौत न होती तो मौजूदा वर्ष में आतंकी हिंसा मे मारे गए नागरिकों की संख्या अब तक सिर्फ दो तक ही सीमित रहती।

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    कुल 1230 मौतें दर्ज

    आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पांच अगस्त, 2019, जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था, तब लेकर सोमवार चार अगस्त 2025 के बीच, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से संबंधित कुल 1230 मौतें दर्ज की गईं ।

    वर्ष 2013 से 2019 तक की अवधि में हुई कुल 1845 मौतों की तुलना के आधार कहा जा सकता है कि पांच अगस्त 2019 के बाद नागरिक मौतों में 33.3 प्रतिशत की गिरावट आई है। यह गिरावट जम्मू कश्मीर के संवैधानिक पुनर्गठन के बाद सुरक्षा परिदृश्य में आए उल्लेखनीय बदलाव को दर्शाती है।

    निरस्तीकरण के बाद की अवधि में अब तक 833 आतंकवादी मारे गए हैं, 204 सुरक्षाकर्मी और 189 बलिदानी हुए हैं। इनके अलावा चार अन्य अज्ञात लोग भी मारे गए हैं।

    मारे गए 1121 आतंकवादी

    इसके विपरीत, निरस्तीकरण से पहले की छह वर्ष की अवधि 1121 आतंकवादी मारे गए, 475 सुरक्षाकर्मी और 243 नागरिक बलिदानी हुए हैं। तुलनात्मक छह वर्षों की अवधि में मारे गए आतंकियों संख्या में 25.7 प्रतिशत , बलिदानी सुरक्षा बलों की संख्या में 57 प्रतिशत की कमी, और आतंकी हिंसा में मारे जाने वाले नागरिकों की संख्या में 22.2 प्रतिशत की कमी आई है।

    वार्षिक आधार पर देखने पर यह प्रवृत्ति और भी स्पष्ट हो जाती है। वर्ष 2018 पिछले दशक का सबसे घातक वर्ष रहा, जिसमें 452 मौतें हुईं, जिनमें 271 आतंकवादी और 86 नागरिक शामिल थे। 2019 से पहले, आतंकी हिंसा से सवार्षिक मृत्यु दर अक्सर 170 से अधिक होती थी।

    मृत्यू दर में काफी गिरावट

    उदाहरण के लिए 2013 में 172 मौतें दर्ज की गईं, उसके बाद 2014 में 189, 2015 में 175, 2016 में 267 और 2017 में 357 मौतें दर्ज की गईं। इस अवधि के दौरान, विशेष रूप से 2016 और 2017 में, सुरक्षा बलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा, जिसमें क्रमशः 88 और 83 कर्मी बलिदानी हुए।

    2019 की दूसरी छमाही में एक बड़ा बदलाव देखा गया। उस वर्ष जनवरी से जुलाई तक, आतंकवाद से संबंधित 233 मौतें दर्ज की गईं। लेकिन अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद के पांच महीनों, अगस्त से दिसंबर तक, यह संख्या तेज़ी से घटकर केवल 50 रह गई, जिससे वर्ष के उत्तरार्ध में मृत्यु दर में 78.5 प्रतिशत की गिरावट देखी गई।

    पहलगाम हमले में 26 की मौत

    लेकिन अगले वर्ष 2020 में, कुल मौतों में वृद्धि देखने को मिली और यह संख्या 321 तक पहुंच गई। इस दौरान आतंकरोधी अभियान में 232 आतंकवादी मारे गए। इसके बाद 2021 के बाद से, वार्षिक मृत्यु दर लगातार 275 से कम रही।

    दशक के सबसे कम मृत्यु आंकड़े 2023 और 2024 में दर्ज किए गए। 2023 में आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं में कुल 134 लोगों की जान गई, उसके बाद 2024 में 127 मौतें हुईं, जो 2018 के शिखर से क्रमशः 62 और 65 प्रतिशत की गिरावट दर्शाती हैं।

    नागरिक मौतों में सामान्य रूप से गिरावट का रुख रहा, लेकिन उतार-चढ़ाव के साथ। वर्ष 2023 में केवल 12 नागरिक मौतें हुईं, जो एक दशक से भी अधिक समय में सबसे कम है। 2024 में यह संख्या बढ़कर 31 हो जाएगी। अगस्त 2025 तक, 28 नागरिकों की मौत की सूचना मिली है, जिनमें से 26 मौतें 2 अप्रैल को पहलगाम में हुए एक बड़े हमले में हुईं।