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बर्फ में दफन हो रही थी जिंदगी की आस, फौजी वर्दी में आए फरिश्ते

नवीन नवाज, श्रीनगर : बर्फीली रात में जिंदगी की आस दफन होती दिख रही थी, ऐसे में फरिश्ते फौज की व

By JagranEdited By: Published: Sun, 12 Jan 2020 09:21 AM (IST)Updated: Sun, 12 Jan 2020 09:21 AM (IST)
बर्फ में दफन हो रही थी जिंदगी की आस, फौजी वर्दी में आए फरिश्ते

नवीन नवाज, श्रीनगर :

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बर्फीली रात में जिंदगी की आस दफन होती दिख रही थी, ऐसे में फरिश्ते फौज की वर्दी में आए और बहनों को मौत के शिकंजे से निकालकर उनके आंचल में खुशियों की किलकारी भर दी। सेना के जवानों द्वारा समय पर मिली मदद से उत्तरी कश्मीर के सौगाम व जम्मू क्षेत्र के बनिहाल के इन परिवारों के आंगन में खुशियां झिलमिला रही हैं।

उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा के सौगाम क्षेत्र निवासी तस्लीमा के भाई कहते हैं कि अगर फौज के लोग नहीं आते तो आज हमारे घर में जश्न नहीं मातम होता। उसने बताया कि दो दिन पहले रास्ता पूरी तरह बंद था, सिर्फ बर्फ ही बर्फ नजर आ रही थी और ऐसा लग रहा था कि मौत के फरिश्ते आ रहे हैं। पर तभी वर्दी में जिंदगी के फरिश्ते पहुंच गए।

उन्होंने बताया कि सोगाम के आस-पास के कई गांवों का तहसील और ब्लॉक मुख्यालय से संपर्क कट चुका है। तस्लीमा के भाई ने बताया कि हम तस्लीमा को लेकर अस्पताल की तरफ जा रहे थे। भारी बर्फबारी से रास्ता बंद हो गया और अंधेरा भी हो गया था। लगा कि अब हम जिदा नहीं रह सकेंगे। किसी तरह निकटवर्ती सैन्य शिविर में संपर्क किया और कुछ ही देर में सेना के जवान एक डाक्टर के साथ हमारे पास आ पहुंचे। उन्होंने मेरी बहन को प्राथमिक उपचार दिया और जवानों ने स्ट्रेचर पर तस्लीमा को उठाया और करीब तीन किलोमीटर तक बर्फ में पैदल चले। फिर अपनी एंबुलेंस के जरिए उपजिला अस्पताल सोगाम पहुंचाया।

इधर, जवाहर सुरंग के पास बनिहाल जिला अस्पताल में नवजात भांजे को गोद में उठाकर घूम रहे फैयाज ने कहा कि पल-पल पास होती मौत को हमने महसूस किया है। हमारा गांव उखराल सबसे दुर्गम और पिछड़े इलाकों में एक है। वीरवार दोपहर को अचानक मेरी बहन की प्रसव पीड़ा बढ़ गई। हम उसे स्थानीय अस्पताल में ले गए। वहां एक और गर्भवती महिला का इलाज चल रहा था। डाक्टरों ने कहा कि ऑपरेशन करना पड़ेगा, इसलिए बनिहाल जाना होगा। हम क्या करते, वहां से निकल पड़े। मेरी बहन और वह दूसरी महिला, दोनों को स्वास्थ्य विभाग की एंबुलेंस में लेकर निकले।

अचानक हिमपात होने से एंबुलेंस फंस गई। दोनों की हालत बिगड़ रही थ। हमने पास के सेना के शिविर से संपर्क किया। कैंप से सेना के जवानों का एक दल और डाक्टर मौके पर पहुंचे। उन्होंने अपनी एंबलुेंस के जरिए दोनों महिलाओं को यहां बनिहाल अस्पताल पहुंचाया। सेना का डाक्टर पूरे रास्ते साथ रहा। हमारे घर में यह खुशी तो फौज की देन है। जिहादियों ने स्कूल, अस्पताल जलाए

फौज व स्थानीय लोगों के रिश्तों के बारे में पूछे जाने पर उसने कहा कि हमारा इलाका कभी जिहादियों की पनाहगाह था, अगर आज वहां जिहादी नहीं हैं, क्योंकि फौज है। जिहादियों ने जहां हमारे स्कूल और अस्पताल जलाए, वहीं फौज ने हमारे लिए स्कूल और अस्पताल बनवाए हैं। हमारे बच्चों को स्कूल पहुंचा रहे हैं। मैं ज्यादा क्या कहूं, सुबूत तो यह नवजात भी है।


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