कश्मीर की सर्दियों का मजा लेने के लिए अभी से तैयार हो जाएं, 'चिल्लई कलां' आपका इंतजार कर रहा है
कश्मीर में सर्दियों का मौसम दस्तक देने वाला है, और 'चिल्लई कलां' का इंतजार शुरू हो गया है। यह समय कश्मीर की अद्वितीय सुंदरता का आनंद लेने का है, जब बर ...और पढ़ें

चिल्लई-कलां की शुरुआत में मौसम में इस बदलाव के साथ कश्मीर के ऊंचे इलाकों में मध्यम से भारी बर्फबारी की संभावना है। फोटो: साहिल मीर
राहुल शर्मा, श्रीनगर। अगर आप को सर्दियां पसंद हैं तो कश्मीर आने का यही सही समय है। प्रकृति के अद्भुत नजारों के बीच ठंडे दिन और सर्द रातों का मजा लेने के लिए ट्रिप प्लान कर लें। बैग पैक करिए और कश्मीर चले आइए। चिल्लई कलां भी आपका स्वागत करने के लिए इंतजार कर रहा है। नए साल का जश्न कश्मीर मनाने के लिए अभी से बुकिंग शुरू कर दें। हो सकता है कि नव वर्ष के नजदीक आने तक होटलों के टैरिफ बढ़ जाएं या फिर आपको मनपसंद जगह पर होटल ही न मिले।
यूं तो कश्मीर में अभी भी तापमान जमाव बिंधु तक पहुंच गया है। हालांकि अभी डल झील का पानी पूरी तरह से जमा नहीं है परंतु पहाड़ी इलाकों में स्थित नदी, झरने, जहां तक की पेड़ों पर पड़ने वाली औस की बूंदे जमने लगी हैं। प्राकृति के ये चमत्कार पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं। कुछ लोग अभी कश्मीर का रूख इसलिए भी नहीं कर रहे हैं क्योंकि उन्हें बर्फबारी का इंतजार है।

मौसम विभाग की मानें तो कश्मीर में लंबे समय से चल रहा सूखा मौसम आने वाले दिनों में कम हो सकता है। उनका कहना है कि चिल्लई-कलां जो सर्दियों के सबसे कठोर 40 दिन का समय होता है, की शुरुआत के साथ बारिश की संभावना है।
21 से शुरू हो रहा चिल्लई कलां
चिल्लई-कलां, जो 21 दिसंबर से शुरू होकर 30 जनवरी तक चलता है, पारंपरिक रूप से इस क्षेत्र में सर्दियों के सबसे ठंडे दौर के रूप में पहचाना जाता है। इस समय के दौरान, बर्फबारी की संभावना सबसे अधिक होती है और आमतौर पर पूरी घाटी में तापमान में तेजी से गिरावट देखी जाती है।
वहीं स्थानीय मौसम विभाग ने बताया कि 21 और 22 दिसंबर के आसपास एक पश्चमी विक्षोभ के जम्मू-कश्मीर पर असर डालने की उम्मीद है। चिल्लई-कलां की शुरुआत में मौसम में इस बदलाव के साथ कश्मीर के ऊंचे इलाकों में मध्यम से भारी बर्फबारी की संभावना है। जबकि मैदानी इलाकों में हल्की से मध्यम बारिश या बर्फबारी हो सकती है।

क्या होता है चिल्लई कलां
कश्मीर घाटी में तीन महीने सर्दी बहुत ज्यादा होती है। ऐसे में इन तीन महीनों को तीन भागों में बांटा जाता है। पहला चिल्लई कलां (Chillai Kalan), दूसरा चिल्लई खुर्द (Chillai Khurd) जो 20 दिन का होता है और तीसरा चिल्लई बाच (Chillai Bache) भी 15 से 20 दिन तक चलता है। इसे चिल्लस के नाम से भी पुकारा जाता है। इनमें सबसे चुनौतीपूर्ण समय चिल्लई कलां का होता है। इस दौरान कश्मीर में हर तरह बर्फ ही बर्फ दिखाई देती है।

कश्मीरी मनाते हैं चिल्लई कलां का जश्न
पहले चालीस दिन यानी चिल्लई कलां का दौर ही चुनौतीपूर्ण होता है। उस दौरान डल झील ही नहीं बल्कि पानी के तमाम स्रोत जहां तक की घरों में नल का पानी भी जम जाता है। पर्यटक जहां कश्मीर में आकर इस सर्दी का मजा लेते हैं, वहीं ये कड़ाके की सर्दी कश्मीरियों के जीवन काे प्रभावित करती है।
यही वजह समय है जब हम प्रत्येक कश्मीरी चाहे वह युवा हो या वृद्ध पारंपरिक पहनावे फेरन और गर्मी पाने के लिए कांगड़ी में देखते हैं। इन तमाम परेशानियों के बावजूद कश्मीरी भी चिल्लई कलां का जश्न मनाते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम, लोक नृत्य, लोक गायन आदि के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

विशेष मार्केट सजाई जाती है जिसमें पश्मीना शाल, लकड़ी की नक्काशी से तैयार सजावटी सामान व हाथ से बुने हुए कालीन बेचे जाते हैं। स्थानीय ही नहीं पर्यटक भी इसमें खूब खरीददारी करते हैं।

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