औजार उठाए, कील गर्म की और मारा 'उम्मीद’का हथौड़ा, बारामुला की 12 युवतियां पुरुष प्रधान पेशा अपना बनी आत्मनिर्भर
मेहनत और भाग्य ने साथ दिया और आज उत्तरी कश्मीर के बारामुला जिले के सिंघपोरा ब्लाक की 12 युवतियों का समूह पुरुषों का पेशा समझे जाने वाले तांबे के बर्तन ...और पढ़ें

श्रीनगर, रजिया नूर : काम बेहद मुश्किल था और टेढ़ा भी। लोगों ने ताने भी मारे...पर हौसला इतना कि पीछे हटना गंवारा ना था। औजार उठाए, कील गर्म की और मार दिया 'उम्मीद' का हथौड़ा। मेहनत और भाग्य ने साथ दिया और आज उत्तरी कश्मीर के बारामुला जिले के सिंघपोरा ब्लाक की 12 लड़कियों का समूह पुरुषों का पेशा समझे जाने वाले तांबे के बर्तन पर खूबसूरत कंदकारी (डिजाइन बनाना) कर धाक जमा रही हैं। नाजुक हाथों से फौलादी काम कर ये लड़कियां खुद आत्मनिर्भर बनने के साथ कश्मीर की अन्य महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हैं।

दैनिक जागरण के साथ विशेष बातचीत में 12 लड़कियों के समूह का नेतृत्व करने वाली असमत ने कारोबार का अपना सफर साझा किया। असमत ने कहा, हम चार बहन भाई (तीन बहनें व एक भाई) हैं। गरीबी ने हमारी पढ़ाई बीच में ही छुड़वा दी। हालांकि हमें पढऩे का काफी शौक था, लेकिन पिता की मजदूरी की कमाई से हम मुश्किल से दो वक्त का खाना खा पाते थे। मैं घर की बड़ी थी। लिहाजा घर को संभालने की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ पड़ी। मैं उन दिनों 12वीं कक्षा में पढ़ती थी। मैंने पढ़ाई छोड़ कपड़े सीने शुरू कर दिए, लेकिन उससे भी घर की मुश्किलें दूर नहीं हुईं।
'उम्मीद’ योजना से मिला लोन : असमत ने कहा कि वर्ष 2014 में हमे सरकार की 'उम्मीद' योजना के बारे में पता चला। हम तीनों बहनों ने इस योजना के साथ जुडऩे का फैसला किया। संबंधित अधिकारियों ने हमें सलाह दी कि हमें वह काम चुनना चाहिए, जो हमें आता हो। मुझे सिलाई का काम आता था, लेकिन मुझे लगा कि इस काम से हमारे घर का गुजारा मुमकिन नहीं होगा। तभी मुझे हमारे मौसा का ख्याल आया। वह तांबे के बर्तनों पर कंदकारी करते थे।
मैंने अपने मौसा से मदद मांगी। उन्होंने मेरी छोटी बहन जमरूद को अपने घर पर काम की तमाम बारीकियां सिखाईं। वापसी आने पर उसने मुझे और हमारी एक और छोटी बहन रोजी को काम सिखा दिया। काम सीखने के बाद हमें उम्मीद योजना से 15,000 रुपये का लोन मिला, जिससे हमने तांबे के कुछ बर्तन खरीद उन पर कंदकारी करनी शुरू कर दी और यूं अपना यूनिट शुरू कर दिया।

माह में 18 से 20 हजार रुपये कमा लेती हैं सभी युवतियां : असमत ने कहा कि आज इलाके में उनकी खुद की दुकान है। असमत ने कहा, हम तीन बहनों के अलावा हमारे ग्रुप में मोहल्ले की नौ और लड़कियां भी जुड़ गईं। पहले हमें आसानी से आर्डर नहीं मिलते थे। लोग सोचते थे कि ये लड़कियां हैं, फौदाली काम नहीं कर पाएंगी। धीरे-धीरे लोग हमारे काम से प्रभावित हो गए और हमें लगातार आर्डर मिलने लगे। आज हमारे ग्रुप की सभी लड़कियां महीने में 18 से 20 हजार रुपये कमा लेती हैं। इस यूनिट से न केवल असमत बल्कि अन्य लड़कियों के परिवार का वित्तीय संकट भी दूर हो गया है। अब तीनों बहनों ने फिर से पढ़ाई शुरू कर दी है और अपने भाई की उच्च शिक्षा पर आने वाला खर्चा भी उठाती हैं। असमत की बहन जमरूद ने कहा, हमारा भाई आपरेशन थियेटर का कोर्स कर रहा है।
लोग उड़ाते थे खिल्ली, अब करते हैं तारीफ : असमत ने कहा कि कश्मीर में तांबे के बर्तन पर कंदकारी पुरुष ही करते हैं। इसलिए जब हमने काम शुरू किया तो सबने कहा कि हम मर्दों वाले काम में टांग अड़ा रही हैं, लेकिन अब वही लोग हमारी तारी करते नहीं थकते। अब हमें इतने आर्डर मिलते हैं कि अक्सर ओवर टाइम करना पड़ता है।
सिंघपोरा में छह हजार महिलाएं उम्मीद योजना से जुड़ीं : नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन के तहत उम्मीद योजना की ब्लाक प्रोग्राम मैनेजर अंजुम ने कहा, आपको हैरानी होगी कि हमारे सिंंघपोरा ब्लाक में 800 स्वंयसेवी ग्रुप हैं, जिनमें से महिलाओं की संख्या 6000 से अधिक हैं। सिंघपोरा न केवल बारामुला बल्कि पूरे कश्मीर में एकमात्र ऐेसा ब्लाक है जहां योजना से जुड़ी लाभार्थी युवतियां तांबे पर कंदकारी कर अपना रोजगार कमाती हैं। इनसे अन्य महिलाएं भी प्रेरित होकर इस पेशे में जुडऩा चाहती हैं।

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