ये कैसा विकास? 21 साल बाद भी इंतजार राजौरी तरन-फगोली सड़क बनने के इंतजार मे लोग
वर्ष 2004 में स्वीकृत तरन-फगोली सड़क 21 साल बाद भी अधूरी है। इस सड़क का उद्देश्य दूरस्थ क्षेत्रों को जोड़ना था लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह परियोजना अटकी हुई है। जिससे ग्रामीणों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीणों में आक्रोश है और उन्होंने विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है।

जागरण संवाददाता, राजौरी। मुफ्ती मुहम्मद सईद की सरकार के दौरान 2004 में स्वीकृत बहु प्रतीक्षित तरन से फगोली सड़क 2025 में भी अधूरी है। दूरस्थ और अविकसित ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ने के लिए बनाई गई इस सड़क का उद्देश्य अभावों को कम करना, व्यापार मार्गों को मजबूत करना और स्थानीय आबादी को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना था।
हालांकि, 21 साल बाद भी, यह परियोजना अभी भी पूरी होने का इंतज़ार कर रही है, जो न केवल विकास में देरी का प्रतीक है, बल्कि राज्य संस्थानों, राजनीतिक प्रतिनिधियों और प्रशासनिक व्यवस्था की घोर उदासीनता, अक्षमता और विफलता का भी प्रतीक है।
राजौरी और रियासी जिलों के बीच सड़क का दस किलोमीटर का हिस्सा एक बड़ा विरोधाभास दर्शाता है। राजौरी के अधिकार क्षेत्र में आने वाले शुरुआती दो किलोमीटर पूरे हो गए थे, लेकिन जैसे ही सड़क रियासी जिले में प्रवेश करती है, प्रगति पूरी तरह से रुक जाती है।
परियोजना को फिर से शुरू करने के लिए न तो कोई धनराशि आवंटित की गई है न ही कोई अधिकारी नियुक्त किया गया है और न ही कोई कदम उठाया गया है।
यह महत्वपूर्ण बहुउद्देशीय विकास योजना बीस से अधिक पिछड़े गांवों को सीधे तौर पर प्रभावित करती है। यहां के निवासी आज भी मरीजों को कंधों पर उठाकर अस्पताल ले जाते हैं, गर्भवती महिलाएं समय पर इलाज न मिलने के कारण अपनी जान गंवा देती हैं।
बच्चे स्कूल पहुंचने के लिए घंटों पैदल चलते हैं। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब देश का बाकी हिस्सा तेज़ी से आधुनिकीकरण की ओर बढ़ रहा है।
राज्य सरकार की निष्क्रियता ने जहां इस परियोजना में देरी की है, वहीं निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधूरे वादों और राजनीतिक अवसरवाद ने इस दर्द को और बढ़ा दिया है। स्थानीय निवासियों के अनुसार, चुनावी फायदे के लिए इस सड़क परियोजना की बार-बार बलि दी गई है।
उनका कहना है कि चुनावी मौसम में राजनेता खोखले वादों के पंखों पर सवार प्रवासी पक्षियों की तरह दिखाई देते हैं। वोट मिलते ही वे हवा में ऐसे गायब हो जाते हैं मानो उन्होंने इन गांवों में कभी कदम ही नहीं रखा हो।
राजनीतिक वर्ग के लिए, यह गांव वोट बैंक के आंकड़े मात्र हैं, सत्ता मिलते ही भुला दिए जाते हैं। पिछले 21 सालों में एक भी मंत्री, विधायक या राजनीतिक हस्ती ने इस इलाके का दौरा नहीं किया है या समुदाय की लंबे समय से चली आ रही शिकायतों को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
निवासियों का कहना है कि झूठे वादों और उदासीनता ने व्यवस्था पर से उनका भरोसा पूरी तरह खत्म कर दिया है। लोग अब भारी मानसिक, शारीरिक और सामाजिक तनाव में हैं और उनका धैर्य जवाब दे चुका है। फगोली गांव की एक महिला ने सवाल किया, "क्या राजनीति सिर्फ चमकदार शहरी सड़कों के निर्माण तक ही सीमित है? क्या हमारे वोट की कीमत सिर्फ चुनाव तक ही है?
दशकों से लोगों ने धैर्य बनाए रखा, हर सरकार पर भरोसा किया और हर राजनीतिक प्रतिनिधि पर विश्वास किया - लेकिन उन्हें सिर्फ़ झूठ, धोखे और चुनावी वादों के साथ ही सामना करना पड़ा। पूर्व सरपंच मुहम्मद फारूक इंकलाबी ने साफ तौर पर कहा कि अगर अधिकारी जल्द ही परियोजना पर काम शुरू नहीं करते हैं, तो जनता एक बड़े विरोध प्रदर्शन का आयोजन करेगी।
न केवल बुद्धल-राजौरी सड़क को अवरुद्ध किया जाएगा, बल्कि पूरी व्यवस्था को चुनौती दी जाएगी। उन्होंने कहा कि यह विरोध सिर्फ एक सड़क के लिए नहीं होगा, यह उस राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र के खिलाफ एक आंदोलन होगा जिसने दशकों से इन समुदायों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है और उनके बुनियादी अधिकारों की अनदेखी की है।

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