जिंदगी में कर्म करना ही पड़ेगा: सुभाष शास्त्री
संवाद सहयोगी बसोहली संत सुभाष शास्त्री ने पलाही में प्रवचन करते हुए कहा कि आप कृम शब्द की व्याख्
संवाद सहयोगी, बसोहली: संत सुभाष शास्त्री ने पलाही में प्रवचन करते हुए कहा कि आप कृम शब्द की व्याख्या किस्मत से करते हो, वास्तव में कर्म का अर्थ ही कर्मशील रहना है। मानव को परिश्रम करना ही पड़ता है। आप प्रति दिन देखते हैं कि संसार को गतिमान रखते हुए प्रभू ने सूर्य चंद्रमा, नदिया, वायु इत्यादि का क्रम रखा हुआ है।
उन्होंने कहा कि हर कोई अपनी अपनी गति से चलायमान है और परिणामत संसार आदीकाल से चला जा रहा है। इनमें से किसी ने भी अपने क्रम को तोड़ने का प्रयास नहीं किया और इसलिए संसार की हर गतिविधि चल रही है। शास्त्री जी ने कहा कि हमें परिश्रम तो करना ही है, यदि हमें संसार में जीवित रहना है तो देखो महाभारत के युद्ध में नारायण भगवान कृष्ण जी खुद मौजूद थे। फिर भी अर्जुन को स्वयं के अधिकारों के लिए युद्ध करना पड़ा। यानी मनोवाशित पाने के लिये कर्म करना ही पड़ा। यदि कृष्ण चाहते तो अर्जुन को चंद पलों में विजय दिला सकते थे, लेकिन अर्जुन 18 दिनों तक भयंकर युद्ध लड़कर विजय हासिल कर पाया।
उन्होंने समझाया कि प्रभु सदैव हमारे साथ होते हैं, उनकी कृपा सदैव हमारे ऊपर रहती है, किंतु जीवन में बिना परिश्रम के अर्थात बिना कर्म के नहीं मिलता। व्यर्थ की परिचर्चा को छोड़कर व्यर्थ के तर्क वतर्क को छोड़ कर श्रेष्ठ कर्माें में रत होइये। श्रेष्ठ कर्म करने वाले बने, उद्यमशील बनें, कर्मशील बनें। एक बात जान लें कि किस्मत कर्मो का फल होती है। परंतु किस्मत को बहाना बनाकर आप कर्मो को अर्थात परिश्रम से मुख नहीं मोड़ सकते। भगवान का संदेश है कि अगर खेतों में हल मुझे ही चलाना होता तो इंसान को हाथ वायु टागें किसलिए दी, इसलिए खूब श्रेष्ठ कर्म करो।