कैकेयी की जिद के आगे झुके राजा दशरथ, राम को वनवास
संवाद सहयोगी बसोहली गांव हट्टं में चल रही रामलीला में देर रात भरत को राजगद्दी व राम को वन ...और पढ़ें

संवाद सहयोगी, बसोहली: गांव हट्टं में चल रही रामलीला में देर रात भरत को राजगद्दी व राम को वनवास का मंचन हुआ। इसे देखने के लिए आसपास के गांवों खजूरा, द्रमण, दाउन, सेबरा, डेडरा, माश्का, बदाड़ी आदि से ग्रामीण पहुंचे थे।
राम के युवा होने पर राजा दशरथ ने अपने राजदरबार में मन की बात सुनाई, जिसमें उन्होंने राम के राज तिलक की तैयारी को लेकर चर्चा की। इस पर सभी मंत्रियों व दरबारियों ने हां में हां मिलाई और सब राम के राजा बनने से खुश नजर आ रहे थे। तीनों माताएं कैकेयी, कौशल्या, सुमित्रा भी निर्णय से खुश थी, लेकिन मंथरा कैकेयी के पास आई और कान भरना शुरू कर दिए कि राजगद्दी पर केवल हक भरत का है। अगर राजा दशरथ नहीं मानते हैं तो उन से दो वर मांग लो जो उन्होंने एक समय में आपको दिए थे। इस पर कैकेयी खुश हो गई और अंदर ही अंदर राजमाता के ख्वाब देखने लगी। वह कोप भवन के अंदर एक कमरे में चली गई। राजा दशरथ उसे खुशखबरी सुनाने आए तो उसने अपनी बात कह दी कि वह चाहती है कि राम को वनवास मिले और भरत को राजगद्दी। इस पर राजा दशरथ ने समझाने की भरपूर कोशिश की कि राम, लक्षमण भरत, शत्रुघ्न में कहीं भी कोई समझदार है तो राम ही हैं, मगर वह ना मानी और अपनी जिद के आगे अड़ी रही। विवश होकर राजा दशरथ को अपना फैसला बदलना पड़ा और राम को वनवास व भरत को राजगद्दी का फैसला सुनाना पड़ा।
उधर, राम ने भी उक्त फैसले को स्वीकार कर लिया और वनवास जाने का तैयारी करने लगे, वहीं लक्ष्मण को भनक लगी तो वह भी साथ हो गए। सीता ने भी वन में अपने प्रियतम के साथ जाने की जिद की और वह भी तैयारी करने लगी और वन तक छोड़ने के लिए प्रजा उनके साथ हो ली। वहीं, पुत्र वियोग में राजा दशरथ की हालत खराब होने लगी और उनकी मौत हो गई। इसके कारण माहौल शोकाकुल हो गया।

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