बसोहली महल का होगा सौंदर्यीकरण, 650 लाख रुपये हुए मंजूर, 500 वर्ष से भी पुराना है विश्वस्थली किला
बसोहली में 500 वर्ष पुराने विश्वस्थली किले के सौंदर्यीकरण का कार्य जल्द शुरू होगा। विधायक ठाकुर दर्शन सिंह के प्रयासों से 650 लाख रुपये की लागत से किले का जीर्णोद्धार किया जाएगा। कभी अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध इस किले में दाल और चूने के मिश्रण का उपयोग किया गया था।

जीर्णोद्धार का उद्देश्य पर्यटन को बढ़ावा देना और ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करना है।
संवाद सहयोगी, जागरण बसोहली। कस्बे के बीचों-चीच बने पाल वंशजों की धरोहर के सौंदर्यीकरण की नई आशा एक बार फिर से जगी है। अभिलेखागार पुरातत्व एवं संग्रहालय निदेशालय जम्मू कश्मीर से बार बार बसोहली विधायक ठाकुर दर्शन सिंह के पत्राचार का नतीजा यह रहा है कि अब इस पर जल्द काम शुरू होगा और महलों को बनाया जाएगा।
पूर्व में बने इन महलों की खासियत यह थी कि सात मंजिला होने के बावजूद इसकी नींव नहीं है। आटा, दल और चूने के मिश्रण से इसको दिवारी को उस समय के कारीगरों ने ईंट पत्थर से बनाया था और फूल पत्तों से इसपर रंग रोगन किया गया, जिसके निशान आज भी दीवारों पर हैं। लेकिन देखरेख के अभाव में आज खंडहर में तबदील हो गया है।
दरअसल, बसोहली पर्यटन का हब है। इस ऐतिहासिक किले का जिर्णोद्वार कर इसे पहले की तरह बनाया जाने को तैयारी है, ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक वहां आएं और इस ऐतिहासिक धरोहर के बारे में जानें। अब 500 वर्ष पुराने इस विश्ववस्थली किला को फिर से नये सिरे से बनाने को लेकर प्रक्रिया शुरु होने जा रही है। इसके लिए पीडब्ल्यूडी ने टेंडर जारी किया है. जिसकी अनुमानित लागत 650 लाख रुपये के करीब आंकी गई है।
अभिलेखागार पुरातत्व एवं संग्रहालय निदेशालय जम्मू कश्मीर द्वारा जिला विकास उपायुक्त को एक पत्र जारी किया गया ह जिस के अनुसार जल्द ही इस विश्वस्थली किला के सोंदर्यकरण की प्रक्रिया को अंजाम दिया जा सकता है।
बसोहली के बुजुर्ग खुश
लगभग 500 से भी ज्यादा वर्ष पुराने बसोहली के इतिहास की संजोय इस किले के विस्तारीकरण एवं अन्य कामों को लगाये जाने को लेकर बसोहली के स्तंभकार शिव कुमार पाधा, डोगरी लेखक शिव कुमार दोवलिया ने कहा कि बसोहली जो कभी विश्व प्रसिद्ध रही है. यहां के माहल प्राचीन कारीगरी का एक नमूना रहे, जिनकी कोई नींव ना बनाए जाने के बावजूद इन्हें सात मंजिला बनाया गया।
इस पर कई आक्रमणकारियों की नजर रही, मगर पाल बंश के राजाओं ने हर बार विफल बनाया। पाल वंश द्वरा बनाए गये इस किले में न तो सीमेंट का प्रयोग किया गया और ना ही सरिये का। इसमें विभिन्न प्रकार की दालों चूना का मिश्रण बनाकर ईंटों में लगाया गया।
सौंदर्यीकरण एवं संरक्षण का कम शुरू होगा
प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया गया, जिनमें फूल, पतियों से रंग बनाए गए और महल को सजाया गया। यह विरासत देखरेख के अभाव में आज भी कई जगहों पर ठीक लगती है। इस ऐतिहासिक विरासत को संजोने को लेकर कई बार प्रयास स्थानीय निवासियों द्वारा राज्य के मंत्रियों तक आवाज पहुंचाई, मगर कोई काम नहीं हुआ।
इस बार बसोहली विधायक ठाकुर दर्शन सिंह ने प्रयास किये और उन का प्रयास रंग लाया अब 500 से भी ज्यादा वर्ष पुरानी धरोहर को नया आयाम मिलेगा और बसोहली में लोग अब रणजीत सागर झील के नजारों, नाव की सवारी, पशमीना शाल एवं बसोहली पेंटिंग को देखने का लुत्फ उठाने के अलावा इस धरोहर को भी देखने आएंगे। अब विश्वस्थती किला के विकास, सौंदर्यीकरण एवं संरक्षण का कम शुरू होगा तो यह भी पर्यटकों के लिये नई खोज होगी।
500 वर्ष पुराने महलों में था एयर कंडिशनड सिस्टम
बसोहली के बुजुर्ग बताते हैं कि इस महल की शोभा से कई आसपास के राजा आकर्षित हुए और इसे हथियाने के लिए कई बार बसोहली के राजाओं पर आक्रमण भी किए। मगर हर जंग में आक्रमणकारी हार गए और किला बसोहली के राजाओं का ही रहा। किले के बीचोंबीच आज भी पुराने जमाने की वस्तुएं देखी जा सकती हैं।
किले में एक कमरा ऐसा है, जिसमें गर्मियों में भी ठंड का अहसास होता है। बसोहली के पाल वंशज के राजाओं के कारीगरों की तकनीक आज भी महल में देखी जा सकती है यहां यह एयर कंडिशनड कमरे इसी महल में ही मिले हैं। उस समय की इस तकनीक को देखने के लिये जमीन दोज हुए कमरों तक पर्यटकों को जाते आज भी देखा जा सकता है।

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