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    कोमल है महादेवी वर्मा की काव्य भाषा का स्वरूप

    By Edited By:
    Updated: Fri, 20 Apr 2012 09:53 PM (IST)

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    कठुआ,जागरण संवाद केंद्र

    हिन्दी साहित्य में महादेवी वर्मा के योगदान विषय पर शुक्रवार कॉस्मिक कॉलेज आफ एजूकेशन में एक सेमिनार का आयोजन किया गया। प्रधानाचार्या सुनीता शुक्ला की अध्यक्षता में आयोजित सेमिनार में कॉलेज के चेयरमैन स्वामी परमानंद सरस्वती मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे। सेमिनार में कॉलेज के हिन्दी विभाग के प्रवक्ता चंद्रदीप शर्मा ने कहा कि हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार स्तंभों में एक महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को हुआ और उन्हें आधुनिक भारत की मीरा कहा जाता है। वहीं कुमारी मोनिका, सर्वेश, सुनीता ने कहा कि महादेवी वर्मा ने संस्कृति, राष्ट्रभाषा, साहित्य, नारी जीवन और राष्ट्रीयता को अपनी लेखनी के माध्यम से जीवंत किया व रश्मि, नीहार, नीरजा जैसे काव्य संग्रह और गद्य का सृजन किया। उन्हें यामा के लिए ज्ञान दीप पुरस्कार और पद्म-विभूषण से सम्मानित किया गया। इस मौके पर कॉलेज की प्रधानाचार्या ने कहा कि महादेवी वर्मा की काव्य भाषा का स्वरूप बड़ा ही कोमल है। आज भी सात दशक बीत जाने के बावजूद आधुनिक हिन्दी साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण काव्य प्रकृति छायावाद की प्रसिद्धि जैसी की तैसी ही है। कार्यक्रम में मंच संचालन राखी भारद्वाज ने किया।

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