असम राइफल्स की महिला सैनिक भारत की बेटियों को अपने ख्वाबों को पूरा करने का दे रही हौसला
असम राइफल्स की महिला सैनिक हर जगह पुरुष सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी काबिलियत साबित कर रही हैं। कश्मीर के उन हिस्सों में भी अपना फर्ज निभा रही हैं जहां कई बार महिलाओं के लिए कट्टरपंथी तत्वों के तालिबानी फरमान भी जारी होते रहते हैं।

श्रीनगर, नवीन नवाज। कश्मीर में फौजी वर्दी में सजी असम राइफल्स की सैनिक जब अपने शिविर से बाहर निकलती हैं और किसी तलाशी अभियान के दौरान चीते की फुर्ती के साथ किसी संदिग्ध आतंकी ठिकाने में दाखिल होती हैं तो सब हैरान रह जाते हैं कि कितनी जांबाज हैं ये। अगर ये सड़क पर भी नाका लगाती हैं तो लोग इनकी फुर्ती को कौतूहल से देखते हैं और उनके मन में आता है कि फौजी लड़कियों की शान ही कुछ और है। असम राइफल्स में बिहार, उत्तर प्रदेश, मिजोरम, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, नगालैंड की ही नहीं, दक्षिण भारत से केरल की लड़कियां भी शामिल हैं।
गांव की लड़कियों की प्रेरणा : आरा, बिहार की रहने वाली ज्योत्सना अपने गांव और आसपास की लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हैं। ज्योत्सना जब भी अपने घर जाती हैं तो बहुत सी लड़कियां उनसे पूछने आती हैं कि वे फौज में कैसे भर्ती हो सकती हैं? उनकी कई सहेलियां कहती हैं कि काश, उन्होंने भी फार्म भर दिया होता। आरा जैसी छोटी जगह से आईं ज्योत्सना आज सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण कहे जाने वाले श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर कंगन के पास तैनात हैं। वह कहती हैं, मुझे बचपन से ही फौजी बनने का शौक था। मेरे पिता पेशे से ठेकेदार हैं, उन्होंने मेरे सपने को पूरे करने में मेरा पूरा साथ दिया। एक बार मुझे लगा था कि फौज में जाने के मेरे फैसले का शायद मेरे दादा जी विरोध करेंगे, लेकिन जब मैंने उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि इसमें पूछने वाली बात ही क्या है। करीब चार साल पहले मैं असम राइफल्स का हिस्सा बनी। इस समय यहां हूं। इससे पहले मिजोरम और असम में भी ड्यूटी दे चुकी हूं।
महिलाओं को बनाते हैं सहज : असम राइफल्स की ये हिम्मती लड़कियां आतंकरोधी अभियानों में हिस्सा लेते हुए इस बात को सुनिश्चित करती हैं कि महिलाओं और बच्चों को किसी प्रकार का नुकसान न पहुंचे। राजमार्ग पर नाका ड्यूटी पर तैनात ज्योत्सना कश्मीर के अपने अनुभवों का जिक्र करते हुए कहती हैं, ड्यूटी हर जगह लगभग एक जैसी ही होती है। यहां लोग बातचीत में बहुत अच्छे हैं। यहां की लड़कियां भी कहती हैं कि उन्हेंं भी फौजी बनना है। एक दिन हमने नाके पर जब कुछ लोगों को रोका तो उनमें शामिल एक बुजुर्ग ने हमसे काफी लंबी बातचीत की। जब वह जाने लगे तो बोले कि मैं भी अपनी पोती को फौज में देखना चाहूंगा। आतंकरोधी अभियान में हमारी मुख्य जिम्मेदारी महिलाओं को पूरी तरह से सहज बनाना होता है। कई बार हम किसी घर में तलाशी लेने के दौरान महिलाओं को समझाते हैं कि वे कोई बात छिपाएं नहीं, बल्कि सब कुछ बताएं।
विरासत में मिली है वर्दी : केरल की रहने वाली अथिरा के. पिल्लई अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। उनके पिता भी फौज में थे और असम राइफल्स का ही हिस्सा थे। जब वह सिर्फ 12 साल की थीं, उनके पिता केशव पिल्लई का देहांत हो गया था। अथिरा कहती हैं, मुझे पापा और उनकी वर्दी से बहुत प्यार था। यही प्यार मुझे यहां ले आया। करीब चार साल पहले असम राइफल्स का हिस्सा बनी थी। शिलांग में भर्ती हुई थी और उसके बाद मैंने नगालैंड और मणिपुर में ड्यूटी की। वहां भी हम प्रमुख अभियानों का हिस्सा होते थे। करीब चार माह पहले ही यहां आई हूं और यहां मौसम, लोग सब कुछ बहुत अच्छा है। जब हम यहां किसी जगह अभियान पर निकलते हैं तो महिलाएं, विशेषकर लड़कियां हमें बड़े गर्व से देखती हैं। यहां मुझे 10वीं में पढ़ने वाली शगुफ्ता नामक एक लड़की ने बताया कि वह भी असम राइफल्स का हिस्सा बनना चाहती है।
सपने और विश्वास है मूलमंत्र : अपने सपनों को मरने मत देना। उन्हेंं उड़ान देनी है और अपने आप पर हमेशा विश्वास बनाए रखना है। सफलता का यही मूलमंत्र बताती हैं जलगांव, महाराष्ट्र की रूपाली धानगर। उन्हें कश्मीर में ड्यूटी बहुत मुश्किल नहीं लगती है। वह कहती हैं, ड्यूटी में कहीं कोई फर्क नहीं होता है, जो भी ड्यूटी हमें दी जाती है उसे हम जिम्मेदारी से निभाते हैं। जब हम नाके पर तैनात होते हैं तो अक्सर स्थानीय लड़कियां आकर हमसे बात करती हैं। वे भी हमारी तरह फौजी बनना चाहती हैं। ऐसी भी लड़कियां मिलती हैं, जो इंजीनियर बनना चाहती हैं या पायलट बनना चाहती हैं। हम उन्हेंं अपने सपने पूरे करने के लिए प्रेरित करते हैं। यह पूछने पर कि फौज में शामिल होने पर क्या घर में किसी ने विरोध किया तो हंसते हुए रूपाली कहती हैं कि विरोध तो किसी ने नहीं किया। हां, जब मैंने भर्ती के लिए फार्म भरा था तो मेरे मन में यही सवाल उठा था कि मैं टेस्ट में सफल हो पाऊंगी या नहीं। मुझे देखकर और प्रेरित होकर गांव की कई लड़कियों ने असम राइफल्स, सीआरपीएफ और बीएसएफ के लिए फार्म भरे और वे चुन भी ली गईं।
तस्करी रोकने में मददगार : जब फौजी वर्दी में तैनात ये लड़कियां स्थानीय महिलाओं से बातचीत करती हैं तो फौज को स्थानीय आम लोगों के साथ संवाद व समन्वय बनाने में भी पूरी मदद मिलती है। इसके अलावा, इन्हेंं गर्व से अपना काम करते देख स्थानीय महिलाओं में राष्ट्रभक्ति की भावना का संचार होता है और वे खुद को मानसिक रूप से मजबूत महसूस करती हैं। असम राइफल्स के एक अधिकारी ने बातचीत में कहा कि ड्यूटी के मामले में यहां पुरुष और महिला का कोई भेद नहीं है। यहां महिलाएं भी वे सभी प्रकार की ड्यूटी देती हैं, जो पुरुष सिपाही और अधिकारी देते हैं। चाहे किसी जगह गश्त हो या फिर तलाशी अभियान, नाका हो या संतरी ड्यूटी। जम्मू-कश्मीर में असम राइफल्स का सबसे ज्यादा फायदा आतंकरोधी अभियानों में या फिर हथियारों व नशीले पदार्थों की तस्करी रोकने के लिए लगाए गए नाके के दौरान होता है। इस दौरान महिलाओं की तलाशी लेने या उनसे बातचीत करने में इनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण हो जाती है।
रणक्षेत्र से राजपथ तक : पूर्वोत्तर राज्यों से लेकर सुदूर दक्षिण तक, पूरे देश से वीरांगनाएं शामिल हैं असम राइफल्स में। भारत के 70वें गणतंत्र दिवस पर असम राइफल्स ने राजपथ पर परेड के लिए अपना एक पूर्णरूपेण महिला सैन्य दस्ता भेजा था, जिसकी कमान थी मेजर खुशबू कंवर के हाथों में।
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