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    सेना की बदनामी का षड्यंत्र रचने वाले दो डॉक्टर बर्खास्त, 2009 में जवानों पर लगाया था दुष्कर्म कर हत्या का आरोप

    By Jagran NewsEdited By: Nidhi Vinodiya
    Updated: Fri, 23 Jun 2023 12:49 AM (IST)

    Shopian 2009 Misdeed Case JK पाकिस्तान के इशारे पर कश्मीर में सेना को बदनाम करने का षड्यंत्र रचने के मामले में जम्मू-कश्मीर सरकार ने गुरुवार को डा. बिलाल अहमद दलाल और डा. निगहत शाहीन चिलू को सेवामुक्त कर दिया है। दोनों ने वर्ष 2009 में शोपियां में नाले में दुर्घटनावश डूबी दो महिलाओं की गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार कर दुष्कर्म के आरोपों को सही ठहराने का षड्यंत्र रचा था।

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    पोस्टमार्टम रिपोर्ट में की थी छेड़छाड़, अब दो डॉक्टरों हुए बर्खास्त; शोपियां में चला था हिंसक प्रदर्शन का दौर

    श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। पाकिस्तान के इशारे पर कश्मीर में सेना को बदनाम करने का षड्यंत्र रचने के मामले में जम्मू-कश्मीर सरकार ने गुरुवार को डा. बिलाल अहमद दलाल और डा. निगहत शाहीन चिलू को सेवामुक्त कर दिया है। दोनों ने वर्ष 2009 में शोपियां में नाले में दुर्घटनावश डूबी दो महिलाओं की गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार कर दुष्कर्म के आरोपों को सही ठहराने का षड्यंत्र रचा था।

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    इस मामले को सुरक्षाबलों से जोड़कर कश्मीर लगभग सात माह तक सुलगता रहा था। इसमें छह हजार करोड़ का नुकसान हुआ था। अलगाववादियों ने सुरक्षाबलों पर दुष्कर्म के बाद हत्या का आरोप लगाया था। इसके चलते अलगाववादी संगठनों ने 42 दिन कश्मीर बंद रखा था। बाद में सीबीआई जांच में पूरी साजिश से पर्दा हट गया।

    डॉक्टरों को सीबीआई की चार्जशीट में बनाया गया आरोपित

    दोनों डॉक्टरों को सीबीआई की चार्जशीट में भी आरोपित बनाया गया था। शोपियां निवासी भाभी-ननद आसिया और नीलोफर 29 मई, 2009 की शाम को नाला पार करते डूब गई थीं। उनके स्वजन ने उन्हें तलाश किया, लेकिन वे नहीं मिलीं। अगली सुबह दोनों के शव नाले में मिले। कुछ देर में किसी ने खबर फैला दी कि दोनों की सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या हुई है। इसके बाद पूरे कश्मीर में हिंसा शुरू हो गई।

    अब पता चला, डूबने से हुई थी मौत

    पुलिस के तत्कालीन महानिदेशक डाॅ. अशोक भान ने इसे डूबने से मौत बताया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी पहले यही कहा था, लेकिन मामले को तूल पकड़ता देख उन्होंने डा. भान को हटा दिया और एसआइटी गठित की।

    शोपियां के तत्कालीन एसपी जावेद इकबाल समेत चार पुलिस अधिकारियों व कर्मियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर साक्ष्य मिटाने का आरोप लगाते हुए जांच शुरू कर दी गई। अलगाववादी संगठन लोगों को भड़काने में लगे रहे।

    डाक्टरों ने रचा षड्यंत्र 

    शवों का पोस्टमार्टम डा. बिलाल के नेतृत्व में डा. नाजिया व उनके सहयोगियों ने किया। उन्होंने गलत तरीके से आसिया के सिर के अगले हिस्से पर कटे घाव का उल्लेख किया। आसिया के मामले में मौत का कारण सदमा और कई चोटों से रक्तस्राव बताया गया। टीम ने यह साबित करने के लिए भ्रामक तथ्य गढ़े कि डूबने से मौत नहीं हो सकती है।

    रिपोर्ट में दुष्कर्म और हत्या का दावा किया

    उन्होंने फेफड़ों की जांच का फर्जी तथ्य भी जोड़ा। जांच में पता चला कि उनके द्वारा तैयार पोस्टमार्टम रिपोर्ट के चार सेट हैं और सभी परस्पर विरोधी हैं। पोस्टमार्टम के बाद प्रशासन ने डा. निगहत शाहीन के नेतृत्व में डॉक्टरों का नया बोर्ड बनाया। बोर्ड ने शवों का नए सिरे से पोस्टमार्टम किया।

    रिपोर्ट में दोनों के साथ दुष्कर्म और उसके बाद उनकी हत्या का दावा किया गया। सरकार के जांच आयोग के समक्ष शपथ पत्र देकर कई झूठे दावे किए। आसिया के जननांगों की स्थिति को लेकर गलत बयान दिया था।

    गर्भवती महिला के वेजाइनल स्वैब का किया था इस्तेमाल

    दोनों से दुष्कर्म की बात साबित करने के लिए डाक्टर ने अपने और एक अन्य गर्भवती महिला के वेजाइनल स्वैब का इस्तेमाल किया था।

    एम्स में भी हुई थी जांच

    बाद में एम्स के चिकित्सकों की टीम ने जांच की थी। एम्स की फोरेंसिक टीम में शामिल डाॅ. टीडी डोगरा और डा. अनुपमा रैना ने जांच में पाया कि आयशा जान का हाइमन सुरक्षित था। यही तथ्य बाद में सीबीआई की चार्जशीट का भी हिस्सा बना।

    सीबीआई ने 13 लोगों को बनाया आरोपित

    प्रदेश सरकार ने मामले को तूल पकड़ते देख 17 सितंबर, 2009 को मामले की जांच सीबीआई को सौंपी। 14 दिसंबर, 2009 को जांच एजेंसी ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में रिपोर्ट जमा कराई और विस्तार से उसमें डा. बिलाल, डा निगहत शाहीन चिलू व कश्मीर बार एसोसिएशन, शोपियां बार व अलगाववादी संगठनों की भूमिका का उल्लेख किया। इसके आधार पर सीबीआई ने छह डाक्टर, पांच वकीलों और दो अन्य के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।

    फंसाए गए चारों पुलिस अधिकारी निर्दोष

    रिपोर्ट में बताया गया कि डॉ. निगहत, डा. बिलाल व उनके साथियों ने पद का दुरुपयोग करते हुए, सुरक्षाबलों को बदनाम करने और अलगाववादियों के एजेंडे के अनुरूप हादसे को सामूहिक दुष्कर्म बताया। हालांकि कोर्ट में अभी तक उनको दोषी नहीं ठहराया जा सका है और आरोपितों ने अलग-अलग भी इस मामले में हाई कोर्ट की शरण ली। सीबीआई ने रिपोर्ट में साबित किया कि इस मामले में फंसाए गए चारों पुलिस अधिकारी निर्दोष हैं।