कश्मीर में हुए हमले को लेकर 22 साल चला ट्रायल, तीन आतंकी आरोपों से बरी; कोर्ट ने कहा-सुबूत अपर्याप्त
जम्मू-कश्मीर में 22 साल पुराने आतंकी हमले के एक मामले में बांडीपोरा के प्रधान सत्र न्यायाधीश खलील अहमद चौधरी ने तीन आरोपियों - अयाज अहमद पीर, शौकत पीर और मैमूना को बरी कर दिया। यह मामला 2002 के एक हमले से जुड़ा था जिसमें एक एएसआई शहीद हुए थे। कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूत और गवाहियां कमजोर और अविश्वसनीय थीं, और मुख्य जांच अधिकारी ने भी गवाही नहीं दी।

प्रस्तुतीकरण के लिए प्रतीकात्मक तस्वीर का उपयोग किया गया है।
जेएनएफ, जम्मू। कश्मीर में आतंकी हमले के एक दो दशक पुराने मामले में, बांडीपोरा के प्रधान सत्र न्यायाधीश खलील अहमद चौधरी ने 22 वर्षों के लंबे ट्रायल के बाद तीन आरोपितों को बरी कर दिया। इन आरोपितों में अयाज अहमद पीर उर्फ मिठा, शौकत पीर दोनों सगे भाई और मैमूना पर वर्ष 2002 में एक आतंकी हमले में शामिल होना का आरोप था, जिसमें एक एएसआई बलिदान हुए थे।
यह मामला 20 नवंबर 2002 को बांडीपोरा जिले के गारूरा गांव में हुए आतंकी हमले से जुड़ा है। पुलिस के अनुसार, उस दिन ड्यूटी पर तैनात पुलिस दल पर दो आतंकियों अयाज अहमद पीर और शौकत पीर ने अन्य साथियों के साथ मिलकर फायरिंग की थी।
हमले में गुलाम नबी गनई की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि एएसआई गुलाम रसूल, कॉन्स्टेबल मंजूर अहमद तथा दो स्थानीय नागरिक गंभीर रूप से घायल हुए थे। बाद में अस्पताल में इलाज के दौरान एएसआई गुलाम रसूल की भी मौत हो गई थी।
मामलों में दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने फैसले में कहा कि अभियोजन द्वारा पेश किए सबूत और गवाहियां कमजोर, अविश्वसनीय और संदेहास्पद हैं। जज खलील अहमद चौधरी ने कहा कि इस केस में अभियोजन यह सिद्ध करने में असफल रहा कि आरोपित किसी भी परिस्थिति में दोषी थे।
यहां तक कि मुख्य जांच अधिकारी, जिनके बयान सबसे अहम माने जाते हैं, उन्होंने भी अदालत के सामने गवाही नहीं दी। साथ ही घटनास्थल से जिन गवाहों को पंचनामा तैयार करने के लिए पेश किया गया, उन्होंने भी अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया। इस आधार पर कोर्ट ने सभी आरोपों से बरी कर दिया और उन्हें उनके व्यक्तिगत मुचलकों से मुक्त कर दिया।
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