तबाही का मंजर...आंसुओं का सैलाब और दर्द के बीच ताक रही आंखें, हर तरफ मलबा; चशोती त्रासदी के 8 दिन बाद भी बचाव कार्य जारी
किश्तवाड़ के चशोती गांव में त्रासदी को आठ दिन हो गए हैं जिससे हर तरफ दुख और तबाही का मंजर है। स्थानीय लोग और श्रद्धालु आपदा के बाद स्तब्ध हैं और बाजार में सन्नाटा पसरा है। राहत और बचाव कार्य जारी है पर ग्रामीणों का कहना है कि उनके जख्म गहरे हैं। व्यवसायियों ने बताया कि इस आपदा से अर्थव्यवस्था को भी नुकसान हुआ है।

बलवीर जम्वाल, किश्तवाड़। चशोती गांव में त्रासदी को आठ दिन बीत चुके हैं। तबाही से हर तरफ आंसुओं का सैलाब और दर्द झलक रहा है। स्थानीय निवासी हों या श्रद्धालु आपदा के बाद के हालात को देख स्तब्ध हैं। यात्रा के दौरान गुलजार रहने वाले बाजार में सन्नाटा है। गांव में मलबे के ढेर, तबाह हो चुके मकान और खौफ का माहौल है।
सैकड़ों राहत और बचाव कर्मी युद्धस्तर पर जुटे हैं। दूर-दूर तक मलबा दिख रहा है। आपदा ने कई परिवारों को उजाड़ दिया। मुख्यमंत्री से लेकर बड़े-बड़े अधिकारी और राजनेता सांत्वना देने जरूर आ रहे हैं, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि उनके जख्म इतने गहरे हैं कि किसी भी मदद से भर नहीं सकते।
मचैल गांव में मां चंडी के मंदिर की ओर जाने वाले रास्ते के आखिरी गांव चशोती में प्रत्यक्षदर्शियों ने भयावह दृश्य बयां किया आपदा के समय न भागने के लिए सुरक्षित जगह, और न सामान बचाने का कोई मौका। प्रकृति का ऐसा अचानक प्रकोप, उस समय तैयारी की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता।
व्यवसायी आशीष चौहान ने कहा, “यह (14 अगस्त) जम्मू-कश्मीर के इतिहास का सबसे काला दिन था, क्योंकि इसमें कई लोगों की जान चली गई। मानवीय त्रासदी के साथ-साथ यहां की अर्थव्यवस्था को भी करोड़ों का नुकसान हुआ।” उन्होंने कहा, “कारोबार पूरी तरह ठप्प हो गया है और यात्रा से जुड़े सभी लोग गहरे संकट में हैं।”
उन्होंने उम्मीद नहीं खोई है और विश्वास है कि बचाव और राहत अभियान पूरा होने के बाद सब कुछ सामान्य हो जाएगा। फास्ट फूड के मालिक रमेश कुमार ने कहा, कुछ दिन पहले, यह धार्मिक मंत्रों की ध्वनि और 2,000-3,000 लोगों की आवाजाही से गुलजार था - कुछ यात्रा के लिए जा रहे थे, अन्य लौट रहे थे। “भारी भीड़ के कारण हमें आराम करने का भी समय नहीं मिल पा रहा था, लेकिन इस आपदा ने सब कुछ बदल दिया।”
बाजार में एक रेस्टोरेंट चलाने वाले बिपिन चौहान ने कहा, “हमें यात्रा से बहुत उम्मीदें थीं। यह एक सुदूर इलाका है और व्यापार करने का एकमात्र साधन यात्रा ही थी। गेस्ट हाउस और होटल खाली हैं, रेस्टोरेंट, भोजनालय और पूजा सामग्री बेचने वाली दुकानें भी खाली हैं।” इतने सारे कीमती जीवन के नुकसान की तुलना किसी भी चीज से नहीं की जा सकती। “हम केवल शोक संतप्त परिवारों के दुख को साझा कर सकते हैं।” 25 जुलाई से शुरू होकर पांच सितंबर को समाप्त होने वाली वार्षिक मचैल माता यात्रा बुधवार को लगातार आठवें दिन भी स्थगित रही।
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