वैष्णो देवी भवन हादसा: कभी नहीं भूलेगी ये रात....रोंगटे खड़े कर देने वाला था मंजर, बिखरा सामान, चीखते-चिल्लाते रहे श्रद्धालु
बेकाबू भीड़ के बागे प्रशासन और सुरक्षाकर्मी भी बेबस नजर आए। बाद में सभी ने स्थिति संभाली और फिर शुरू हुआ राहत व बचाव कार्य। तब तक रात का अंधेरा छट गया था और सूरज की लालिमा भी बिखरने लगी लेकिन रात को जो हुआ।

कटड़ा, सुमित शर्मा : 31 दिसंबर की रात...। माता वैष्णो देवी के भवन पर सब कुछ आम दिनों की तरह सामान्य चल रहा था। श्रद्धालु माथे पर लाल चुनरी बांधे मां के जयकारे लगाते हुए लगातार भवन की ओर बढ़ते जा रहे थे। किसी को रत्ती भर अहसास नहीं था कि अगले ही पल क्या होने वाला है। अचानक भीड़ बढऩे लगी। क्लाक रूम हो या स्नान घर, भोजनालय या पूछताछ केंद्र। भवन परिसर का कोई ऐसा हिस्सा नहीं था, जहां तिल धरने की भी जगह हो। भीड़ के आगे कोरोना को लेकर जारी दिशा-निर्देश हवा होते नजर आए। सुरक्षाकर्मियों की श्रद्धालुओं को नियंत्रित करने की कोशिशें भी धीरे-धीरे नाकाफी साबित होती जा रही थी। तभी अचानक गेट नंबर तीन के पास मची भगदड़ ने सारा मंजर ही बदल दिया।
अपने, अपनों से बिछुड़ गए। हाथ छूट गए, सामान बिखर गया। भीड़ इस तरह बेकाबू हुई कि नीचे गिरे लोगों को कुचलते हुए आगे बढ़ गई। जिसको जहां जगह मिली वहां भागा। महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग खुद को संभाल नहीं पाए और बिलखते नजर आए। कुछ युवक जान बचाने के लिए शेड के साथ लगी रेलिंग पर चढ़ गए। ऊधमपुर के राजेश्वर, मोहित, अजय ने बताया कि अगर वह रेलिंग पर न चढ़ते तो पता नहीं क्या होता। करीब आधे घंटे तक किसी को समझ नहीं आया कि क्या हुआ। कुछ देर के लिए हम भूल ही गए कि दर्शन के लिए भवन आए हैं। हर तरह बिखरे जूते-चप्पल खौफनाक मंजर पैदा कर रहे थे।
भवन पर जैसे ही भगदड़ थमी, फिर शुरू हुई अपनों की तलाश। रोते-बिलखते लोग भवन परिसर में अपने सगे संबंधियों को तलाश रहे थे। चीखने-चिल्लाने की आवज दिलों को चीर रही थी। इस घटना ने कइयों को सदा के लिए खो दिया और कुछ बुरी तरह घायल हो गए।
बेकाबू भीड़ के बागे प्रशासन और सुरक्षाकर्मी भी बेबस नजर आए। बाद में सभी ने स्थिति संभाली और फिर शुरू हुआ राहत व बचाव कार्य। तब तक रात का अंधेरा छट गया था और सूरज की लालिमा भी बिखरने लगी, लेकिन रात को जो हुआ, वह अपनों को खोने वालों को शायद कभी भूल नहीं पाएगा।
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