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    कश्मीरी कालीन की नई लुक से देश-विदेश में बढ़ी मांग, नए तौर-तरीकों ने खूबसूरती में लगा दिए चार चांद

    Updated: Fri, 11 Jul 2025 09:45 PM (IST)

    श्रीनगर में स्थित भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईसीटी) कश्मीरी हस्तशिल्प को संरक्षित करने और उसे बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। पिछले तीन वर्षों में स्थानीय बुनकरों द्वारा हाथ से बुने गए कालीनों का निर्यात 838.70 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। आईआईसीटी में लगभग 11000 कालीन बुनकर अपने कौशल को निखार चुके हैं जिससे कश्मीरी कालीन उद्योग को नई ऊंचाइयां मिली हैं।

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    संस्थान कश्मीरी कारपेट की गुणवत्ता और डिजाइन में सुधार के लिए प्रतिबद्ध है।

    राज्य ब्यूरो,जागरण, श्रीनगर। कश्मीर के हस्तशिल्प के संरक्षण और विकास के साथ साथ, उन्हें बदलते परिवेश में लोगों की रूचि के नए डिजाइनों के साथ परम्परागत डिजाइनों को जोड़ने के लिए श्रीनगर में शुर किए गए भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइसीटी) का प्रभाव नजर आने लगा है।

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    बीते तीन वर्षाें में स्थानीय बुनकरों द्वारा हाथ से बुने गए कालीनों का निर्यात 838.70 करोड़ रूपये तक पहुंच गया है। लगभग 11 हजार कालीन बुनकर संस्थान में अपने कौशल को निखार चुके हैं।भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान, श्रीनगर की स्थापना 2003-04 में वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार और उद्योग एवं वाणिज्य विभाग, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर द्वारा की गई थी। इस संस्थान का औपचारिक उद्घाटन 21 जून, 2008 को हुआ था। इसका मुख्य उद्देश्य क्षेत्र के कालीन उद्योग को तकनीकी सहायता प्रदान करना है।

    संस्थान के निदेशक जुबैर अहमद ने बताया कि यह संस्थान कश्मीर में कालीन बुनाई के परम्परागत कौशल के संरक्षण और विकास के लिए स्थापित किया गया है। यहां परम्परागत बुनकरों के अलावा अन्य इच्छुक बुनकरों व अन्य लोगों को भी विभिन्न योजनाओं के तहत प्रशिक्षित किया जाता है।

    कश्मीर में बुनकरों द्वारा बुने जा रहे कालीनों के डिजाइनों में एक ठहराव महसूस किया जा रहा था और वह बदलते परिवेश के मुताबिक बाजार की मांग को पूरा नहीं कर पा रहे थे इसलिए उन्हें डिजाइन उपलब्ध कराने, परम्परा और अाधुनिकता के बीच समन्वय को दर्शाते डिजाइन तैयार करने के साथ बुनकरों के प्रशिक्षण की जिम्मेदारी यहां निभाई जा रही है।

    उन्होंने बताया कि संस्थान में कश्मीर घाटी के विभिन्न जिलों के 11,000 कालीन बुनकरों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। इन्हें संशोधित कालीन करघों पर प्रशिक्षित किया गया है। उन्होंने बताया कि यह इन करघों पर हाथ से ही काम होता है,लेकिन यह परम्परागत करघों से बेहतर हैं। उन्होंने बताया कि कश्मीर से निर्यात होने वाले हस्तशिल्प उत्पादों मे कालीन एक प्रमुख उत्पाद है।

    उन्होंने बताया कि कालीन बुनाई के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान रखने वाले मास्टर प्रशिक्षकों की सेवाएं विभिन्न बैचों में कुशल और अर्ध-कुशल कालीन बुनकरों को प्रशिक्षित करने के लिए ली जा रही हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रशिक्षणा आमने-सामने की बातचीत और प्रशिक्षण, जटिल हाथ से बुने हुए कालीनों की बुनाई के दुर्लभ कौशल को संरक्षित करने में एक लंबा रास्ता तय करेगा।

    कश्मीरी कालीनों कादेश के भीतर और बाहर एक बड़ा निर्यात बाजार है। उन्होंने बताया कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में युद्ध जैसी परिस्थितियों और मंदी व अन्य चुनौतियों के बावजूद कश्मीर से हाथ से बुने हुए कालीनों का निर्यात पिछले तीन वित्तीय वर्षों में 838.70 करोड़ रूपये तक पहुंच गया है।

    जुबैर अहमद ने बताया कि प्रशिक्षुओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए, आईआईसीटी योजना दिशानिर्देशों के अनुसार मासिक वजीफा भी प्रदान करता है। वस्त्र मंत्रालय की विभिन्न कौशल-आधारित योजनाओं के अंतर्गत, 20 लोगों की प्रवेश क्षमता वाले 4-6 महीने की अवधि के इन अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए वजीफा एक हजार रूपये से लेकर 3750 रूपये प्रति माह है।

    उन्होंने बताया कि संस्थान मं अब गुरु-शिष्य हस्तशिल्प कार्यक्रम के अंतर्गत, पंजीकृत कालीन बुनकरों को कौशल उन्नयन प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेताओं की सेवाएंली जा रही हैं। इस दो महीने के प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत, प्रत्येक प्रशिक्षु को साढ़े सात हजार रूपये प्रति माह का वजीफा दिया जाएगा।