Jammu Kashmir: श्रद्धा का महासावन : भगवान शिव के पांच मुख का प्रतीक है श्रावण मास
श्रृष्टि के आरंभ में जब कुछ नहीं था। तब प्रथम देव शिव ने ही श्रृष्टि की रचना के लिए पंच मुख धारण किए। त्रिनेत्रधारी शिव के पांच मुख से ही पांच तत्वों जल वायु अग्नि आकाश पृथ्वी की उत्पत्ति हुई।

जम्मू: शिव पुराण के अनुसार देवों के देव महादेव ने अनेक अवतारों का वर्णन किया है। शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव ने 19 अवतार लिए थे। धरती पर बुराई का नाश करने के लिए भगवान ने समय-समय पर अवतार लिए है। भगवान विष्णु और भगवान शिव ने भी कई अवतार लिए हैं।
श्रृष्टि के आरंभ में जब कुछ नहीं था। तब प्रथम देव शिव ने ही श्रृष्टि की रचना के लिए पंच मुख धारण किए। त्रिनेत्रधारी शिव के पांच मुख से ही पांच तत्वों जल, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी की उत्पत्ति हुई। इसलिए भगवान शिव के ये पांच मुख पंचतत्व माने गए हैं। जगत के कल्याण की कामना से भगवान सदाशिव के विभिन्न कल्पों में अनेक अवतार हुए। जिनमें उनके सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान अवतार प्रमुख हैं।
भगवान शिव का विष्णुजी से अनन्य प्रेम है। शिव तामसमूर्ति हैं और विष्णु सत्त्वमूर्ति हैं पर एक-दूसरे का ध्यान करने से शिव श्वेत वर्ण के और विष्णु श्याम वर्ण के हो गए। ऐसा माना जाता है कि एक बार भगवान विष्णु ने अत्यन्त मनोहर किशोर रूप धारण किया। उस मनोहर रूप को देखने के लिए चतुरानन ब्रह्मा, बहुमुख वाले अनन्त, सहस्त्राक्ष इन्द्र आदि देवता आए। उन्होंने एकमुख वालों की अपेक्षा भगवान के रूपमाधुर्य का अधिक आनंद लिया। यह देखकर भगवान शिव सोचने लगे कि यदि मेरे भी अनेक मुख व नेत्र होते तो मैं भी भगवान के इस किशोर रूप का सबसे अधिक दर्शन करता। भगवान शिव के मन में इस इच्छा के उत्पन्न होते ही वे पंचमुख हो गए।
भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्र अवतार हनुमान जी के बारे में तो सभी जानते है। हनुमान जी माता अंजनी के पुत्र हैं। उन्हें माता अंजनी ने पवन देव की कठोर तपस्या से प्राप्त किया था। इसलिए हनुमान जी का एक नाम पवनपुत्र भी है। पंचमुखी महादेव श्रावण मास में पांच सोमवार को भगवान शिवजी के पांच मुख का प्रतीक माना जाता है। अनेक विद्वान मानते हैं कि सृष्टि, स्थिति, लय, अनुग्रह एवं निग्रह। इन 5 कार्यों की निर्मात्री 5 शक्तियों के संकेत शिव के 5 मुख हैं।
पूर्व मुख सृष्टि, दक्षिण मुख स्थिति, पश्चिम मुख प्रलय, उत्तर मुख अनुग्रह, कृपा एवं ऊर्ध्व मुख निग्रह, ज्ञान का सूचक है। पांच मुखों में ऊर्ध्व मुख ईशान दुग्ध जैसे रंग का, पूर्व मुख तत्पुरुष पीत वर्ण का, दक्षिण मुख अघोर नील वर्ण का, पश्चिम मुख सद्योजात श्वेत वर्ण का।शिव के चार मुख चारों दिशाओं में और पांचवा मध्य में है। पश्चिम दिशा का मुख सद्योजात बालक के समान स्वच्छ, शुद्ध व निर्विकार हैं। उत्तर दिशा का मुख वामदेव अर्थात् विकारों का नाश करने वाला। दक्षिण मुख अघोर अर्थात निन्दित कर्म करने वाला।शिव के पूर्व मुख का नाम तत्पुरुष अर्थात अपने आत्मा में स्थित रहना। ऊर्ध्व मुख का नाम ईशान अर्थात जगत स्वामी। शिवपुराण में भगवान शिव कहते हैं। सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह। मेरे ये पांच कृत्य, कार्य, मेरे पांचों मुखों द्वारा धारित हैं।
-श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के सदस्य पूर्व न्यायाधीश सुरेश शर्मा
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