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    India Pakistan Border : किशनगंगा पर बने रिश्तों के पुल को फिर खोलने की उठ रही मांग, जाने क्यों हुआ था बंद!

    By naveen sharmaEdited By: Rahul Sharma
    Updated: Thu, 03 Nov 2022 12:09 PM (IST)

    टीटवाल गांव के नंबरदार जमीर अहमद (55) ने कहा कि नदी के उस ओर गुलाम जम्मू कश्मीर का क्षेत्र एक पर्यटन स्थल बन गया है। वहां मुजफ्फराबाद लाहौर तथा रावलपिंडी से लोग एलओसी और भारत में जन-जीवन देखने आते हैं।

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    गुलाम कश्मीर के लोगों के बीच जम्मू कश्मीर के हालात के प्रति जो कुछ भ्रांतियां बची हैं, वह दूर होंगी।

    टीटवाल (कुपवाड़ा), जागरण टीम : उत्तरी कश्मीर में कुपवाड़ा और गुलाम जम्मू कश्मीर को अलग करने वाली किशनगंगा नदी पर बना केबल पुल फिर से खोलने की मांग उठने लगी है। कश्मीरियों का तर्क है कि वह नियंत्रण रेखा के उस पार के लोगों से हमारे रिश्तों में गर्माहट लाएगा और गुलाम जम्मू कश्मीर के लोग हमारे क्षेत्र का विकास देख पाएंगे। इससे पाकिस्तान के दुष्प्रचार का जवाब दिया जा सकेगा। पहले लोगों को उन्हें इस पुल के जरिए एलओसी के आरपार आने-जाने की परमिट के आधार पर अनुमति मिलती थी। इसके अलावा दोनों तरफ के लोग नदी के दोनों किनारों पर खड़े होकर भी आपस में एक दूसरे से बातचीत करते रहे हैं।

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    फिलहाल, फरवरी 2021 में भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम समझौते की पुनर्बहाली के बाद से इस क्षेत्र में गोलाबारी पूरी तरह बंद है। ऐसे में टीटवाल और उसके साथ सटे अन्य गांवों के लोग चाहते हैं कि इस पुल को जम्मू कश्मीर विशेषकर टीटवाल और किशनगंगा नदी के ठीक पार स्थित गुलाम जम्मू कश्मीर में रहने वाले लोगों की आवाजाही के लिए दोबारा खोल दिया जाए।

    सामाजिक कार्यकर्ता सलीम रेशी ने कहा कि अप्रैल 2005 को जब नियंत्रण रेखा के उस पार के लिए बस सेवा शुरू हुई थी तो गुलाम कश्मीर से आने वाले लोग यहां का विकास देखकर बहुत हैरान थे। उस पार से आने वाले कई लोग यह मानते थे कि जम्मू कश्मीर में नमाज पर पाबंदी है। उसके बाद भ्रांतियां दूर हुईं और गुलाम कश्मीर में कई संगोघ्ठियों में इस विषय पर चर्चा भी हुई। अगर फिर से एलओसी के आर-पार आने जाने की अनुमति दी जाती है तो दोनों तरफ के लोगों में संवाद बढ़ेगा। गुलाम कश्मीर के लोगों के बीच जम्मू कश्मीर के हालात के प्रति जो कुछ भ्रांतियां बची हैं, वह दूर होंगी।

    किशनगंगा को पाकिस्तान में कहते हैं नीलम दरिया : किशनगंगा नदी पर लकड़ी का बना 160 फुट लंबा यह केबल पुल एलओसी के दोनों ओर आने-जाने वाला चौथा क्रासिंग प्वाइंट है। किशनगंगा को पाकिस्तान में नीलम दरिया के नाम से जाना जाता है। पुल को आधिकारिक रूप से चिलहाना टीटवाल क्रासिंग प्वाइंट (सीटीसीपी) के नाम से जाना जाता है और इसके दोनों ओर कड़ी पहरेदारी है।

    लाहौर, रावलपिंडी से लोग भी आते हैं एलओसी देखने : टीटवाल गांव के नंबरदार जमीर अहमद (55) ने कहा कि नदी के उस ओर गुलाम जम्मू कश्मीर का क्षेत्र एक पर्यटन स्थल बन गया है। वहां मुजफ्फराबाद, लाहौर तथा रावलपिंडी से लोग एलओसी और भारत में जन-जीवन देखने आते हैं। पिछले साल की शुरुआत में संघर्ष विराम होने के बाद अब इलाके में शांति लौट रही है, ऐसे में टीटवाल स्थित क्रासिंग प्वाइंट को उपयुक्त अनुमति के साथ दोनों ओर के लोगों के लिए खोल दिया जाना चाहिए।

    टीटवाल में बन रहा देवी शारदा का मंदिर : टीटवाल गांव में देवी शारदा को समर्पित मंदिर का निर्माण भी किया जा रहा है। देवी शारदा का पौराणिक काल का मंदिर किशनगंगा नदी के पार गुलाम कश्मीर में एक पहाड़ी पर है। मंदिर के नाम पर ही उसके साथ सटे कस्बे को शारदा कहा जाता है। भारत-पाक विभाजन से पूर्व देवी शारदा के मंदिर जाने वाले श्रद्धालुओं का अंतिम रात्रि पड़ाव टीटवाल में होता था। मंदिर की पुनर्निर्माण समिति के सदस्य ने कहा कि बेशक यह पुल भारत और पाकिस्तान के बीच बंटा है, लेकिन यह दोनों मुल्कों के बीच संबंध बेहतर बनाने का जरिया बन सकता है।

    1931 में बनवाया गया था पुल : यह पुल भारत-पाक के रिश्तों में उतार-चढ़ाव और दोनों देशों के बीच हुए विभिन्न युद्धों के इतिहास का गवाह रहा है। किशनगंगा नदी पर यह पुल जम्मू कश्मीर के तत्कालीन शासकों ने 1931 में बनवाया था। वर्ष 1948 में पाकिस्तानी हमलावरों ने इस पुल को नष्ट कर दिया था। इसे भारत और पाकिस्तान ने 1988 में पुनर्निर्मित किया था।