Hindu Mandir in J&K: गुमनामी के अंधेरों में पहचान खोता राम मंदिर पीरखो, यहां विराजमान हैं मूछों वाले भगवान
Hindu Mandir in JK मंदिर में मूछ वाले श्री राम लक्ष्मण की मूर्तियां हैं साथ में माता सीता जी हैं। पूरे जम्मू कश्मीर में यह अकेला एक मंदिर है यहां रामचंद्र जी और लक्ष्मण की मूंछ दर्शाई गई है।
जम्मू, अशोक शर्मा। मंदिरों के शहर जम्मू में अपने आप में इतिहास समेटे प्राचीन राम मंदिर पीरखो गुमनामी के अंधेरों में अपनी पहचान खोता जा रहा है। इस ऐतिहासिक मंदिर को आज तक न तो ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया गया। न ही इसके संरक्षण के लिए कोई धार्मिक संगठन आया और न ही सरकार ने इसके जीर्णोद्धार की ओर कोई ध्यान दिया। इस मंदिर को मूछ वाले राम मंदिर और खू वाला राम मंदिर भी कहते हैं।
मंदिर में मूछ वाले श्री राम लक्ष्मण की मूर्तियां हैं। साथ में माता सीता जी हैं। पूरे जम्मू कश्मीर में यह अकेला एक मंदिर है, यहां रामचंद्र जी और लक्ष्मण की मूंछ दर्शाई गई है। संगमरमर की यह आकर्षक मूर्तियां बेशक ज्यादा बड़ी नहीं हैं, लेकिन आकर्षित करने वाली हैं। मंदिर की दीवारों पर श्री राम जन्म के बाद खुशियों से झूमती अयोध्या नगरी के लोग, वनवास काल की कथाएं, राक्षसों के साथ युद्ध के दृश्य, वानर सेना के युद्ध दृश्य आदि कई वित्ती चित्र अभी भी हैं।
मंदिर की दीवारों पर उकेरे गए रामायण और महाभारत कालीन दृश्य
मंदिर की दीवारों पर एक तरफ रामायण और दूसरी तरफ महाभारत कालीन दृश्यों की पूरी श्रृंखला को बखूबी उकेरा गया है। इन दुर्लभ कलाकृतियों को भी संरक्षित करने की जरूरत है। करीब 300 वर्ष पुराना यह मंदिर उपेक्षा का शिकार है। छत से पानी टपकने के कारण दीवारों पर बने वीत्ती चित्र खराब हो चुके हैं। पानी मूर्तियों पर भी टपकता रहा है। मंदिर के पुजारी और स्थानीय लोगों के आग्रह पर वार्ड न. 3 के कारपोरेटर नरोत्तम शर्मा ने मंदिर का लेंटर डलवा दिया है।
मंदिर को ऐतिहासिक स्मारक घोषित करने की अपील
नरोत्तम ने बताया कि अभी मंदिर का बहुत ज्यादा कार्य करवाने वाला है। वह पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय विभाग से भी आग्रह करेंगी कि इस मंदिर को ऐतिहासिक स्मारक घोषित कर इसका तरीके से जीर्णोद्धार किया जाए। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत भी मंदिर पर पैसा खर्च किया जा सकता है। अगर इस मंदिर का तरीके से सरंक्षण हो तो यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हो सकता है।
नहीं है मंदिर का कोई साइन बोर्ड
अब तो हालत यह है कि मंदिर का कोई साइन बोर्ड तक नहीं है। मंदिर के आसपास हुए अतिक्रमण के चलते आने जाने वालों को पता भी नहीं चलता कि यहां कोई मंदिर भी है। मंदिर के आसपास हुए अतिक्रमण को हटा कर मंदिर का तरीके से संरक्षण हो तो लाखों की संख्या में जो श्रद्धालु पीरखो आ सकते हैं। वह भी मंदिर में आने लगें तो अपने आप धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
मंदिर के पुजारी की 18वीं पीढ़ी कर रही थी मंदिर की सेवा
मंदिर के पुजारी देवेंद्र शर्मा ने बताया कि मंदिर का निर्माण कब हुआ इसी पूरी जानकारी नहीं है लेकिन उनकी 18वीं पीढ़ी मंदिर की सेवा में है। उनके नाना जी बताया करते थे कि महाराजा ध्यान सिंह ने उनके पूर्वजों को यह मंदिर दान दिया था। इतने पुराने इस मंदिर को ऐतिहासिक मंदिर घोषित किया जाए। इसकी मांग समय-समय पर होती रही है लेकिन कभी इसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
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