'पिता का अंतिम संस्कार करने के लिए तीन दिनों तक तलाशते रहे शरीर के टुकड़े', आतंकवाद पीड़ितों ने सुनाई दर्दनाक कहानी
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पीड़ितों को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र भेंट किए। पीड़ितों ने अपने दर्दनाक अनुभव साझा किए, जैसे क ...और पढ़ें

उपराज्यपाल ने पीड़ितों के पुनर्वास के लिए प्रशासन की प्रतिबद्धता दोहराई।
नवीन नवाज, जागरण, जम्मू। मैं सिर्फ छह माह का था,जब मेरे पिता बलिदानी हुए। मेरी मां और रिश्तेदार बताते हैं कि पिता का अंतिम संस्कार करने के लिए तीन दिनों तक उनके पार्थिव शरीर के टुकड़ो को तलाशते रहे, 21 वर्षीय जीवन लाल ने सभागार में अपनी मां की वेदना और अपनी पीड़ा सु़नाते हुए कहा। जिला रामबन से आया जीवन लाल उन आतंकवाद पीड़ितों में एक है,जिन्हें आज अनुकंपा के आधार पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने सरकारी नौकरी का नियुक्तिपत्र भेंट किया।
जीवन लाल ने कहा कि मेरे पिता पुलिस में थे। संगलदान के पास इंद पोस्ट पर वह तैनात थे। वर्ष 2004 में आतंकियों के एक हमले वह बलिदान हो गए थे। आतंकियों द्वारा किए गए धमाके में उनके शरीर के चिथड़े उड़ गए थे। मेरी मां बताती है कि पिता की टांग का तीसरे दिन मिली थी।
उनके संस्कार के लिए उनके पार्थिव शरीर के टुकड़ों केा जमा किया गया। उसने कहा कि हमारे पिता के बलिदानी के बाद हमारी किसी ने नहीं सुनी। मेरी मां ने जैसे तैसे मुझे पाला। उसने नौकरी के लिए उपराज्यपाल का आभार जताते ुहुए कहा क मैं आज आपको यहां सभी के सामने यकीन दिलाता हूं कि जिस मुश्किल से मेरी मां ने मुझे पाला है, मैं उसी मेहनत के साथ उसकी सेवा करुंगा।
मेरी मां एक आतंकी हमले मेें बलिदानी हो गई थी
बरसों से न्याय और मदद के लिए दर दर भटक रहे आतंक पीड़ितों में जीवन लाल अकेला नहीं है। ऐसे कई परिवार हैं। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी अपने संबोधन में कई पीड़ितों का नाम लिया और उनकी उपेक्षा के लिए तत्कालीन व्यवस्था और आतंकियों के इकोसिस्टम को बखिया उधेड़ी।
राजौरी से आए रजत शर्मा ने कहा कि 15 वर्ष पहले जब मैं नौ वर्ष का था और मेरा बड़ा भाई 13 वर्ष का था, मेरी मां एक आतंकी हमले मेें बलिदानी हो गई थी। वह डेरा की गली के रास्ते एक बस में घर की तरफ आ रही थी। आतंकियों ने हमला किया और बस में सवार पांच लोग मारे गए। मेरी मां भी बलिदानी हो गई थी। मेरे पिता एक बस चालक थे। उन्होंने हमें किस तरह पाला यह हम लोग ही जानते हैं। हमने कई जगह मदद के लिए आग्रह किया,लेकिन हर जगह हमें नकार दिया गया।
आतंकियों ने मेरे माता पिता को कत्ल कर दिया: हुसैन
सुरनकोट से आए शौहरत हुसैन ने कहा कि 1999 में आतंकियों ने मेरे माता पिता को कत्ल कर दिया। कुछ दिनों बाद हमारा घर भी जला दिया गया। हम तीन भाई-बहन हैं और उस समय में सात साल का था। मेरे मां-बाप का कसूर सिर्फ इतना ही था कि उन्होंने आतंकियों को खाना देने से मना किया था। आज का दिन मेरी जिंदगी में एक नयी रोशनी बनकर आया है।
उपराज्यपाल ने कहा कि मैं इन सभी परिजनों के साहस और धैर्य की भी सराहना करता हूं उन्होंने इतने वर्षों के बाद भी आशा का एक दीपक जलाए रखा । उन्होंने कहा कि हमनें 13 जुलाई को यह आतंकवाद पीड़िताें के लिए रोजगार का कार्यक्रम शुरु किया और उस दिन पहली बार बारामूुला से पूरे जम्मू कश्मीर में एक संदेश दिने का प्रयास किया किया अब न्याय में देरी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि मैं आतंवाद से पीड़ित प्रत्येक परिवार को यकीन दिलाता हूं कि आपकापूरी तरह पुनर्वा हो,आपके आपके परिवार का राष्ट्र की मुख्यधारा के साथ पूरी तरह से जुडाव हो । यह हर हाल सुनिश्चित किया जाएगा।
अनमोल जिंदगियां सिर्फ आंकड़ों और फाइलों में सिमट गई
उन्होंने कहा कि इसे जम्मू-कश्मीर में न्याय के एक नए युग की शुरुआत कहना चाहूंगा। अनमोल जिंदगियां सिर्फ आंकड़ों और सरकारी फाड़नों में सिमट कर रह गई थी और जो परिजन दशकों से सिर्फ वादों के भरोसे जीवन काट रहे थे, उनका इंतजार अब समाप्त हो गया है। उन्होंने बताया कि यहां कोटरंका राजौरी का जीवन सिंह भी है। आतंकियों ने 28 जून 2005 को उसके पिता समेत पांच लोगों कीहत्या की थी।
पिता की मृत्यु के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी जीवन सिंह के कंधों प आ गई। बीस वर्षों से यह परिवार घुट घुट कर बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करके जीवन बसर करने के लिए विवश था। उन्होंने कहा कि इस तिरह रियासी के अख्तर हुसैन की 13 जुलाई 2005 को आतंकियों ने हत्या कर दी और बीस वर्ष सेउनकी पत्नी और तीन बेटे-बेटियाें ने अत्यंत मुश्किल भरा समय गुजारा है।
बारात में जाने की तैयारी कर रहे संजीव को भी मार डाला
उन्होंने कहा कि संजींत कुमार नामक एक एसपीओ का भी उल्लेख करना चाहूंगा जो 15 नवंबर 2004 को किश्तवाड़ के टूडवा में अपने दोस्त की बारात में जाने की तैयारी कर रहा था, लेकिन आतंकियों ने उसे निर्ममता से कत्ल कर दिया। शादी की खुशियां मौत के मातम में बदल गई। एक माता पिता ने अपना बेटा खोया। जम्मू कश्मीर ने एक अपना शूर वीर खो दिया। 20 वर्षों तक इंतजार किया उस परिवार ने।
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि पहले आतंकियों के यह घिनौने कृत्य और आतंकवाद पीड़ित सामने नहीं आते थे,कोई उनका जिक्र नहीं करता था, यहां ऐसा वातावरण बना हुआ था। लेकिन अब उनके जुल्म की कहानी उजागर होने लगी है। उन्होंने कहा कि आज आतंकवाद पीडितों के अंधकार के दिन समाप्त होने लगे हैं। आशा और आकांक्षा के नए युग की शुरुआत हो रही है।
इस वर्ष जुलाई में दशकों पुराने दर्द का इलाज शुरू हुआ: सिन्हा
जम्मू-कश्मीर में अनेक कामों के बीच हमारा यह भी संकल्प था कि समाज अतीत के दर्द को मिटाकर कैसे आगे बढ़ सकता है। लगभग हर क्षेत्र में कई उल्लेखनीय काम हुए हैं लेकिन कुछ जख्म थे जो रह गए थे, जिन्हें भरना बाकी था। इस वर्ष जुलाई में दशकों पुराने दर्द का इलाज शुरू हुआ और सबसे बड़ी बात यह जानकर जिन परिवारों को न्याय से वंचित रखा गया था, उन्हें न्याय न देकर के उनके जीवन में बदलाव कोई सकारात्मक न आए इसका प्रयत्न किया गया था ताकि यह देश और समाज को आगे बढ़ने में अपना योगदान न दे सकें।
उन्होंने कहा कि आतंकवाद पीड़ितो कें पुनर्वास के लिए जम्मू-कश्मीर प्रशासन पूर्ण समर्पित भाव से काम कर रहा है और यह आज फिर मैं इस समागर में दोहराना चाहता हूँ। मैं करता हूं कि अभी और भी मामले हैं, लेकिन कोई गलत नियुक्ति ना हो, इसलिए समय लग रहा है। जब तक प्रत्येक पीड़ित परिवार को रोजगार न मिले, उसका पुनर्वास न हो हम अपने काम में लगे रहेंगे।

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