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    महिला दिवस: आतंकी अफजल गुरु के बेटे को उसकी मां ने नहीं बनने दिया दूसरा अफजल

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Fri, 08 Mar 2019 10:25 AM (IST)

    तबस्सुम गुरु एक ऐसी मां जो अतीत के घने अंधेरे से बचाकर लाडले को सुनहरे भविष्य की राह पर ले जा रही है। ...और पढ़ें

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    महिला दिवस: आतंकी अफजल गुरु के बेटे को उसकी मां ने नहीं बनने दिया दूसरा अफजल

    तबस्सुम गुरु, एक ऐसी मां जो अतीत के घने अंधेरे से बचाकर लाडले को सुनहरे भविष्य की राह पर ले जा रही है। संसद हमले के मुख्य साजिशकर्ता अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई गई तो उनकी बेवा तबस्सुम गुरु के लिए जीवन अंधेरी दुनिया से कम नहीं था। सभी हमदर्द गायब हो गए। चुनौती थी बेटे गालिब को बेहतर जीवन देने की। वह भी उस माहौल में जब अफजल गुरु के नाम पर कश्मीर में नकारात्मक हवा फैलाई जा रही थी, तबस्सुम गालिब को हर बुरी नजर से बचाते हुए सपने पूरे करने की राह पर आगे बढ़ती रहीं। वह सपना है बेटे को

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    डॉक्टर बनाने का।

    18 साल का हो चुका गालिब भी मां के संघर्ष को समझता है। इसलिए अपनी सारी ऊर्जा उसने मां के सपने को पूरा करने पर खर्च कर दी है। अफजल गुरु की गिरफ्तारी के बाद शुरू हुआ संघर्ष अब भी निरंतर जारी है। दैनिक जागरण से बातचीत में तबस्सुम ने बताया, गालिब के पिता के चले जाने के बाद जीवन में घना अंधेरा था। पर साथ ही मासूम गालिब के तौर पर एक उम्मीद की किरण भी थी। अफजल का भी सपना था कि बेटा डॉक्टर बने। इसी उम्मीद का दामन थामे तमाम संघर्ष किए और इस राह पर आगे बढ़ती रही। साथ ही बेटे की राह में आने वाली हर चुनौती के समक्ष भी ढाल बनकर खड़े रहना पड़ा।

    लाडले को बेहतर जीवन देने के लिए  2003 से मात्र 1500 रुपये मासिक पर अस्पताल में सफाई कर्मी का काम शुरू किया। सोपोर के एक अस्पताल में सफाई और देखरेख की नौकरी करते हुए गालिब को बेहतर शिक्षा देना आसान न था।

    तबस्सुम ने कहा, जिंदगी आसान नहीं थी। धीरे-धीरे यह राशि बढ़कर 3000 रुपये हो गई। कुछ परिवार ने साथ दिया और कुछ अपना संघर्ष, हालात से लड़ते हुए बेटे को आगे बढ़ाती रही। इसके अलावा पिता और भाइयों ने साथ दिया। इस तरह अब तक गालिब को आसपास के माहौल से दूर रखा और उसे अपने सपने को जीने का लक्ष्य दिया।

    तबस्सुम ने बताया, शुरुआती दौर में बेटे को आर्मी के टाइगर डिविजन स्कूल में पढ़ाया चूंकि निजी स्कूल में पढ़ाने के लिए पैसा नहीं था। उसके बाद वह कुछ साल बारामुला के निजी स्कूल में गया। बाद में उसे अपने पास सोपोर ले आई। बेटे की स्कूल फीस बढ़ी तो अस्पताल में अतिरिक्त काम करती। पिता-भाइयों ने कुछ जमीन मेरे नाम कर दी। इससे कुछ आसानी हुई। 

    बकौल तबस्सुम, वक्त गुजरता रहा और मैंने वक्त के साथ चलना सीख लिया। गालिब भी इस संघर्ष को समझता है तभी उसने शिक्षा के अलावा कहीं और ध्यान नहीं बंटाया न ही कभी कोई बड़ी फरमाईश की। दसवीं में 95 फीसद और 12वीं में 89 फीसद अंक लाकर गालिब सपनों को पूरा करने की राह पर है। इस समय वह नेशनल

    एलिजिबिलिटी एंट्रेंस टेस्ट (नीट) की तैयारी कर रहा है ताकि वह डॉक्टर बन इसांनियत की सेवा कर सके।

    जब ईद के लिए नए कपड़े लेने से मना किया...

    तबस्सुम ने बताया, गालिब ने छोटी उम्र में संजीदगी को ओढ़ लिया। वह तब छठी कक्षा में था, जब उसे ईद के लिए नए कपड़े दिलाने ले गई। गालिब ने कपड़े के दाम देखे और कह दिया कि मेरे पास अच्छे कपड़े हैं, मैं ईद पर वही पहन लूंगा। 

    पिता का बदला लेने के लिए आतंकियों ने उकसाया था

    गालिब बताते हैं कि उनके पिता अफजल गुरु को फांसी होने के बाद घाटी में सक्रिय आतंकी संगठनों ने उन्हें पिता की मौत का बदला लेने के लिए बहुत उकसाया था। उनका माइंड वॉश करने का कई बार प्रयास किया गया। इन संगठनों का मकसद गालिब को आतंकी बनाकर भारत के खिलाफ प्रयोग करने का था। गालिब ने बताया कि हमने पूर्व में हुई गलतियों से बहुत कुछ सीखा है। इसलिए वह आतंकियों के जाल से बच गए। इसका क्रेडिट वह अपनी मां को देते हैं। गालिब के अनुसार उनकी मां ने उन्हें आतंकवादी बनने से बचा लिया।

    मां ने आतंकियों से बचाया...

    गालिब का कहना है कि उसकी मां तबस्सुम ने उसे हर तरह के दबाव से बाहर रखा। उसकी मां ही उसकी प्राथमिकता है। लोग क्या कहते हैं इस पर उसने कभी भी नहीं सोचा। उसकी मां ने उसे उन आतंकी संगठनों की सोच से बचाया है, जो नफरत फैलाते आए हैं। वह कहता है, मां ने मेरे लिए इस माहौल के बीच भी एक अलग ही जगह बनाई। वे कहती रहीं कि किसी की बात पर ध्यान मत देना। अगर कोई तुम्हें कुछ कहता भी है तो उस्  पर कोई भी प्रतिक्रिया न दो, चुप रहो।