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    गेम चेंजर साबित हुए जम्मू-कश्मीर में केसर की खेती में वैज्ञानिक तरीके, 30 हजार से अधिक परिवार केसर की खेती से जुड़े हैं

    By Lokesh Chandra MishraEdited By:
    Updated: Sun, 27 Mar 2022 09:00 PM (IST)

    आइआइकेएसटीसी में किसानों को बेहतर रिटर्न प्राप्त करने के लिए ग्रेडिंग वैज्ञानिक कटाई को अपनाया। जम्मू और कश्मीर में किसान के खेतों में उत्पादित केसर सबसे अच्छी गुणवत्ता का है जो दुनिया भर में उत्पादित केसर की तुलना में स्वाद सुगंध और रंग प्रदान करता है।

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    सरकार ने केसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए वैज्ञानिक पद्धति अपनाने की दिशा में कड़ी मेहनत की।

    जम्मू, राज्य ब्यूरो : इंडिया इंटरनेशनल कश्मीर केसर ट्रेडिंग सेंटर दुस्सु, पांपोर ने केसर उत्पादकों को संगठित विपणन, गुणवत्ता आधारित मूल्य निर्धारण के अलावा उत्पादकों, व्यापारियों, निर्यातकों और औद्योगिक एजेंसियों के बीच सीधे लेनदेन की सुविधा प्रदान करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे किसानों को पर्याप्त लाभ सुनिश्चित हो पाया। आइआइकेएसटीसी में किसानों को बेहतर रिटर्न प्राप्त करने के लिए ग्रेडिंग, वैज्ञानिक कटाई को अपनाया। जम्मू और कश्मीर में किसान के खेतों में उत्पादित केसर सबसे अच्छी गुणवत्ता का है जो दुनिया भर में उत्पादित केसर की तुलना में स्वाद, सुगंध और रंग प्रदान करता है।

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    सरकार ने कश्मीर केसर की पहचान बनाए रखने और घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में उत्पादकों के लिए बेहतर मूल्य निर्धारण करने व बिचैलियों की भूमिका को खत्म करने के प्रयास में आइआइकेएसटीसी की स्थापना की। आइआइकेएसटीसीकेसर उत्पादकों को गुणवत्ता मानकों को अपनाने और गुणवत्ता ग्रेड के आधार पर कीमत तय करने में काफी मदद कर रहा है।

    सरकार ने केसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए वैज्ञानिक पद्धति अपनाने की दिशा में कड़ी मेहनत की। यह जम्मू-कश्मीर में केसर की खेती में एक गेम चेंजर साबित हो रही हैं। 226 गांवों में स्थित जम्मू-कश्मीर में 30000 से अधिक परिवार केसर की खेती से जुड़े हैं। जम्मू और कश्मीर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा केसर उत्पादक क्षेत्र है और देश का एकमात्र स्थान है जहाँ केसर की खेती की जाती है।

    आइआइकेएसटीसी के एक अधिकारी ने कहा तकनीशियन परीक्षण प्रमाणन प्रदान करके ई-नीलामी इकाई के साथ संपर्क बनाए रखने के अलावा प्रत्येक पैरामीटर के लिए आईएसओ मानकों के अनुसार ग्रेड आवंटित करते हैं ताकि किसान ग्रेड के अनुसार अपनी उपज बेच सकें। केंद्र के एक अधिकारी ने कहा कि बिक्री प्रक्रिया के दौरान, आइआइकेएसटीसी का नीलामी केंद्र उत्पादकों को नीलामी के दिन से 24 घंटे पहले तक मांग और आपूर्ति और अन्य मापदंडों के आधार पर आधार मूल्य और मूल्यांकन मूल्य को संशोधित करने की सुविधा प्रदान करता है। नीलामी के दौरान उत्पादक वास्तविक समय में आरक्षित मूल्य को नियंत्रित करने में सक्षम होते हैं। एक उत्पादक विभिन्न ब्रांडों के बाजार के रुझान की पहचान कर सकता है।

    आइआइकेएसटीसी विक्रेता और खरीदार दोनों के लिए अच्छा है। इससे पहले, उत्पादकों को भारत और दुनिया भर में खरीदार के विवरण के बारे में पता नहीं था और इसलिए उनके पास एक बहुत छोटा बाजार था। उन्हें यकीन नहीं था कि उन्हें उनके केसर उत्पाद का सही बाजार मूल्य मिल रहा है या नहीं। किसानों को पैसा मिलने में अधिक समय लगता था। लेकिन अब इसी तरह, खरीदारों को केसर प्राप्त करने के लिए अधिक समय तक इंतजार नहीं करना पड़ता है और कश्मीर में केसर उत्पादकों से मिलने के लिए सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करने की आवश्यकता नहीं होती है।

    जम्मू और कश्मीर में केसर का उत्पादन विलुप्त होने के खतरे में था जैसा कि वैश्विक उत्पादन में इसके घटते हिस्से से स्पष्ट है। केसर उत्पादन का रकबा 2010-11 में लगभग 5707 हेक्टेयर से घटकर 3785 हेक्टेयर हो गया। इसके साथ ही, 2010 से पहले के वर्षों में उत्पादकता औसतन 3.13 किलोग्राम/हेक्टेयर से घटकर 1.88 किलोग्राम/हेक्टेयर हो गई थी। केसर उत्पादन को बढ़ावा देने और केसर उत्पादकों की पीड़ा को कम करने केलिए केंद्रीय कृषि और सहकारिता मंत्रालय ने वर्ष 2010-11 के दौरान ‘राष्ट्रीय केसर मिशन‘ योजना शुरू की और आइआइकेएसटीसी की स्थापना इस मिशन का ही एक हिस्सा है।