राज्य के दर्जे के लिए मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर अभियान पर सज्जाद लोन ने खड़े किए सवाल, CM उमर पर साधा निशाना
पीपुल्स कान्फ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद लोन ने राज्य का दर्जा बहाल करने के आंदोलन का समर्थन किया है। उन्होंने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराने का आग्रह किया। लोन ने हस्ताक्षर अभियान को दिखावा बताते हुए कहा कि इसका कोई कानूनी महत्व नहीं है। उन्होंने मुख्यमंत्री पर विधानसभा का अपमान करने का आरोप लगाया और सुप्रीम कोर्ट में प्रस्ताव भेजने का आग्रह किया।

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। पीपुल्स कान्फ्रेंस के चेयरमैन और पूर्व समाज कल्याण मंत्री सज्जाद गनी लोन ने कहा कि हम राज्य का दर्जा बहाल करने के किसी भी आंदोलन का समर्थन करेंगे, लेकिन पहले मुख्यमंत्री राज्य के दर्जे को मजाक नहीं बनाना चाहिए।
अगर मुख्यमंत्री गंभीर हैं तो वह राज्य विधानसभा में इसके लिए प्रस्ताव पारित कराएं। इससे पहले उन्हें यह बताना चाहिए कि उन्होंने विधानसभा में राज्य के दर्जे के लिए प्रस्ताव पारित क्यों नहीं कराया। विधानसभा ही भारत के चुनाव आयोग द्वारा निर्वाचित एक संवैधानिक निकाय है। विधानसभा में प्रस्ताव पारित करना चाहिए।यह कोई वीडियो गेम नहीं है।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने स्वतत्रता दिवस समारोह के दौरान अपने भाषण में जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा दिलाने के लिए एक हस्ताक्षर अभियान चलाने का एलान किया है। सज्जाद गनी लोन ने कहा कि बेशक विधानसभा में पारित हमारे प्रस्ताव सर्वोच्च न्यायालय पर बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन उनमें संवैधानिक गरिमा निहित होगी।
यह देश की सर्वोच्च अदालत के लिए एक संवैधानिक संदेश होगा। राजनीतिक या हस्ताक्षर अभियानों की कोई कानूनी या संवैधानिक पवित्रता नहीं होती। भारत या दुनिया में कहीं भी अनुभवजन्य रूप से ऐसी एक घटना बताइए जहां हस्ताक्षर अभियानों ने कानूनी व्याख्याओं को बदल दिया हो। वे स्वीकार्य भी नहीं हैं।
पीपुल्स कान्फ्रेंस के चेयरमैन ने कहा कि हमें याद रखना चाहिए कि कश्मीर घाटी में जेकेएलएफ के कमांडर यासीन मलिक ने भी आज़ादी के लिए एक हस्ताक्षर अभियान चलाया था - वह अभियान कहां तक पहुंचा था।
उन्होंने मुख्यमत्री पर विधा विधानसभा के प्रति अवमानना, तिरस्कार और अवमानना" दिखाने का आरोप लगाया जिसने उन्हें मुख्यमंत्री का पद दिया है। पीपुल्स कान्फ्रेंस के चेयरमैन ने मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुए कहा कि आप अपनी शक्ति, सुविधाएं और मुख्यमंत्री पद विधानसभा से प्राप्त करते हैं। उसी संस्था के प्रति यह अवमानना क्यों जिसने आपको मुख्यमंत्री बनाया है?
इसके साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा अपील करते हुए कहा कि कृपया यह बचकाना और अपरिपक्व रवैया बंद करें। हम किसी भी अभियान का बिना शर्त समर्थन करेंगे। लेकिन कृपया सुनिश्चित करें कि केंद्र शासित प्रदेश विधानसभा से भी एक प्रस्ताव पारित होकर सुप्रीम कोर्ट भेजा जाए। हम जीवन भर की लड़ाई लड़ रहे हैं। घर-घर जाकर हस्ताक्षर अभियान सिर्फ़ नाटकबाज़ी है।
मुझे बताइए, सुप्रीम कोर्ट बहुसंख्यकवाद के दावों के प्रति जवाबदेह है या क़ानून के प्रति? बहुसंख्यकवाद राजनेताओं का काम है। सुप्रीम कोर्ट क़ानून का काम करता है, उन्होंने कहा कि राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित करें। सुप्रीम कोर्ट जाने का यही सबसे सम्मानजनक तरीका है।
राज्य का दर्जा न देने का माहौल न बनाएं। यह कोई वीडियो गेम नहीं है। और कृपया मुझे बताएं - क्या आप प्रस्ताव पारित न करके राज्य भाजपा को बचा रहे हैं और उन्हें राज्य के दर्जे पर कोई रुख न अपनाने की छूट दे रहे हैं?
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